भारतीय विश्वविद्यालयों में बिना रिसर्च हो रही है पढ़ाई
१८ जून २०२१यह लगातार दूसरा साल है, जब देश के ज्यादातर स्टूडेंट्स को बिना परीक्षा ही पास कर दिया गया. इसमें स्कूली स्टूडेंट्स के अलावा यूनिवर्सिटी और कॉलेज के स्टूडेंट्स भी शामिल हैं. देश में कोरोना की दूसरी लहर के बीच अब भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज बंद हैं. ऐसे में स्टूडेंट और प्रोफेसर ऑनलाइन पढ़ाई से जद्दोजहद कर रहे हैं. कोरोना लॉकडाउन से न सिर्फ पढ़ाई पर प्रभाव पड़ा है बल्कि इससे रिसर्च और फील्ड वर्क भी बहुत प्रभावित हुए हैं, जो उच्च शिक्षा का जरूरी हिस्सा होते हैं.
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में गांधी एवं शांति अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर मनोज राय कहते हैं, "विज्ञान के रिसर्चर के लिए लैब जितनी जरूरी होती है, कला और सामाजिक विज्ञान के रिसर्चर के लिए उतना ही जरूरी फील्ड वर्क और लाइब्रेरी होती हैं. इसके बिना रिसर्च संभव नहीं." महीनों से देश में रिसर्च करने वालों को न लाइब्रेरी के इस्तेमाल की सुविधा है और न ही फील्ड वर्क संभव है. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में रात में 6-8 घंटे के लिए लाइब्रेरी बंद हो जाती थी, तो स्टूडेंट आंदोलन कर देते थे. अभी लाइब्रेरी पूरी तरह से बंद है. ऐसे में स्टूडेंट के नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है.
कई गुना बढ़ गया पढ़ाई का खर्च
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में भारत का प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर एमपी अहिरवार कहते हैं, "मेरे विषय के लिए ग्राउंड वर्क बहुत जरूरी है लेकिन पिछले एक साल से कुछ नहीं हो पा रहा." एमपी अहिरवार के मुताबिक महामारी से स्टूडेंट्स के प्रभावित होने का एक आर्थिक पक्ष भी है. ऑनलाइन क्लासेज से पढ़ाई का खर्च बहुत बढ़ गया है, जिसकी मार सबसे ज्यादा मार गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के स्टूडेंट पर पड़ी है.
वे कहते हैं, "एक औसत स्मार्टफोन जिसमें 4G इंटरनेट काम करे, उसका दाम 7000 रुपये से ज्यादा होता है. फिर अगर हम दिन भर में स्टूडेंट की 180 मिनट की ऑनलाइन क्लास लें तो उन्हें 1 जीबी से ज्यादा डेटा की जरूरत होगी. जिसके लिए उन्हें महीने में 500 रुपये से ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे. क्या कोई गरीब परिवार का बच्चा यह खर्च उठा सकता है? इससे सबसे ज्यादा SC, ST और OBC समुदायों से आने वाले गरीब स्टूडेंट प्रभावित हुए हैं." केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर ने हाल ही में राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि बिहार में एक किसान परिवार की औसत आय 3558 रुपये प्रति माह और उत्तर प्रदेश में 4923 रुपये प्रति माह है.
छत पर चढ़कर स्टूडेंट दे रहे परीक्षा
बिट्स पिलानी में केमिकल इंजीनियरिंग के स्टूडेंट उत्कर्ष भगत कहते हैं, "मेरे कई सब्जेक्ट ऐसे हैं, जिनमें लैब में प्रैक्टिकल की जरूरत होती है लेकिन ऑनलाइन क्लासेज के चलते अब तक हमने लैब देखी ही नहीं है. हमें इन लैब एक्सपेरिमेंट से जुड़ी क्लिप भेज दी जाती हैं, जिन्हें देखकर हमें सीखने को कहा जाता है. लेकिन इससे हमें न ही केमिकल की सही जानकारी मिलती है, और न उनकी गंध पता चल पाती है. ऐसे प्रैक्टिकल से कुछ सीख पाना मुश्किल होता है. परीक्षाओं में भी हमसे इसी बेस पर सवाल कर लिए जाते हैं."
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर नवीन कुमार कहते हैं, "जो ऑनलाइन एक्सपेरिमेंट दिखा पा रहे हैं, वो बहुत अच्छी स्थिति में हैं. मेरे ज्यादातर स्टूडेंट ग्रामीण इलाकों से हैं और 90% के पास लैपटॉप नहीं है. असल समस्या तब होती है, जब हम परीक्षा कराने की कोशिश करते हैं. स्टूडेंट नेटवर्क की उपलब्धता न होने के चलते घर से दूर आकर या दूसरों की छत पर चढ़कर परीक्षा देने को मजबूर होते हैं. इसके अलावा रिसर्च सब्जेक्ट में प्रैक्टिकल बहुत जरूरी होते हैं लेकिन लैब बंद हैं. मुझे उन स्टूडेंट्स की बहुत चिंता है, जो फिलहाल पास किए जा रहे हैं. वे बिना प्रैक्टिकल स्किल के आगे किस तरह पढ़ सकेंगे."
कबसे शुरू होंगी ऑफलाइन क्लासेज
उत्कर्ष भगत के लिए भी किताबें न होना चिंता की बात है. वे कहते हैं, "अब तक ज्यादातर स्टडी मैटीरियल पावर प्वाइंट और वीडियो के तौर पर भेजा गया है. बिट्स की फीस लाखों में हैं, इसलिए बीच में कुछ पेरेंट्स ने इस बात का बहुत विरोध किया था कि संस्थान फीस के मुताबिक बच्चों की पढ़ाई नहीं करा पा रहा. अब स्टूडेंट भी लापरवाही करने लगे हैं. चूंकि सबका कैमरा ऑफ होता है तो कोई इस दौरान गेम खेल रहा होता है, कोई दोस्तों के साथ चैट कर रहा होता है तो कोई सो रहा होता है. जब यह सिस्टम सही करने की बात होती है तब सबके दिमाग में यही आता है कि ऑफलाइन क्लासेज शुरू होंगी तो यह ठीक हो जाएगा."
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ लॉ में प्रोफेसर डीके मिश्रा कहते हैं, "मेरी क्लास में 60 से ज्यादा बच्चे हैं. न ही सबको ऑनलाइन सवाल करने का मौका दे सकते हैं, न ही सबके चेहरे देखकर किसी टॉपिक पर उनकी शंका भांप सकते हैं. ऐसे में पढ़ाने का अनुभव मोनोलॉग जैसा हो गया है. खुद ही सवाल करते हैं, खुद ही जवाब देते हैं. स्टूडेंट्स भी इससे बोर हो चुके हैं और अब उन्होंने पूछना शुरू कर दिया है कि ऑफलाइन क्लासेज कबसे शुरू होंगीं."
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाया जा सका
पिलानी के छात्र उत्कर्ष भगत एक अन्य समस्या की ओर ध्यान दिलाते हैं . वे बताते हैं, "भारत में 10वीं, 12वीं कक्षाओं में बच्चों पर पढ़ाई का बहुत दबाव होता है. ऐसे में वे इन कक्षाओं में स्पोर्ट्स और दूसरे शौक छोड़कर सिर्फ पढ़ाई करते हैं. वे सोचते हैं कि जब कॉलेज जाएंगे तो फिर से स्पोर्ट्स, आर्ट्स या थियेटर शुरू करेंगे लेकिन दो सालों से यह सपना ही बना हुआ है. इन सारी चीजों के बिना ऑनलाइन पढ़ाई का अनुभव बहुत बोरिंग होता जा रहा है. कुछ ऑनलाइन ग्रुप बनाने की कोशिश लोगों ने की है लेकिन उन्हें खोजना और एक्टिव रखना बहुत मुश्किल है. अच्छा होता अगर कम से कम स्टूडेंट्स के एक्सपीरियंस को अच्छा करने के लिए कुछ किया जा सकता."
केंद्रीय बजट 2021 में कोरोना वायरस से शिक्षा पर प्रभाव का अध्ययन कर ऑनलाइन शिक्षा का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की दूरदर्शिता नहीं दिखाई गई. और ऐसी योजना जो फिलहाल काम आ सकती थी, उनकी फंडिंग भी रोक दी गई. दरअसल साल 2016 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी (HEFA) बनाने की घोषणा की थी, जिसके जरिए 2022 तक भारतीय बाजार से 1 लाख करोड़ रुपये जुटाकर केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों को लोन के तौर पर देना था ताकि वे अपने मूलभूत ढांचे का विकास कर सकें. डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने में भी इसकी मदद ली जा सकती थी. लेकिन इस एजेंसी का बजट 2021 में 99.9% घटाकर 1 करोड़ कर दिया, जो पिछले साल 2200 करोड़ रुपये था.