ब्रेक्जिट से ना बातचीत बंद होगी ना ब्रिटेन की मुश्किलें
३१ दिसम्बर २०२०यूरोपीय संघ से औपचारिक तौर पर अलग होने के 11 महीने बाद शुक्रवार से ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के लिए ब्रेक्जिट वो सच्चाई बन जाएगा जिसे दोनों तरफ के लोग रोजमर्रा की जिंदगी में महसूस करेंगे. गुरुवार को संक्रमण काल खत्म होने के बाद ब्रिटेन दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी संघ से पूरी तरह अलग हो जाएगा.
जारी रहेगी बातचीत और मोलतोल
सीमा शुल्क नियंत्रण, लाल फीताशाही और सालों चली अलगाव की प्रक्रिया की कड़वी यादें नए दौर में दोनों को कांटें ही चुभोएंगी. इनसे किसी रोमांच की उम्मीद तो कतई नहीं है. एक दूसरे से अलग होने की प्रक्रिया भले ही साढ़े चार साल चली हो, लेकिन इसके ढीले सिरों को कसने में अभी और कई महीने या फिर साल लग जाएंगे. सेंटर फॉर यूरोपीयन रिफॉर्म थिंक टैंक के चार्ल्स ग्रांट का कहना है , "किसी ना किसी वजह को लेकर ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के साथ आने वाले कई दशकों तक लगातार बातचीत करते रहना होगा."
ब्रेक्जिट ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच असहज रिश्तों का अंत है. ब्रिटेन ने 1973 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय से नाता जोड़ा था लेकिन उसने कभी भी इसके सबसे मजबूत एकीकरण को पूरी तरह से नहीं अपनाया. यूरोपीय संघ दूसरे विश्वयुद्ध की तबाही और विध्वंसकारी राष्ट्रवाद के मोहभंग से निकला था. दो विश्वयुद्धों के विजेता और औपनिवेशिक दौर की यादों में खोए ब्रिटेन ने इस प्रोजेक्ट को जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों की तरह नहीं देखा.
हालांकि इसके बाद भी वास्तव में यूरोपीय संघ से अलग होने का विचार उतनी मजबूती तब तक नहीं पकड़ सका था जब तक कि ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी ताकतवर नहीं हो गई. 2016 के जनमतसंग्रह में भी वास्तव में वोटरों ने यथास्थिति के खिलाफ वोट दिया था और बाहर जाने के फैसले को 48 फीसदी के मुकाबले 52 फीसदी की बहुत मामूली बढ़त ही मिली थी. ब्रेक्जिट के फैसले से देश की राजनीति में जो भूचाल आया, उसके झटके अभी भी रह रह कर महसूस हो रहे हैं. अलग होने का फैसला करने में साढ़े तीन साल लगे और कारोबारी समझौते पर पहुंचने में तमाम उठापटक के बाद 11 महीने.
ब्रिटेन की 'संप्रभुता'
क्रिसमस की पूर्व संध्या पर हुए समझौते में दोनों पक्षों के बीच प्रमुख मांगों पर सहमति बन गई है. इसने यूरोपीय संघ के बाजारों को ब्रिटेन के लिए शुल्क मुक्त बना कर जरूरी संरक्षण तो दे दिया है लेकिन इसके लिए ब्रिटेन को सामाजिक, रोजगार और पर्यावरण के उच्च मानकों को बनाए रखना होगा. यूरोपीय कोर्ट ऑफ जस्टिस के दायरे से बाहर कर ब्रिटेन को उसकी "संप्रभुता" भी दे दी गई है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे, "संप्रभु और समान पक्षों के बीच हमारे रिश्तों में नया शुरुआती बिंदु" कहा.
यूरोपीय संघ इसे अलग तरीके से देखता है. वह खुद को सुपीरियर पार्टनर मानता है जो 45 करोड़ ग्राहकों का संघ है और जिसमें जर्मनी और फ्रांस जैसी आर्थिक महाशक्तियां हैं. दूसरी तरफ ब्रिटेन महज 6.7 करोड़ लोगों की अर्थव्यवस्था है. यूरोपीय संघ मानता है कि ब्रिटेन को ब्रेक्जिट का दर्द महसूस होगा. यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेर लेयन का कहना है, "हम असाधारण शक्तियों में एक हैं, ताकतवर जगह पर होने की वजह से आप बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं."
ब्रिटेन में ब्रेक्जिट के समर्थक नई कारोबारी बाधाओं के बदले आजादी और "संप्रभुता" के बारे में सोच कर खुश हो सकते हैं. ब्रिटिश प्रधानमंत्री इस नई "संप्रभुता" के साथ क्या करने वाले हैं, इसकी उन्होंने कुछ झलकियां ही दिखाईं हैं. मसलन, पूरी दुनिया के साथ कारोबारी समझौते, "तेज और बेहतर नियमों" के जरिए खुद को ज्यादा प्रतियोगी बनाना और उच्च तकनीक के क्षेत्र का विस्तार करना. अब तक यूरोपीय संघ का देश रहा ब्रिटेन अब उसका आर्थिक प्रतिद्वंद्वी बन जाएगा.
यूरोप की चिंता
यूरोपीय संघ को हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि ब्रिटेन मानकों को घटा कर कम टैक्स वाला "सिंगापुर ऑन थेम्स" बन कर यूरोप के दरवाजे पर ही उससे बढ़त ले लेगा. यही वजह है कि ब्रेक्जिट की डील में "समान स्तर" बनाए रखने की बात शामिल है. इसके तहत एक सीमा तय की गई है जिसके आगे जाने पर ब्रिटेन को हर्जाना देना होगा.
हालांकि ब्रिटेन इन सीमाओं से परेशान हो सकता है. इसका नतीजा भविष्य में तनाव, कहासुनी और फिर मोलतोल के रूप में सामने आएगा. समझौते की हर पांच साल में समीक्षा होनी है तो जाहिर है बहस, मुबाहिसे और बातचीत तो होगी ही. बहुत से लोगों को उम्मीद है कि आने वाले सालों में यह घटता जाएगा. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में यूरोपीय संघ कानून की प्रोफेसर कैथरीन बर्नार्ड का कहना है, "अगर आप सोचते हैं कि एक झटके में चमत्कार हो जाएगा तो आप निराश होंगे." दोनों के बीच भरोसे की कमी तो पहले ही हो गई है और हाल की कुछ घटनाओं ने इसके संकेत दे दिए हैं कि क्या हो सकता है.
ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच ज्यादातर सामान इंग्लिश चैनल के जरिए आता है. ब्रिटेन में कोविड-19 के नए स्ट्रेन के तेजी से फैलाव का पता चलने के बाद 20 दिसंबर को फ्रांस ने जब इंग्लिश चैनल के आर पार आना जाना बंद कर दिया तो ट्रैफिक का वो जंजाल फैला जो रास्ता खोलने के बाद भी कई दिनों तक जारी रहा.
ब्रिटेन की टेब्लॉयड प्रेस ने पहले ही फ्रांस के बुरे मनोभाव की कल्पना कर फ्रांस के राष्ट्रपति पर आरोप लगाया कि वो क्रिसमस के मौके पर ब्रेक्जिट के कारण ब्रिटेन को परेशान कर रहे हैं. फ्रांस ने इस बात से इनकार किया कि सीमा बंद करने का ब्रेक्जिट से कोई लेना देना है. हालांकि राष्ट्रपति के दफ्तर ने इस हफ्ते बयान जारी किया है कि ब्रिटेन समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करता है या नहीं, यह देखने के लिए "फ्रांस पहले दिन से ही बिल्कुल सजग रहेगा."
ब्रिटेन की समस्याएं
ब्रिटेन भले ही अकेले चलने की बात कह रहा है लेकिन ज्यादातर यूरोपीय संघ के नेता सहयोग को ज्यादा जरूरी मान रहे हैं खास तौर से दुनिया भर में फैली महामारी को देखते हुए. इसके साथ ही अमेरिका और चीन पहले ही कूटनीति के खेल में यूरोप को निचोड़ रहे हैं. उर्सुला फॉन डेर लेयन का कहना है, "हमें बयानों से अलग हो कर खुद से पूछना चाहिए कि वास्तव में संप्रभुता का मतलब क्या है. यह हमारी ताकत को मिलाने और बड़ी ताकतों वाली दुनिया में एक हो कर बात करने के बारे में है. संकट के समय केवल अपने पैरों पर चलने की बजाय यह एक दूसरे को खींच कर ऊपर ले जाने के बारे में है."
ब्रेक्जिट पहले ही ब्रिटेन को अस्थिर कर चुका है. स्कॉटलैंड में आजादी के लिए समर्थन बढ़ रहा है. स्कॉटलैंड ने 2016 में भारी मतों से यूरोपीय संघ में बने रहने का समर्थन किया था. यूरोपीय संघ के साथ सीमा बांटने वाला आयरलैंड आर्थिक रूप से बाकी ब्रिटेन की तुलना में संघ के ज्यादा करीब रहेगा. इसके लिए ब्रेक्जिट में ही प्रावधान किया गया है और यह ब्रिटेन को उससे दूर भी ले जा सकता है.
यूरोपीय संघ की ओर से ब्रेक्जिट के प्रमुख वार्ताकार मिषाएल बार्नीयर आने वाले दौर में ब्रिटेन के लिए मुश्किल समय देख रहे हैं. बार्नीयर का कहना है, "जब आप आज की दुनिया को देखते हैं तो एक खतरनाक, अस्थिर और असमान दुनिया दिखाई देती है, मैं निश्चित रूप से सोचता हूं कि साथ रहना अच्छा है, पड़ोसियों के साथ एक संघ, एक बाजार बेहतर है बजाए इसके कि हर कोना केवल अपने हितों के साथ अलग रहे."
एनआर/एके(एपी)
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