माराडोना: एक खिलाड़ी, एक जादूगर
फुटबॉल के इतिहास के महानतम खिलाड़ियों में से एक डिएगो माराडोना ने 60 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. एक नजर उन सुनहरे लम्हों पर जो वो पीछे छोड़ गए.
करोड़ों फुटबॉल प्रेमियों के दिलों की धड़कन
डिएगो अरमांदो माराडोना का दिल का दौरा पड़ने से अपने घर में ही 25 नवंबर, 2020 को निधन हो गया. उनके देश अर्जेंटीना और पूरी दुनिया में उनके करोड़ों फैन शोक डूब गए और उस जादू को याद कर रहे हैं जो उनके खेल में था.
अर्जेंटीना से शुरुआत
माराडोना ने फुटबॉल खेलने की शुरुआत अर्जेंटीना में एक क्लब अर्जेन्टीनोस जूनियर्स के साथ की. वहां से वो राजधानी ब्यूनोस आयरस के क्लब बोका जूनियर्स में गए, जो उनके पिता का मनपसंद क्लब था. 1981 में उन्होंने बोका जूनियर्स के लिए डोमेस्टिक लीग का खिताब जीत लिया, लेकिन अर्जेंटीना उनके लिए बहुत छोटा था.
अर्जेंटीना से यूरोप
वो 1982 में यूरोप चले गए और स्पेन के क्लब बार्सिलोना के लिए खेलने लगे. बार्सिलोना ने उन्हें हासिल करने के लिए रिकॉर्ड 73 लाख डॉलर खर्च किए, लेकिन माराडोना कभी वहां खुश नहीं रहे. हेड कोच उदो लात्तेक से अक्सर उनके मतभेद हो जाते. हां, अपने नए गृह शहर की नाइट-लाइफ उन्हें बहुत पसंद आ गई थी.
नेपोली का हीरो
1984 में माराडोना इटली के क्लब नेपोली में रिकॉर्ड डेढ़ करोड़ डॉलर की डील के तहत शामिल हो गए. यह एक पिछड़ा हुआ क्लब था लेकिन माराडोना ने इसकी किस्मत पलट दी. 1984 से ले कर 1989 तक उन्होंने नेपोली को दो लीग खिताब जितवाए और उसके बाद यूरोप का प्रतिष्ठित यूईएफए कप जितवाया.
हीरो भी, बदनाम भी
नेपल्स में माराडोना आज भी एक हीरो हैं लेकिन उनकी विवादास्पद हरकतें भी जानी-मानी हैं. वहां वो कोकेन का सेवन करने लगे और स्थानीय माफिया के भी करीब आ गए. वो कई बार कानून की गिरफ्त के काफी करीब पहुंचे लेकिन फुटबॉल प्रेमियों के बीच उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई.
"हैंड ऑफ गॉड"
विश्व कप के इतिहास में माराडोना जैसी छाप किसी और खिलाड़ी की नहीं है. उन्होंने 1986 में एक तरह से अपने ही दम पर अर्जेंटीना को कप जितवा दिया, प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बने और विश्व फुटबॉल के सुपरस्टार बन गए. इंग्लैंड के खिलाफ सेमी-फाइनल में उन्होंने दो ऐसे गोल किए जो फुटबॉल के इतिहास में अमर हो गए. इनमें से एक गोल को "हैंड ऑफ गॉड" के नाम से जाना जाता है.
हार का सामना
1990 में माराडोना एक बार फिर विश्व कप जीतने की ओर अग्रसर थे, लेकिन इस बार उनका प्रदर्शन पिछली बार जैसा नहीं था. अर्जेंटीना को हरा कर पश्चिमी जर्मनी ने फाइनल मैच और विश्व कप को जीत लिया.
विवादों की दलदल
1992 में माराडोना यूरोपीय क्लबों से वापस अर्जेंटीना लौट गए. फरवरी में उन्होंने पत्रकारों पर एयर गन चला दी जिसकी वजह से उन्हें दो साल जेल की सस्पेंडेड सजा सुनाई गई.
खेल को अलविदा
1996 में वो डोपिंग यानी मादक पदार्थ लेने के दोषी पाए गए और उन्हें 15 महीनों के लिए सस्पेंड कर दिया गया. 25 अक्टूबर 1997 को उन्होंने अपना आखिरी मैच खेला, बोका जूनियर्स के लिए. 37 साल की उम्र में कौशल और विवादों से भरे उनके करियर का अंत हो गया.
कोच की भूमिका में
अक्टूबर 2008 में उन्हें अर्जेंटीना का मुख्य कोच नियुक्त किया गया लेकिन बतौर कोच उन्हें वो सफलता नहीं मिली जो खेलते हुए मिली थी. दो साल बाद उन्हें कोच के पद से हटा दिया गया. उन्होंने कई देशों में क्लबों को भी कोच किया लेकिन सफल नहीं हो सके.
सुर्खियों में फिर भी रहे
बाद के वर्षों में भी कई कारणों से माराडोना सुर्खियों में बने रहे. इनमें क्यूबा के फिदेल कास्त्रो और वेनेजुएला के हुगो शावेज जैसे राजनेताओं से उनकी दोस्ती, बड़ी बड़ी पार्टियों में उनका जाना और ड्रग्स और शराब के अत्यधिक सेवन की खबरें शामिल रहीं.
दुनिया को अलविदा
उनकी जीवन शैली की वजह से उन्हें कई स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें हुईं, जिनमें मोटापा भी शामिल है. वो कई बार मौत के करीब पहुंचे लेकिन उसे भी चकमा दे दिया. नवंबर 2020 में उनके दिमाग में से खून का एक थक्का हटाने के लिए हुए एक ऑपरेशन के बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया.