बिजली बचाने पर कर्मचारियों को बोनस देगी जर्मन रेल कंपनी
२ अगस्त २०२२जर्मनी की रेल कंपनी डॉयचे बान ने अपने कर्मचारियों को ऊर्जा बचाने की प्रेरणा देने के लिए उन्हें बोनस देने का फैसला किया है. अगर वो अपने दफ्तर या काम करने की जगह पर ऊर्जा बचाने के लिए काम करते हैं तो उन्हें एकमुश्त 100 यूरो तक का बोनस मिल सकता है.
बिजली बचाने का लक्ष्य
उर्जा बचाने के लिए कर्मचारी कोई भी उपाय कर सकते हैं. मसलन रोशनी, हीटिंग, एयर कंडीशनर का इस्तेमाल, ईंधन की बचत जैसे कामों के जरिये वो ऊर्जा बचाने की कोशिश कर सकते हैं और अगर ऐसा हुआ तो उन्हें बोनस मिलेगा. यहां तक कि वो लिफ्ट की बजाय सीढ़ियां चढ़ कर भी इसमें सहयोग कर सकते हैं. अगर कंपनी एक निश्चित स्तर तक की ऊर्जा बचत कर लेती है तो यह बोनस 150 यूरो तक भी जा सकती है. हालांकि अभी ऊर्जा बचत का लक्ष्य कितना रखा गया है इसका ब्यौरा नहीं दिया गया है.
डॉयचे बान के मानव संसाधन विभाग के मुखिया मार्टिन साइलर ने मंगलवार को कहा, "हम चाहते हैं कि हमारे 2 लाख कर्मचारी सक्रिय हो जायें और बड़ी मात्रा में मचत के लिए छोटे से लेकर बड़े स्तर तक का लीवर खींचने में जुट जायें." साइलर ने यह नहीं बताया कि कर्मचारियों को कितनी बचत करनी है और इसकी माप कैसे की जायेगी.
साइलर ने बताया कि गैस की सप्लाई में आ रही दिक्कतों को देखते हुए कंपनी कई और तरीकों से ऊर्जा की बचत करने में जुटी है. इसमें जीवाश्म ईंधन से चलने वाले हीटिंग सिस्टम को वैकल्पिक सिस्टम से बदलना और मुख्यालयों में बाहर लगी लाइटों को हटाना भी शामिल है.
सबसे ज्यादा बिजली खर्चने वाली कंपनी
लगभग 10 टेरावाट की सालाना खपत करने वाली रेल कंपनी जर्मनी में बिजली की सबसे बड़ी ग्राहक है. 1 टेरावाट लगभग 10 लाख मेगावाट के बराबर होता है. नई सालाना रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी में पिछले साल बिजली के उत्पादन में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी करीब 6 फीसदी थी. 20 फीसदी से ज्यादा बिजली लिग्नाइट और कोयले से पैदा की गई जबकि अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की हिस्सेदारी 62 फीसदी थी.
जर्मनी समेत पूरा यूरोप इस समय ऊर्जा संकट से गुजर रहा है. सबसे बड़ी दिक्कत है गैस के सप्लाई की जिससे जर्मनी के उद्योगों को चलाने और घरों को गर्म रखने के लिए ऊर्जा मिलती है. बिजली पैदा करने वाले बहुत सारे टरबाइन भी इसी गैस से चलते हैं. जर्मनी अपनी गैस की जरूरत का ज्यादातर हिस्सा रूस से आयात करता है और इसकी सप्लाई लगातार घटती जा रही है.
ऊर्जा संकट की चुनौती
जर्मन उद्योगों और आम लोगों के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती इस ऊर्जा संकट से निबटने की है जो महंगाई को भी बढ़ा रहा है. गैस की कीमतों के साथ ही इस पर निर्भर कई और चीजों की कीमतें बढ़ती जा रही हैं.
इसके बाद भी यह आशंका खत्म नहीं हो रही कि सप्लाई बिल्कुल ही रुक जायेगी. बहुत से आम लोगों ने तो अभी से ही आने वाली सर्दियों में घरों को गर्म रखने के लिए लकड़ी जलाने का इंतजामशुरु कर दिया है. हालत यह है कि लकड़ी बेचने वाले कुछ दुकानों को इसके लिए कोटा तय करना पड़ रहा है.
लोगों पर बढ़ती महंगाई का बोझ घटाने और ऊर्जा के उचित इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए ही जर्मन सरकार ने तीन महीनों के लिएसार्वजनिक परिवहन लगभग निशुल्ककर दिया है. इसे आगे बढ़ाने के लिए भी बहस चल रही है. आने वाले महीने कंपनियों के लिए इस चुनौती को और बढ़ायेंगे और यह सवाल बार बार पूछा जा रहा है कि क्या जर्मन कंपनियां और सरकार ऊर्जा के इस संकट के पार जाने का कोई रास्ता निकाल सकेंगी?
एनआर/आरपी (डीपीए)