भारत के सब्र की सीमा हैः राष्ट्रपति
१४ अगस्त २०१३भारत की आजादी की 66वीं वर्षगांठ पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हाल में भारत ने सुरक्षा के लिए घरेलू और बाहरी चुनौतियां देखी हैं. पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि पड़ोसियों के साथ दोस्ताना रिश्ते बनाने की निरंतर कोशिशों के बावजूद सीमा पर तनाव रहे हैं और नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन हुआ है, जिसमें जान का त्रासद नुकसान हुआ है. "घरेलू सुरक्षा और राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे."
लोकतंत्र को मजबूत बनाने की अपील करते हुए मुखर्जी ने कहा कि लोकतंत्र हर पांच साल पर वोट करने से ज्यादा है, "वह जीवंत संसद, निष्पक्ष न्यायपालिका, जिम्मेदार मीडिया, सजग नागरिक, समाज और प्रतिबद्ध नौकरशाही में सांस लेता है." उन्होंने आधुनिक लोकतंत्र की राह पर देशभक्ति, करुणा, सहनशीलता, संयम, ईमानदारी, अनुशासन और महिलाओं के लिए आदर को जीवंत बनाने की अपील की.
राष्ट्रपति ने कहा कि संस्थाएं राष्ट्रीय चरित्र का आईना होती हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि इस समय सरकार और राष्ट्रीय संस्थाओं के काम के साथ व्यापक मोहभंग देखा जा रहा है. विधायिका कानून बनाने की जगह के बदले लड़ाई के मंच दिखते हैं. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती बन गया है. भारतीय राष्ट्रपति ने कहा कि देश का मूल्यवान संसाधन निष्क्रियता और उदासीनता की भेंट चढ़ रहा है.
मुखर्जी ने कहा कि सफल लोकतंत्र और सफल अर्थव्यवस्था में सीधा संबंध होता है. आर्थिक सफलता के लिए उन्होंने स्थानीय निकायों को मजबूत बनाने की मांग करते हुए कहा कि समावेशी शासन के बिना समावेशी विकास संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि 1.2 अरब लोगों के विकासशील देश में विकास और बंटवारे पर बहस जरूरी है, "विकास से बंटवारे की संभावना पैदा होती है और बंटवारे से विकास टिकाऊ बनाता है."
राष्ट्रपति ने शिक्षा में सुधारों की मांग करते हुए कहा कि विश्वस्तरीय यूनिवर्सिटियों के बिना भारत विश्वस्तरीय शक्ति नहीं बन सकता. उन्होंने विश्वविद्यालय की तुलना वटवृक्ष से करते हुए कहा कि उसकी जड़ें आधारभूत शिक्षा और स्कूलों का नेटवर्क है जो हमारे समाज की बौद्धिक ताकत का निर्माण करता है. उन्होंने ज्ञान रूपी वृक्ष के हर पहलू में निवेश करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
रिपोर्ट: महेश झा (पीटीआई)
संपादन: ए जमाल