मुद्रा संकट के बीच आईएमएफ की बैठक
८ अक्टूबर २०१०एक ओर जहां वित्तीय संकट से उबरने की गति अत्यंत धीमी बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर पिछले हफ्तों के दौरान देखा गया है कि जापान सहित अनेक देश कोशिश कर रहे हैं कि उनकी मुद्रा की कीमत कम बनी रहे, ताकि उनके उत्पादों का सस्ते दर पर निर्यात किया जा सके.
इस सिलसिले में मुख्य विवाद चीन और अमेरिका के बीच है. अमेरिका का कहना है कि चीन अपनी मुद्रा युआन की कीमत को नकली ढंग से कम बनाए हुआ है, जिसकी वजह से विश्व अर्थव्यवस्था में तेजी नहीं आ रही है और अमेरिकी श्रम बाजार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की बैठक में अमेरिका की ओर से जोरदार मांग की जाएगी कि मु्द्रा विनिमय दरों को बाजार से बेहतर ढंग से जोड़ा जाए और विश्व अर्थव्यवस्था में संतुलन लाने के लिए आमूल परिवर्तन किए जाएं.
यूरोपीय संघ की ओर से भी चीनी मुद्रा के पुनर्मूल्यन की मांग की गई है. चीन युआन की कीमत बढ़ाने की मांग का विरोध कर रहा है. चीनी प्रधान मंत्री वेन जियाबाओ का कहना है कि इससे चीनी उद्यमी दीवालिया हो जाएंगे और स्थिरता पर असर पड़ेगा, जो विश्व अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा.
इस बीच यूरोप के देशों की ओर से आशंका व्यक्त की जा रही है कि अमेरिकी डॉलर व चीनी युआन की कीमत दबाए रखने की वजह से यूरो की कीमत बढ़ती जा रही है, यूरोप में आर्थिक तेजी लाने के प्रयासों पर जिसका नकारात्मक असर पड़ रहा है.
वाशिंगटन में आर्थिक विशेषज्ञों की एक बैठक को संबोधित करते हुए भारतीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि इस सिलसिले में एक अंतर्राष्ट्रीय सहमति तैयार करना सबसे अच्छा रास्ता होगा. लेकिन ऐसी सहमति के आसार फिलहाल नहीं दिख रहे हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: एन रंजन