भारत अमेरिका इतने करीब कभी नहीं रहे
१२ नवम्बर २०१०फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग "ओबामा के शब्दों का इंतजार" शीर्षक से अपने लेख में भारत को ओबामा के समर्थन पर जर्मनी की प्रतिक्रिया के बारे में लिखता है
विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने भरोसा व्यक्त किया, यह जर्मन रुख के अनुरूप है कि ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र में भारत की भावी भूमिका की सराहना की. बर्लिन लौट कर उन्होंने बताया कि उन्हें पता है कि अमेरिका यूएन में जर्मनी के काम की भी सराहना करता है. सरकारी प्रवक्ता ने यह भी बताया कि अमेरिकी पक्ष ने ओबामा के भाषण से पहले बर्लिन को यह जानकारी दे दी थी कि राष्ट्रपति यह शब्द कहेंगे.
अखबार ने अपनी रिपोर्ट में यह सवाल पूछा है कि ओबामा ने अब तक सिर्फ जापान और भारत के लिए ही सुधार के बाद वाली यूएन व्यवस्था में बड़े महत्व की चर्चा क्यों की है. कुछ विश्लेषक इसे स्थायी सदस्यता के दावेदार जी-4 को बांटने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं, जिसमें जापान और भारत के अलावा जर्मनी और ब्राजील भी हैं. अख़बार ने इस पर भी टिप्पणी की है कि ओबामा अपने साथ 250 उद्योगपतियों को ले गए थे और तीन दिनों के दौरे के साथ उन्होंने भारत पर अपने अब तक के कार्यकाल में किसी और देश से ज्यादा ध्यान दिया है.
एफपाक क्षेत्र में नीतियों और परमाणु समझौते को लागू करने पर विवादों से परे, आउटसोर्सिंग और जलवायु नीति पर मतभेदों से परे अमेरिका और भारत एक दूसरे के इतने करीब कभी नहीं थे. और किसी देश के साथ वॉशिंगटन इतने सैनिक अभ्यास नहीं करता. अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अधिकांश विदेशी छात्र भारत के हैं. और चार साल पहले के मुकाबले इस बार दौरे का शायद ही विरोध हुआ, यहां तक कि कम्युनिस्ट भी शांत रहे.
आर्थिक दैनिक हांडेल्सब्लाट ने लिखा है कि ओबामा ने अपने मेजबानों की तारीफ में कोई कसर नहीं छोड़ी. राष्ट्रपति का मानना है कि दोनों देशों का सहयोग 21वीं सदी पर अपनी छाप छोड़ेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को आज ही महाशक्ति समझते हैं और इस दक्षिण एशियाई देश के साथ सामरिक साझेदारी को और बढ़ाना चाहते हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ भेंट के बाद ओबामा ने कहा, भारत विश्व मंच पर प्रमुख भूमिका रखता है. यह कोई संयोग नहीं कि वे पद ग्रहण करने के बाद से किसी और देश में इतने लंबे दौरे पर नहीं गए हैं जितना भारत में.
म्युनिख से प्रकाशित ज्युड डॉयचे त्साइटुंग का कहना है कि भारत और पाकिस्तान में बहुत कुछ साझा नहीं है लेकिन उनकी अफगान नीति का एक जैसा मकसद है, दूसरे के प्रभाव को कम करना. और कश्मीर विवाद अब भी दोनों गैर बराबर पड़ोसियों पर हावी है. अख़बार लिखता है
ओबामा अब भी मध्यस्थ की जरूरी भूमिका की मांग करने से कतरा रहे हैं, जो अवरुद्ध वार्ता को गति दे सकती है. अब तक भारत इस तरह की मध्यस्थता से इंकार करता रहा है. अब जबकि राष्ट्रपति ने सुरक्षा परिषद की सीट के लिए भारत को समर्थन दिया है तो वे संभवतः धीरे धीरे भारत के रुख में नर्मी की उम्मीद कर रहे हैं. तब उनकी मनुहार एक चतुर रणनीति का हिस्सा है जो क्षेत्र में दूरगामी रूप से अधिक स्थिरता ला सकता है.
फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग भारत और पाकिस्तान के मुश्किल संबंधों में अमेरिकी भूमिका की चर्चा करते हुए लिखता है
ओबामा को, जिनके राजनीतिक भविष्य का फैसला संभवतः अफगानिस्तान में होगा, सावधानी से बोलना चाहिए. मौखिक हमले अफगानिस्तान समस्या के समनाधान में पाकिस्तान की तैयारी को शायद ही बढावा देंगे. इसलिए ओबामा ने अभिव्यक्ति को इशारों पर छोड़ दिया है. अपनी पहली रात उन्होंने ताज होटल में गुजारी, जो दो साल पहले पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले का लक्ष्य था. भारत पहुंचने के तुरंत बाद ओबामा ने हमले में मारे गए 160 लोगों के परिजनों से मुलाकात की.
बर्लिन से प्रकाशित वामपंथी दैनिक नौएस डॉयचलांड का कहना है कि व्हाइट हाउस राष्ट्रपति के एशिया दौरे का इस्तेमाल विश्व में अमेरिका के प्रभाव, शक्ति और दबदबे को फिर से कायम करने के लिए करना चाहता है.
ऐसा करने के लिए एशिया को फोकस में लाना होगा, उसके 8 फीसदी विकास दर वाले जीवंत कारोबार और आर्थिक क्षमता के कारण (कहा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार टॉम डोनिलॉन ने). जो बचा वह अहसास था कि ओबामा की एशिया यात्रा एशिया के दूसरे देशों के साथ निकट संबंधों के जरिए विश्व मंच पर चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश है.
बर्लिन के ही वामपंथी दैनिक टात्स ने ओबामा के मुंबई में हुए कार्यक्रमों पर टिप्पणी करते हुए लिखा है
अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी पत्नी के साथ एक बेसिक स्कूल में बॉलीवुड टाइप डांस किया. उन्होंने कॉलेज के छात्रों के साथ खुली और धैर्यपूर्ण बहस की जिन्होंने उन पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अमेरिकी विफलता के आरोप लगाए. वे अपने आदर्श महात्मा गांधी के स्मारक गए. यह पद संभालने के बाद उनका सबसे लंबा राजकीय दौरा था और ओबामा ने खुद इस पर जोर दिया कि वे इसके साथ एक संकेत देना चाहते थे. हर जगह उन्होंने नए भारत की विशालता और ताकत की चर्चा की.
संकलन: आना लेमन/महेश झा
संपादन: ए कुमार