बंदरगाहों के जरिये एक दूसरे होड़ करते भारत और चीन
९ दिसम्बर २०१७चाबहार ईरान के सीमान्त प्रांत सिस्तान बलूचिस्तान का शहर है. करीब 2,00,000 आबादी वाला यह शहर समुद्र के किनारे बसा है. ओमान की खाड़ी की तरफ जाने वाले जहाज इसी के सामने से गुजरते हैं. चाबहार से पाकिस्तान सटा हुआ है. आम तौर ईरान के बड़े नेता चाबहार बहुत कम ही आते हैं. लेकिन दिसंबर 2017 की शुरूआत में वहां ईरान के राष्ट्रपति, अफगानिस्तान के शीर्ष अधिकारी और भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पहुंचीं. कई साल के निर्माण के बाद गहरे बंदरगाह का गेट खोला गया. उद्घाटन में 17 देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे. सबको इस नये पोर्ट से बड़ी उम्मीदें हैं.
भारत-ईरान-अफगानिस्तान सहयोग
चाबहार पोर्ट की सामरिक रणनीति के लिहाज से ईरान और पूरे इलाके के लिए बेहद अहम है. आर्थिक और भूराजनैतिक कारण इसे खास बनाते हैं. पाकिस्तान के साथ विवाद के चलते भारत को अफगानिस्तान और ईरान तक सीधे पहुंचने में मुश्किल होती रही है. नई दिल्ली खाड़ी के देशों, मध्य पूर्व और मध्य एशिया तक तक भी आसानी से पहुंचना चाहती है, लेकिन बीच में पाकिस्तान आ जाता है. इन देशों के साथ भारत के आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते पुराने हैं. भारत इनमें गर्मजोशी लाना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान जमीन के रास्ते भारत को वहां तक पहुंचने से रोकता है.
चाबहार पोर्ट भारत का यह सिरदर्द दूर करेगा. हिंद महासागर में बना पोर्ट चाबहार भारत से करीब 900 किलोमीटर दूर है. समुद्र के वहां तक सीधी पहुंच भारत के लिए बहुत अहम है. चाबहार के जरिये भारत, ईरान और मध्य एशिया के बाजार तक आसानी से पहुंचेगा. लंदन सेंटर फॉर बलूचिस्तान स्ट्डीज के अब्दोल सत्तार दुशौकी के मुताबिक, "बेहतर कारोबार के जरिये भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया में अपना राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ना चाहता है." यही वजह है कि नये पोर्ट की क्षमता बढ़ाने के लिए भारत ने अकेले 50 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त निवेश किया है.
पर्दे के पीछे बड़े खिलाड़ी
इलाके में पहले से ही एक गहरा बंदरगाह मौजूद है. चाबहार से करीब 170 किलोमीटर दूर, पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट. चीन से मिली अथाह वित्तीय मदद के जरिये पाकिस्तान ने समुद्र से बालू निकालकर पोर्ट को गहरा किया है. ग्वादर पोर्ट चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का आखिर बिंदु है. इस पोर्ट के जरिये पश्चिम तक अपना माल तेजी से और बड़ी मात्रा में पहुंचाना चाहता है. फिलहाल यूरोप तक पहुंचने के लिए चीनी जहाजों को हिंद महासागर में भारत का चक्कर काटना पड़ता है. ग्वादर पोर्ट को चीन की सेना अड्डे के रूप में भी इस्तेमाल कर सकती है. भारत इसे चीन और पाकिस्तान के बढ़ते सहयोग को खतरे की तरह देखता है.
वहीं ईरान और भारत का सहयोग पाकिस्तानी सेना को चिंता में डाल रहा है. हालांकि तेहरान यह साफ कर चुका है कि भारत के साथ सहयोग का मकसद पाकिस्तान या चीन के विरुद्ध नहीं है, लेकिन इस्लामाबाद इस बात को पचा नहीं पा रहा है. हाल के समय में पाकिस्तान और ईरान के बीच भी आतंकवादी हमलों के लेकर विवाद होते रहे हैं. ईरान का आरोप है कि पाकिस्तान के उग्रवादी उसकी सीमा में घुसकर सैनिकों पर हमला करने के लिए तैयार रहते हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह बड़ी चुनौती साबित होगा. अब अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों में पाकिस्तान के प्रोडक्ट्स को भारतीय माल से चुनौती मिलेगी. हो सकता है कि पाकिस्तानी कारोबारियों को नुकसान झेलना पड़े.
अमेरिका ईरान को संदेह से देखता है, लेकिन तेहरान और नई दिल्ली के बढ़ते सहयोग से कोई बड़ी आपत्ति नहीं है. अक्टूबर में अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने चाबहार में भारत के निवेश को हरी झंडी दिखाई. इसकी वजह शायद अमेरिका और भारत की बढ़ती नजदीकी भी है. अमेरिका भी इलाके में चीन के प्रभाव को कम से कम करना चाहता है.
ईरान की इच्छा
चाबहार पोर्ट का विस्तार ईरान के लिये बेहद फायदेमंद है. इससे ईरान के आर्थिक विकास को मदद मिलेगी. तेहरान को लगता है कि भविष्य में वह यूएई के बंदरगाहों से भरोसे नहीं रहेगा. चाबहार ईरान का पहला गहरा बंदरगाह है. युद्ध या संकट की स्थिति में अब ईरान के पास अपना बंदरगाह है. चाबहार ईरान के सबसे गरीब प्रांत का हिस्सा है. इलाके की ज्यादातर आबादी बलोच समुदाय की है. ईरान में वे धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक हैं. इलाके को ईरान के लिए आग का गोला माना जाता है. तेहरान को उम्मीद है कि चाबहार की मदद से सिस्तान बलूचिस्तान में समृद्धि आएगी और शांति बहाल होगी.
(सऊदी अरब से शीत युद्ध जीतता ईरान)
ताहेर शिरमोहम्मदी/ओएसजे