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माओवादियों से निपटना टेढ़ी खीर

८ अप्रैल २०१०

सुरक्षा बलों का कहना है कि बारुदी सुरंगों से भरे जंगली इलाकों में माओवादियों से निपटना काफ़ी मुश्किल है. भारतीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि इस समस्या को सुलझाने में 2-3 साल लगेंगे.

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घायल सिपाही को अस्पताल ले जाते हुएतस्वीर: AP

जगदलपूर में अड्डा गाड़े छत्तीसगढ़ के डाइरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस विश्व रंजन ने कहा है कि पुलिस का मनोबल बनाए रखने के लिए नक्सल गढ़ में हमले किए जाते रहेंगे. उन्होंने कहा कि मंगलवार के माओवादी हमले की वजह से माओवाद विरोधी रणनीति में बदलाव की कोई ज़रूरत नहीं है. इस बीच पुलिस सुत्रों से पता चला है कि दर्जनों पुलिस बल उस जंगली इलाके की तलाशी में लगे हैं, जहां माओवादियों के साथ मुठभेड़ हुई थी. डीजीपी विश्व रंजन ने कहा कि हमले में लिप्त माओवादी पीपुल्स लिबरेशन ऑफ़ गेरिल्ला आर्मी की एक टुकड़ी अभी किस्ताराम-गोल्लापल्ली-कोंटा के जंगली इलाके में है. लेकिन बारुदी सुरंगों के कारण उस क्षेत्र में घुसना मुश्किल है.

भारतीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि सरकार ने एक समिति के गठन का निर्णय लिया है, जो इस बात की जांच करेगी कि दंतेवाडा के अभियान में सुरक्षा बलों से कौन सी गलतियां हुई थी. बहुत जल्द ही यह समिति अपनी रिपोर्ट पेश करेगी, जिसके आधार पर आवश्यक क़दम उठाए जाएंगे.

गृहमंत्री का कहना है कि माओवादी भारत-नेपाल तथा भारत-म्यांमार सीमाक्षेत्र से हथियार प्राप्त करते हैं, जहां अवैध हथियारों का खुला बाज़ार है. उन्होंने अफ़सोस जताया कि भारत सरकार के पास सुरंग बिछे क्षेत्रों में प्रयोग के लायक गाड़ियां नहीं हैं, जिनकी माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सख़्त ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि माओवादियों से निपटने में पिछले 10-12 सालों से लापरवाही बरती गई है. ऐसी हालत में तुरंत सफलता नहीं मिल सकती.

इस बीच पता चला है कि बुधवार रात को माओवादियों ने पल्लमपल्ली के सीआरपीएफ़ कैंप पर हमला किया था. कई घंटों तक चली गोलीबारी के बाद माओवादी भाग गए. अभी तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं मिली है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: राम यादव