बॉन शहर में जर्मन किसानों का विरोध प्रदर्शन
जर्मनी के हजारों किसान बॉन शहर में अपने ट्रैक्टर के साथ विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे हैं. ये किसान सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध जताने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
सबसे बड़ा प्रदर्शन बॉन में
यह प्रदर्शन जर्मनी के दूसरे शहरों में भी हो रहा है लेकिन सबसे बड़ी संख्या में किसान बॉन शहर में आए हैं. अनुमान है कि सुबह 10 बजे तक कम से कम 10 हजार किसान और 800 से ज्यादा ट्रैक्टर विरोध करने शहर में दाखिल हुए हैं.
नाइट्रेट सीमित करने का विरोध
जर्मन सरकार ने प्रकृति के संरक्षण के लिए खेतों में नाइट्रेट का प्रयोग सीमित करने का फैसला किया है. किसान इसकी वजह से नाराज हैं और विरोध प्रदर्शन के जरिए अपनी नाराजगी जता रहे हैं.
किसानों की जनसभा
किसानों ने बॉन शहर में मौजूद कृषि मंत्रालय के सामने ट्रैक्टर चला कर विरोध जताया और फिर शहर के मुख्य केंद्र में एक जनसभा में पहुंचे.
सड़कों पर ट्रैफिक जाम
प्रदर्शन के कारण शहर में ट्रैफिक जाम हो गया है, हर तरफ सड़कों से लेकर मैदानों तक में बड़े बड़े ट्रैक्टर ही खड़े दिखाई दे रहे है.
पुलिस की भारी तैनाती
बॉन शहर में भारी संख्या में पुलिस बल को भी तैनात किया गया है, ताकि शहर की व्यवस्था में कोई बड़ी बाधा ना आए और अप्रिय घटना को रोका जा सके.
कृषि नीति को बदलना जरूरी
जर्मनी की कृषि मंत्री यूलिया क्लोएकनर ने किसानों से सहानुभूति जताई लेकिन उनका कहना है कि कृषि नीति को बदलना अब जरूरी हो गया है और इसे रोका नहीं जा सकता.
टिकाऊ खेती को उपाय
सरकार की नीति के केंद्र में यह तय करना है कि खेतों में कितना उर्वरक और खाद डाला जाए जिससे कि भूजल और नदियों के पानी पर इसका असर ना हो.
पर्यावरण की रक्षा भी जरूरी
पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्त्स ने कीटों की रक्षा करने की जरूरत की ओर ध्यान दिलाया है. उनका यह भी कहना है कि खेतों में कीटों के अलावा चिड़ियों की संख्या भी घट रही है.
"जरूरत से ज्यादा नियम से परेशानी"
किसानों के संगठन राइनलैंड एग्रीकल्चरल एसोसिएशन के प्रमुख बर्नहार्ड कोनत्सेन का कहना है, "आधिकारिक नियमों की जो बाढ़ आ गई है उसका अंत होना चाहिए."
मर्कोसुर का विरोध
किसान यूरोपीय संघ और दक्षिण अफ्रीकी कारोबार संगठन के बीच हुए मर्कोसुर मुक्त व्यापार समझौते को बदलने की मांग कर रहे हैं. इसमें खाद और उर्वरकों के इस्तेमाल से जुड़े नियम बनाये गए हैं.
खेती नहीं तो खाना नहीं
किसानों का मानना है कि नए नियमों की वजह से उन किसानों की मुश्किलें बढ़ रही है जिनके लिए खेती पारिवारिक व्यवसाय है. उनका कहना है कि अगर खेती को बचाया नहीं गया तो खाने का संकट होगा.
क्या जरूरी है और क्या हासिल हो सकता है
किसानों का कहना है कि टिकाऊ खेती तक पहुंचने के लिए बदलाव की एक संरचना होनी चाहिए और आपसी सहमति से तय होना चाहिए कि क्या जरूरी है और क्या हासिल किया जा सकता है.