मीट नहीं, दाल खाइए
भारत में तरह तरह की दालें खाई जाती हैं लेकिन पश्चिमी देशों में इनको लेकर कुछ खास जानकारी नहीं है. धीरे धीरे यह बदल रहा है. दालों को अब सुपर फूड कहा जाने लगा है. अब 10 फरवरी को विश्व दाल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है.
स्वाद भी, सेहत भी
दालें पोषण से भरपूर होती हैं. इनमें भारी मात्रा में प्रोटीन होता है. साथ ही ये डायबिटीज और कॉलेस्ट्रॉल को काबू में रखने में भी लाभकारी होती हैं. इसके अलावा वजन घटाने के लिए की जाने वाली तरह तरह की डाइट में भी दाल खाने की नसीहत दी जाती है.
पोषण की दुकान
इतना ही नहीं, दालों में आयरन, पोटैशियम, मैग्नीशियम, जिंक और फाइबर भी अच्छी मात्रा में होता है. ये ग्लूटन फ्री होती हैं यानी इनसे किसी तरह की एलर्जी भी नहीं होती.
भारत में खास
कुछ अफ्रीकी देशों जैसे कांगो और रवांडा तथा भारत में खेती के दौरान ही कुछ दालों में अतिरिक्त आयरन डाला जाता है ताकि आबादी में कुपोषण से निपटा जा सके. इन्हें खाने से आयरन की दिन भर की लगभग आधी जरूरत पूरी हो जाती है.
पर्यावरण के लिए भी
प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत मीट होता है. लेकिन उसे खाने से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है. इसके विपरीत दालें मीट जैसा ही पोषण देती हैं और धरती की सेहत का भी ख्याल रखती हैं.
पानी की किल्लत का जवाब
जहां आधा किलो मीट में सात हजार लीटर पानी खर्च होता है, वहीं आधा किलो दाल पर मात्र 160 लीटर. दूध की तुलना में भी दाल में प्रोटीन ज्यादा होता है और संसाधन कम खर्च होते हैं.
कहीं भी उग सकती हैं
खूब गर्म और खूब सर्द माहौल में भी दालें आराम से उग जाती हैं. इन्हें केमिकल फर्टिलाइजर की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती.
सदियों से
इंसान हजारों सालों से दालें खा रहे हैं. तुर्की में पुरातत्वविदों को सात से आठ हजार ईसा पूर्व के दालों के निशान मिले हैं. भारत के अलावा प्राचीन मिस्र और रोमन साम्राज्य में भी इनका इस्तेमाल होता था.
दाल की रंगोली
मसूर, उड़त और मूंग की दालों से मिल कर बनाई गई तिरंगे वाली यह रंगोली किसान आंदोलन के समर्थन में बनाई गई है. वैसे, पारंपरिक रूप से रंगोली बनाने के लिए दाल और चावल का इस्तेमाल किया जाता रहा है.
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