मास्क क्यों नहीं पहनना चाहते पश्चिमी देशों के लोग?
१ अप्रैल २०२०ब्रिटेन की एक सड़क पर जब एक लड़के ने किसी को मास्क लगाए देखा तो हैरानी से उसकी ओर देखता ही रह गया. मास्क लगाए एशियाई मूल के उस व्यक्ति ने लड़के से कहा, "मैंने खुद को बचाने के लिए यह पहना हुआ है." ब्रिटेन हो, जर्मनी या अमेरिका, पश्चिमी देशों में कोरोना से संक्रमण के तेजी से बढ़ते मामलों के बावजूद लोग मास्क लगाने को तैयार नहीं हैं. लेकिन ऑस्ट्रिया ने मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है. किसी यूरोपीय देश के लिए यह काफी बड़ा कदम माना जा रहा है. इसी तरह जर्मन शहर येना में भी नगरपालिका ऐसा ही नियम बनाया है. उम्मीद की जा रही थी कि येना के बाद दूसरे जर्मन शहरों में भी इसी तरह के नियम आएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं है. बॉन के मेयर अशोक श्रीधरन ने एक खास वीडियो संदेश में कहा कि अगर आप मास्क पहनना चाहते हैं, तो बहुत अच्छा लेकिन इसे अनिवार्य करने की कोई योजना नहीं है.
स्लोवाकिया, चेक गणराज्य और बुल्गारिया में भी मास्क पहनने का नियम बनाया गया लेकिन बुल्गारिया को कुछ ही दिन बाद इसे वापस लेना पड़ा. वॉशिंटन पोस्ट की एक खबर के अनुसार अमेरिका में भी मास्क के इस्तेमाल पर बहस चल रही है. हालांकि वहां बड़ा सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्या में मास्क आएंगे कहां से. फिलहाल वहां कई डॉक्टर भी रुमाल या घर के बने मास्क इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के अनुसार मास्क पहनने वाले की शायद ही कोई मदद करता है. लेकिन इसे लगाने से दूसरों में संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है. 2009 में हांगकांग में हुए एक शोध का हवाला देते हुए लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन की शुनमय येउंग कहती हैं, "ज्यादातर रिसर्च बुरी परिस्थितियों में की गई है और फ्लू के मरीजों पर हुई है. लेकिन कुछ प्रमाण है कि हाथ धोने से और चेहरे पर मास्क लगाने से संक्रमण में कमी आती है." ब्रिटेन में जानकारों का मानना है कि संक्रमित लोगों की कुल संख्या लाखों में है लेकिन अब तक वहां केवल 25,000 मामलों की ही पुष्टि हो पाई है. इस महामारी को ले कर पश्चिमी देशों के रवैये की काफी निंदा हुई है. खास कर ब्रिटेन और अमेरिका की. येउंग भी ब्रिटेन की आलोचना करते हुए कहती हैं कि वह डब्ल्यूएचओ की ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की सलाह को संजीदगी से नहीं ले रहा है.
चीन के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के डॉक्टर गाओ फू का कहना है, "मेरे ख्याल से अमेरिका और यूरोप में सबसे बड़ी गलती यह की जा रही है कि लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं." कोरोना वायरस मुंह से निकलने वाले ड्रॉप्लेट्स से फैलता है. अमूमन खांसते या छींकते वक्त ये ड्रॉपलेट निकलते हैं. डॉक्टर फू कहते हैं",ड्रॉपलेट बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. आपको मास्क पहनना ही होगा क्योंकि जब आप बात करते हैं तो आपके मुंह से ड्रॉपलेट निकलते ही हैं." एशियाई देशों में लोग मास्क को ज्यादा संजीदगी से लेते हैं. एक तो प्रदूषण के कारण कई बड़े शहरों में लोगों को मास्क लगाने की आदत है. और दूसरा 2002-03 में फैले सार्स की यादें भी अब तक ताजा हैं.
मास्क लगा कर आप खुद को नहीं, दूसरों को बचाते हैं और किसी भी महामारी को रोकने के लिए यह बहुत जरूरी होता है. ऑस्ट्रिया की सरकार भी इसी बात पर जोर दे रही है. वहां चांसलर सेबास्टियान कुर्त्स ने खरीदारी करने के लिए घर से निकलने वाले सभी लोगों के लिए मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया है. सुपरमार्केट में प्रवेश के दौरान ग्राहकों को मास्क दिया जाता है. नागरिकों को संबोधित करते हुए कुर्त्स कहा, "यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है और यह हमारे लिए एक बहुत बड़ा एडजस्टमेंट होगा लेकिन यह कदम लेना जरूरी है ताकि संक्रमण को रोका जा सके."
इसके विपरीत ब्रिटेन में जब स्वास्थ्य सचिव मैट हैनकॉक से संसद में इस बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, "कुछ कुछ परिस्थितियों से मास्क लगाने से फायदा हो सकता है लेकिन हम यह हिदायत नहीं दे रहे कि लोग हर वक्त मास्क लगा कर रखें. लेकिन यह एक स्वतंत्र देश है." यानी मास्क लगाना है या नहीं इसका फैसला उन्होंने जनता के विवेक पर छोड़ दिया.
डब्ल्यूएचओ ने चिंता जताई है कि अगर आम लोग भी मास्क लगाने लगेंगे तो डॉक्टरों के लिए इनकी कमी हो जाएगी. साथ ही मास्क के सही इस्तेमाल और इस्तेमाल के बाद सही तरीके से उनका निपटारा ना होने को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है. उधर ऑस्ट्रिया का कहना है कि वह नागरिकों से मेडिकल मास्क नहीं बल्कि सामान्य मास्क लगाने को कह रहा है. हालांकि मास्क बनाने वाली कंपनियों का भी कहना है कि इतनी जल्दी देश भर की जनता के लिए मास्क तैयार करना मुश्किल काम है.
आईबी/एमजे (डीपीए)
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