बिहार चुनाव में मोदी के जादू ने दिलवाई एनडीए को जीत
११ नवम्बर २०२०बिहार विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर में अंतत: जीत एनडीए को मिल गई. सरकार बनाने के जादुई आंकड़े 122 को पार कर एनडीए ने 125 सीटों पर जीत हासिल की. महागठबंधन को 110 सीट मिली जबकि आठ सीटें असदुद्दीन ओवैसी की एएमआइएमआइएम समेत अन्य के खाते में गई. दलों के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो 75 सीट पाकर राजद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. कांग्रेस को 19 तथा वामदलों को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई. इधर एनडीए में भाजपा को 74, जदयू को 43, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा तथा विकासशील इंसान पार्टी को चार-चार सीटें मिलीं. एनडीए को कुल वोट का 34.8 प्रतिशत तो महागठबंधन को भी इतना ही मत हासिल हुआ. हालांकि मतों की गिनती के बाद राजद ने हेराफेरी का आरोप लगाते हुए पुनर्गणना की मांग चुनाव आयोग से की. राजद ने दस सीटों पर तो जदयू व भाजपा ने एक-एक सीटों पर दोबारा गिनती की मांग की है.
पीएम मोदी के दौरे ने बदला रूख
प्रधानमंत्री मोदी विधानसभा चुनाव के दौरान चार बार बिहार आए और 12 जनसभाओं को संबोधित किया. इन जनसभाओं के जरिए उन्होंने करीब 94 विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं को कवर किया. जिन 12 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी सभाएं हुईं उनमें नौ पर एनडीए को जीत हासिल हुई. पहले चरण के चुनाव के बाद की सभाओं में पीएम मोदी ने छठ पूजा के साथ भारत माता और भगवान श्रीराम की चर्चा की. साथ ही उन्होंने जंगलराज की बात कहते हुए तेजस्वी को जंगलराज का युवराज करार दिया तथा जंगलराज के भविष्य के परिणाम की चर्चा करते हुए विकास के नाम पर वोट मांगे. उन्होंने युवराजों की चर्चा करते हुए कहा था कि जैसे यूपी में दो युवराज (अखिलेश-राहुल) नहीं चले वैसे बिहार में भी दो युवराजों (राहुल-तेजस्वी)की जोड़ी नहीं चलेगी. उन्होंने अपहरण को राजद का कॉपीराइट तक कहा था. उन्होंने चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में राज्य की जनता के नाम एक पत्र भी लिखा और कहा कि बिहार में सुशासन के लिए एनडीए की सरकार का दोबारा बनना जरूरी है.
उनकी बातों का असर हुआ और दूसरे चरण के चुनाव में चंपारण में एनडीए ने बेहतर प्रदर्शन किया. वहीं तीसरे चरण के चुनाव में सभी पूर्वानुमानों को उलटते हुए एनडीए ने सीमांचल व कोसी की 78 सीटों में से 52 पर कब्जा जमाया. पीएम मोदी की देशभक्त ईमानदार विकास पुरुष तथा नीतीश कुमार की सुशासन वाले व विकास पुरुष की छवि तेजस्वी के लोकलुभावन वादों पर अंतत: भारी पड़ी. तीसरे चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन अंतिम सभा में नीतीश के आखिरी चुनाव के एलान ने भी हवा का रूख काफी हद तक मोड़ दिया. कहा जाए तो इमोशनल कार्ड चल गया. वहीं राहुल गांधी की बात करें तो उन्होंने आठ विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी सभा की जिनमें महज तीन पर महागठबंधन को जीत मिल सकी. वहीं पटना में बचपन बिताने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बखूबी चुनाव संचालन किया. तेजस्वी के किए गए वादों पर वे खासे आक्रामक रहे. उन्होंने यहां तक कहा कि चुनाव हार जाना स्वीकार है, लेकिन गलत आश्वासन देना मंजूर नहीं है.
लोजपा ने एनडीए को पहुंचाया करारा नुकसान
चुनाव परिणाम की सबसे अहम बात रही कि जदयू के सीटों की संख्या भाजपा के मुकाबले काफी कम हो गई तथा बड़े-बड़े दावे करने वाली लोजपा बुरी तरह धाराशायी हुई. स्थिति इतनी खराब हुई कि चिराग पासवान अपने चचेरे भाई कृष्ण राज को भी जीत नहीं दिला सके. किंतु लोजपा जदयू को नुकसान पहुंचाने में कामयाब रही. हालांकि लोजपा की करनी का नुकसान भाजपा को भी उठाना पड़ा. लगभग 37 सीटों पर एनडीए की हार लोजपा के द्वारा वोट काटे जाने के कारण हुई. तभी तो सोशल मीडिया में किसी ने ट्रोल किया था, "मोदी के हनुमान ने तो लंका की बजाय अयोध्या को ही फूंक डाला."
वैसे चिराग ने कहा भी था, भाजपा से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं. उन्होंने भाजपा के कुछ प्रत्याशियों के खिलाफ तथा जदयू के सभी प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे. लोजपा की वजह से ही जदयू के पांच तो भाजपा के दो मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा. चिराग पासवान ने चुनाव परिणाम आने के बाद मंगलवार को कहा भी, "हम अपने उद्देश्य में सफल रहे. हमारा संगठन राज्य में मजबूत हुआ है. मैंने भाजपा को नुकसान नहीं पहुंचाया, जदयू को जरूर नुकसान पहुंचाया है. हमने संघर्ष का रास्ता चुना है. हमारी नजर 2025 के चुनाव पर है. एनडीए के साथ हमारा गठबंधन बना रहेगा."
शराबबंदी की भी रही महत्वपूर्ण भूमिका
2016 में नीतीश सरकार द्वारा बिहार में लागू की गई शराबबंदी ने भी 2020 के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महागठबंधन के प्रमुख घटक कांग्रेस ने अपने बदलाव पत्र में शराबबंदी की समीक्षा की बात कही. चिराग भी शराबबंदी लागू करने में सरकार को विफल बताकर लगातार नीतीश सरकार पर हमला कर रहे थे. यही वजह रही कि शराबबंदी भी चुनाव का साइलेंट मुद्दा बन गई. किंतु पहले चरण में इसका खासा असर नहीं दिखा. इसका असर दूसरे चरण में तब दिखा जब यह बात फैलने लगी कि अगर नीतीश सरकार गई तो शराबबंदी भी समाप्त हो जाएगी. यह संदेश फैलते ही महिलाओं ने दूसरे चरण में बंपर वोटिंग की. इस चरण में पुरुषों ने करीब 53 प्रतिशत तो महिलाओं ने करीब 59 फीसद वोट डाले. तीसरे चरण में तो जहां पुरुषों ने करीब 55 प्रतिशत तो महिलाओं ने करीब 65 फीसद वोटिंग की.
दस प्रतिशत के इस अंतर ने चुनाव की दिशा ही बदल दी. अब यह साफ हो गया है कि मतदान केंद्रों पर महिलाओं की लंबी कतारों का मतलब आखिर क्या था. दरअसल, उन्हें यह भय हो गया कि नीतीश सरकार जाएगी तो उनके पारिवारिक जीवन का सुख-चैन भी छिन जाएगा. इसके अलावा केंद्र सरकार की उज्जवला योजना व लॉकडाउन के दौरान सीधे खाते में पैसा आना तथा नीतीश सरकार द्वारा पंचायत व स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत तथा सरकारी नौकरी 35 फीसद आरक्षण की व्यवस्था ने भी उन्हें एनडीए के पक्ष में बांधे रखा. वाकई, एंटी इन्कमबैंसी की चर्चा के बीच महिलाओं ने सत्ता की बाजी आखिरकार पलट दी.
चुनाव में कई फैक्टर होते हैं जो जीत या हार का कारण बनते हैं. सीमांचल में इस बार ओवैसी की पार्टी एएमआइएमआइएम की धमक भी महसूस की गई. अब तक यहां मुस्लिम-यादव समीकरण वाले राजद की ही चलती थी. किंतु इस बार राजद को ओवैसी के उम्मीदवारों ने नुकसान ही पहुंचाया. मुस्लिम बहुल 32 सीटों में 18 पर महागठबंधन की हार हुई. इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत से भी ज्यादा है. 2015 में भाजपा इन 32 सीटों में से महज सात पर ही जीत हासिल कर सकी थी. वाकई चुनाव के कई रंग अभी सामने आएंगे. इसके बाद ही समझ आ सकेगा कोई जीता तो क्यों और कोई हारा तो क्यों. फिलहाल कांग्रेस मतों के अपहरण का आरोप लगा रही है वहीं एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में एकबार फिर सरकार बनाने की तैयारी में जुटा है.
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