मीथेन का उत्सर्जन आधिकारिक आंकड़े से 70 फीसदी अधिक
२३ फ़रवरी २०२२ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक वायुमंडल में उत्सर्जित हो रही मीथेन का सबसे बड़ा स्रोत कोयला है. 2022 की ग्लोबल मीथेन ट्रैकर रिपोर्ट में पेरिस में मुख्यालय वाली इस एजेंसी ने विशव भर में मीथेन की निगरानी को तेज करने और इसका उत्सर्जन रोकने के उपाय करने की मांग की है.
मीथेन के उत्सर्जन की समस्या में पहली बार कोयला उद्योग के योगदान को दिखाया गया है. इस मामले में कोयला उद्योग ने जीवाश्म ईंधन के दूसरे हिस्सों को पीछे छोड़ दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक कोयला उद्योग ने करीब 4.2 करोड़ टन मीथेन उत्सर्जित किया है जबकि तेल क्षेत्र की हिस्सेदारी 4.1 करोड़ टन और प्राकृतिक गैस की करीब 3.9 करोड़ टन है.
उत्सर्जन में 5 फीसदी से कम वृद्धि
पहली बार हर देश के लिए उत्सर्जन के विस्तृत अनुमान जारी किए गए हैं. इसमें समस्या वाले क्षेत्रों में कुछ प्रगति भी दिखाई दी है. आईईए का कहना है, "मीथेन का उत्सर्जन ऊर्जा क्षेत्र में पिछले साल 5 फीसदी से कम बढ़ा है. हालांकि इसके बाद भी इसे 2019 के स्तर पर नहीं लाया जा सका और ऊर्जा के इस्तेमाल में हुई वृद्धि थोड़ी सी कम हुई है, इससे पता चलता है कि उत्सर्जन को रोकने की कोशिशों का कुछ असर हुआ है."
100 से ज्यादा देश अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेतृत्व में उन कोशिशों में शामिल हुए हैं जिसके तहत 2030 तक मीथेन के उत्सर्जन में 30 फीसदी की कमी करने का लक्ष्य है. मीथेन में यह कमी 2020 के स्तर से नीचे ले जानी है और इसके लिए स्कॉटलैंड के ग्लासगो की कॉप25 क्लाइमेट कांफ्रेंस में पिछले साल सहमति बनी थी.
यह भी पढ़ेंः भारत ने मीथेन गैस समझौते पर दस्तखत क्यों नहीं किए?
CO2 के बाद सबसे प्रमुख मीथेन
कार्बन डाइ ऑक्साइड के बाद सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस मीथेन ही है. इसमें गर्मी को रोकने की क्षमता कार्बन डाइ ऑक्साइड से ज्यादा होती है और यह वातावरण में अधिक तेजी से मिल जाता है. यह प्राकृतिक गैस का सबसे प्रमुख घटक है. सामान्य अवस्था गैसीय होने के कारण इसे जमा कर भंडार करना तकनीकी रूप से थोड़ा मुश्किल काम है.
मीथेन की मात्रा में कटौती दुनिया के बढ़ते तापमान पर काबू पाने में तेजी से असरदार होगी. आईईए के प्रमुख अर्थशास्त्री टिम गोल्ड का कहना है, "अगर इस दशक के आखिर तक हम इंसानी गतिविधियों से होने वाले मीथेन के उत्सर्जन को, इस वक्त जहां हम हैं उससे 30 फीसदी घटा सकें तो तापमान में इसका असर सदी के मध्य तक वही होगा जो शून्य उत्सर्जन की तकनीक के जरिए सभी कारों, ट्रकों, विमानों और जहाजों को बंद करने से हो सकता है."
यह भी पढ़ेंः धरती को बचाने के लिए गायों को पॉटी ट्रेनिंग
ऊर्जा क्षेत्र में उत्सर्जन सबसे ज्यादा
ऊर्जा क्षेत्र में इंसानी गतिविधियों से दुनिया की करीब 40 फीसदी मीथेन उत्सर्जित होती है. इसके बाद मीथेन के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार उद्योगों में कृषि उद्योग सबसे आगे है.
लंदन के क्लाइमेट रिसर्च ग्रुब एम्बर से जुड़े अनातोली स्मिर्नोव का कहना है, "मीथेन का रिसाव कोयला जलाने की वजह से होने वाले जलवायु पर असर को कई गुना बढ़ा देता है. इस मसले की अब और अधिक अनदेखी नहीं हो सकती. अब तक कोयला कंपनियों ने मीथेन के रिसाव को रोकने के लिए बहुत कम काम किया है वो भी तब जबकि काफी किफायती तकनीक मौजूद है."
आईईए के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल ने बताया कि जीवाश्म ईंधन उद्योग से होने वाले मीथेन के सारे रिसाव को अगर जमा कर पिछले साल बेचा गया होता तो दुनिया को करीब 180 अरब क्यूबिक मीटर गैस मिल जाती.
आईईए का अनुमान है कि रिसाव में खोया मीथेन करीब उतना ही है जितना कि यूरोप के बिजली क्षेत्र में इस्तेमाल होता है और यह सप्लाई घटने के कारण बढ़ी कीमतों से राहत देने के लिए पर्याप्त था.
आईईए के मुताबिक मीथेन का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देशों में चीन, रूस, अमेरिका, भारत और ईरान शामिल हैं.
एनआर/आरपी (रॉयटर्स, एपी)