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अब अंडमान-निकोबार द्वीप बनेंगे गढ़ भी और बाजार भी

राहुल मिश्र
१७ अगस्त २०२०

अंडमान-निकोबार के निवासियों के लिए भारत की मुख्य भूमि के मुकाबले इंडोनेशिया और थाईलैंड ज्यादा करीब हैं. अब तक भारत से लगभग कटे हुए इस हिस्से को अब मेनस्ट्रीम में लाने की कोशिश की जा रही है.

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Indien North Sentinel Island
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/G. Singh

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 अगस्त 2020 को देश की पहली सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) का ऑनलाइन उद्घाटन कर इसे राष्ट्र को समर्पित किया. इस ऑप्टिकल फाइबर केबल लाइन का मुख्य उद्देश्य सुदूर अंडमान-निकोबार द्वीपसमूहों को देश के प्रमुख शहरों से जोड़ना है जिसमें चेन्नई जुड़ने वाला सबसे पहला बड़ा शहर है. 2300 किलोमीटर लंबी यह केबल लाइन न सिर्फ लंबाई और तकनीक की दृष्टि से, बल्कि इन द्वीपसमूहों को देश की मुख्य संचारधारा से जोड़ने के संदर्भ में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है.

बरसों से विकास की दौड़ में पीछे चल रहे अंडमान-निकोबार के लिए यह एक बड़ी खबर है क्योंकि बिना ऑप्टिकल फाइबर केबल प्रणाली के जी रहे इस द्वीपसमूह के लोगों के लिए अब ऑनलाइन गतिविधियां जैसे ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली और बैंकिंग सुविधाएं, टेली-मेडिसिन, ऑनलाइन व्यापार और संचार काफी आसान बन जाएगा. आशा की जा रही है कि इन सुविधाओं से अंडमान-निकोबार का व्यापार और पर्यटन भी बढ़ेगा. यह सुविधा लॉन्च होने के कुछ ही दिनों के अंदर भारत की एक प्राइवेट टेलिकॉम कंपनी एयरटेल ने इस द्वीपसमूह में 4जी नेटवर्क भी लॉन्च कर दिया है जो एक बड़ा कदम है.

Karte North Sentinel Island EN

572 द्वीपों वाला अंडमान-निकोबार

अपने वक्तव्य में मोदी ने कहा कि अंडमान-निकोबार के 12 द्वीपों को जैविक उत्पादों, नारियल-संबंधी उद्योगों और समुद्री व्यापार के उच्च-प्रभाव वाले केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा. साथ ही उन्होंने द्वीपसमूहों के बीच 300 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय हाइवे के पूरा होने की आस भी जताई और कहा कि अंडमान-निकोबार को देश के अन्य शहरों से हवाई नेटवर्क से जोड़ कर इस क्षेत्र को पर्यटन का आकर्षण भी बनाया जाएगा.

तीन साल पहले विकास प्राधिकरण की स्थापना के बाद से संभवतः समेकित और जनता-उन्मुख विकास पर भी जोर दिया गया है. 37 बसे हुए द्वीपों समेत कुल 572 द्वीपों वाला अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के क्षेत्र में स्थित भारत की केंद्र सरकार के नियंत्रण में केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर आता है. पर्यावरण संरक्षण और वहां सदियों से बसी जनजातियों के हितों को देखते हुए अंडमान-निकोबार पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना देना चाहिए था.

Rahul Mishra
राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैंतस्वीर: Privat

यह दिलचस्प है कि इस परियोजना की आधारशिला नरेंद्र मोदी ने ही दिसंबर 2018 में पोर्ट ब्लेयर में तब रखी थी जब वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अंडमान-निकोबार में झंडा फहराने की 75वीं वर्षगांठ मनाने वहां पहुंचे थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अंडमान-निकोबार के इतिहास में तो योगदान है ही, उनका इन द्वीपसमूहों को भारत के सामरिक मानचित्र में फिर से लाने में भी योगदान है.

आधुनिक भारत के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के सामरिक महत्व को उजागर करने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. मोदी की 2018 की यात्रा इस मामले में रोचक थी. 2018 में मोदी ने तीन द्वीपों को नए नाम दिए. हैवलाक द्वीप को स्वराज द्वीप का नाम दिया गया, नील द्वीप को शहीद द्वीप, और रॉस द्वीप को नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप की संज्ञा दी गई. यहां यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि किस द्वीप को क्यों और कैसे नामकरण किया गया, महत्वपूर्ण यह है कि इसने भारत के पूर्वी एशिया के तमाम देशों के साथ दशकों पुराने रिश्तों को फिर से ताजा कर दिया. यदि एक द्वीप का नाम राजेंद्र चोल के नाम पर भी रखा जाता तो सोने पर सुहागा हो जाता.

एक नजर इतिहास पर

बरसों पहले, 2001 में अंडमान-निकोबार द्वीपसमूहों में भारतीय सेना की पहली और अकेली ट्राई-सर्विस कमांड – अंडमान-निकोबार कमांड (एएनसी) की स्थापना की गई. ऐसा नहीं था कि भारत ने 2001 में पहली बार अंडमान-निकोबार के सामरिक और रणनीतिक महत्व को समझा था. हजार साल पहले चोल राजा राजेंद्र चोल (1014-1042) ने अपने शासन काल में इन द्वीपसमूहों पर आधिपत्य स्थापित कर दक्षिण पूर्व एशिया पर नियंत्रण कायम रखा. इनमें श्रीविजय साम्राज्य के साथ चोल राजाओं के अभियानों का वर्णन अभिलेखों और यात्रा-वृतांतों में मिलता है.

Symbolbild: Indigener Stamm der Sentinelese
तस्वीर: picture-alliance/AP/nthropological Survey of India

रणनीतिक तौर पर अंडमान-निकोबार की महत्ता इस बात से समझी जा सकती है कि इस द्वीपसमूह का सबसे दूर का क्षेत्र इंडोनेशिया से मात्र 90 मील की दूरी पर है. यदि अंडमान-निकोबार के नजरिए से भारत के पड़ोसियों की गिनती की जाय तो श्रीलंका के अलावा इंडोनेशिया, थाईलैंड और म्यांमार भारत के सबसे नजदीक के पड़ोसियों में आते हैं. यह तीनों ही देश भारत की एक्ट ईस्ट नीति के अंतर्गत भी आते हैं. इस लिहाज से अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह भारत की एक्ट ईस्ट नीति के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के द्वार हैं.

हिंद महासागर में बढ़ रहे खतरों जैसे समुद्री डकैती, गैरकानूनी हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी और तमाम गैर पारंपरिक सुरक्षा खतरों से लड़ने में और साथ ही दूसरे देशों के बढ़ते दबदबे से निपटने में भी एक विकसित और नेटवर्कड अंडमान-निकोबार का बड़ा योगदान हो सकता है. सागर (एसएजीएआर) नीति हो या इंडो-पैसिफिक, एक्ट ईस्ट हो या नेबरहुड - मोदी की विदेशनीति में समुद्री आयाम महत्वपूर्ण हैं और इन नीतियों के मनवांछित फल जितने मनमोहक हैं, उनको पाने का रास्ता उतना ही दुर्गम. देखना यह है कि अंडमान-निकोबार को भारत के हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक में गढ़ और बाजार बनाने की दिशा में लिया गया यह कदम किस हद तक सफल होता है.

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