यूरोपीय किलेबंदी की शरण में मैर्केल
३ जुलाई २०१८पिछले दो हफ्ते चांसलर के मुकद्दर का फैसला करने से कहीं ज्यादा अहम थे. ये दो हफ्ते यूरोपीय शरणार्थी नीति की बुनियादी दिशा को लेकर कड़वे संघर्ष से भरे रहे. जो सीमाओं को बंद करने के हक में थे, वे जीत गए. ये ऐसे राजनेता हैं जो चाहते हैं कि लोगों को जान जोखिम में डाल कर भूमध्य सागर को पार करने से रोक सकें.
ऐसा करने के लिए सीमा पर दोबारा सुरक्षा प्रबंध को खड़ा किए जाने की जरूरत पड़ेगी और साथ ही अफ्रीका में कैंप भी बनाने होंगे. भविष्य में शरणार्थियों को तब तक इंतजार करना होगा, जब तक तय न हो जाए कि यूरोप में वाकई उनकी जरूरत है या नहीं. यहां आने की वजह उनके पास मौजूद शरण पाने का अधिकार है या फिर मजदूरों के तौर पर उनकी जरूरत है. यूरोप में इस स्थिति के साथ सख्ती से निपटा जाएगा. सैद्धांतिक रूप से शरणार्थियों को झटपट सेंटरों या फिर कैंपों में जगह दी जाएगी. उनके मामलों पर तेजी से फैसला होगा. अवांछित लोगों को फुर्ती के साथ वापस भेजा जाएगा.
जर्मन राजनीति का तमाशा
पिछले हफ्ते अंगेला मैर्केल अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ एक बड़ी योजना पर सहमत हुई हैं और इसके साथ ही उन्होंने अपनी पिछली खुली सीमाओं वाली नीति को खारिज कर दिया है. इसी योजना के बाद आखिरकार गृह मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर नरम पड़े हैं और पिछले कुछ दिनों से चल रहे जर्मन राजनीति के एक दुखद तमाशे का समापन हुआ है. इस तरह, फिलहाल जर्मन सरकार के असतित्व पर मंडरा रहा खतरा टल गया है.
यह तो खुशखबरी है. ना सिर्फ जर्मनी के लिए बल्कि यूरोप के लिए भी. सिर्फ पॉपुलिस्ट लोगों की ही इस बात में दिलचस्पी थी कि अनिश्चितता वाले इस दौर में यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था सरकारी स्तर पर एक संकट में घिर जाए. देश में स्थिरता लाना बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह भी एक वजह है कि मैर्केल इतनी जल्दी एक यूरोपीय शिखर सम्मेलन बुलाने में कामयाब रहीं जहां नई यूरोपीय आप्रवासी और शरणार्थी नीति के व्यापक दिशा निर्देशों पर सहमति बनी. यूरोप को पता है कि इस समय अंगेला मैर्केल के पास देने के लिए क्या है.
शरणार्थी मुद्दे पर गंभीर मतभेद
कोई ठोस समाधान नहीं
इससे एक गंभीर संकट का तो अंत हो गया. लेकिन हम यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि चुनौतियों का असल उत्तर अब भी नहीं खोजा गया है. आखिरकार, किस उत्तर अफ्रीकी देश में आप्रवासियों के रिसेप्शन कैंप बनाए जाएंगे? इस बारे में दूसरी तरफ से अभी तक प्रतिक्रिया बेहद आक्रामक रही है. अगर आप मानवाधिकारों को इस न्यूनतम स्तर पर ही बनाए रखना चाहते हैं, तो फिर किन देशों के साथ आप संबंध रखेंगे? अगर शरणार्थियों के चलने फिरने पर पाबंदियां लगाई जाएंगी तो फिर उनकी देखभाल कौन करेगा? अल्जीरिया से मिली ताजा तस्वीरें दिखाती हैं कि नतीजे क्या हो सकते हैं. हजारों लोगों को रेगिस्तान में भेज दिया गया जिनमें बच्चे और गर्भवती महिलाएं भी शामिल थीं. 50 डिग्री तापमान में वे भूख और प्यास से मर गए. जितने शरणार्थी पूरे यूरोप में आए हैं उससे कहीं ज्यादा पहले ही लेबनान जैसे देशों ने अपने यहां लिए हैं. यह भी अलग थलग पड़ते यूरोप के सच का एक हिस्सा है.
जवाबों से ज्यादा सवाल
इस वक्त यूरोप में जवाबों से ज्यादा सवाल मौजूद हैं. यहां भी यह अनिश्चितता है कि किस देश में कैंप बनाए जाएंगे. कौन सा देश आखिरकार ग्रीस और इटली पर पड़ रहे बोझ को उठाने के लिए तैयार है? इन्हीं दोनों देशों में यूरोपीय संघ की सबसे लंबी बाहरी सीमाएं हैं और वहां सबसे ज्यादा शरणार्थी पहुंचते हैं. क्रिश्चियन डैमोक्रैट्स (सीडीयू) और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के बीच तुरंत समझौता इसलिए हो पाया क्योंकि सब कुछ बहुत अस्पष्ट है. जिस चीज को तुरंत लागू किया जा सकता है, वह है सीमा प्रबंधन को मजबूत करना. यूरोपियन बॉर्डर और कोस्ट गार्ड एजेंसी फ्रंटेक्स और बाड़ बनाने वाली कंपनियों के लिए आने वाला समय बहुत ही फायदे वाला होगा.
मदद मांगते पुतिन, तो रिफ्यूजी बने ट्रंप
अंगेला मैर्केल पिछले तीन साल से एक मानवीय शरणार्थी नीति के लिए लड़ रही थीं. इस दौरान उन्होंने गलतियां भी कीं. संपर्क कम रहा और इसमें तकनीकी खामियां भी रहीं. लेकिन अब उनके अपने देश में मौजूदा मूड, नई पार्टी के उदय, यूरोप की परिस्थितियों और उनकी सरकार में सहयोगी सीएसयू ने उन्हें एक उत्पीड़न की नीति को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है.
जाहिर है, उनका यह विश्वास नहीं बदलेगा कि जो लोग जरूरतमंद हैं उनकी मदद करनी चाहिए. अब उनके लिए यह सुनिश्चित करना और भी महत्वपूर्ण होगा कि ना सिर्फ बाड़ बनाई जाए, बल्कि सरकार उचित तरीके से इमिग्रेशन कानूनों को लागू करे, अफ्रीकी देशों के साथ नई साझेदारी की जाए और उन लोगों को पहले से कहीं ज्यादा मदद दी जाए, जो यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि लोग अपने मूल देशों में रह पाएं.
बाड़ और सीमा सुरक्षा बल फिलहाल यूरोपीय सरकारों की रक्षा कर सकते हैं. लेकिन वे किसी भी तरह से स्थायी समाधान नहीं हैं.
किस देश में रहते हैं सबसे ज्यादा विदेशी लोग