सिर्फ मुस्लिम महिलाएं ही नहीं ढंकती सिर
१७ अक्टूबर २०१८कई मुस्लिम महिलाएं रोजाना हिजाब पहनती हैं. ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भी अपनी विदेश यात्राओं में सिर ढकती हैं. यूरोपीय देशों में आज भी हेडस्कार्फ पारंपरिक पोशाक का हिस्सा है. ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के वेल्टम्यूजियम में हिजाबों की प्रदर्शनी लगी है. प्रदर्शनी के मुताबिक जिन देशों में बुरके पर विवाद है, वहां पारंपरिक लिबास में हेडस्कार्फ काफी प्रचलित है. इसमें ऑस्ट्रिया, फ्रांस और बेल्जियम शामिल हैं.
म्यूजियम के क्यूरेटर आक्सेल श्टाइनमन कहते हैं, "जब भी कोई हेडस्कार्फ शब्द का इस्तेमाल करता है तो फौरन बहस शुरू हो जाती है क्योंकि हम इसे इस्लाम से जोड़कर देखते हैं." उनके मुताबिक, "यूरोप में हेडस्कार्फ का इतिहास दो हजार साल पुराना है और यह ईसाई धर्म से जुड़ा हुआ है." प्रदर्शनी में ईसा मसीह की मां मरियम 'वर्जिन मैरी' और अन्य ननों की सिर ढंकी हुई तस्वीरें इस बात की पुष्टि करती हैं.
पारंपरिक पोशाक पहने यूरोप की सुवेनियर डॉल्स के सिर भी ढंके होते हैं और यह न सिर्फ धर्म से जुड़े होते हैं, बल्कि स्थानीय शहर की पहचान भी होते हैं. 1950 के जमाने में ऑस्ट्रियाई पर्यटन के पोस्टरों में स्थानीय महिलाएं पारंपरिक डिर्नडल पहने दिखती हैं और इनके सिर पर स्कार्फ बंधा होता है. 1970 के दशक के अन्य पोस्टर में आल्प पहाड़ों की झोपड़ी के आगे एक लड़की ने सिर पर स्कार्फ बांध रखा है जिसे बैनडाना कहते हैं. यह रुमालनुमा स्कार्फ आज भी यहां के लोगों के बीच बीच काफी लोकप्रिय है.
म्यूजियम इस बात से इनकार नहीं करता है कि प्रदर्शनी की शुरुआत इस बहस से हुई थी कि मुस्लिम महिलाओं को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं. 2017 में ऑस्ट्रियाई कॉस्टेमिक चेन बीपा ने एक विज्ञापन लॉन्च किया था जिसमें हिजाब पहने युवा मुस्लिम लड़कियां शामिल थीं. जल्द ही सोशल मीडिया पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देखी गई.
जब वेल्टम्यूजियम के डायरेक्टर क्रिस्ट्रियान शिकल्ग्रुबर ने विज्ञापन का बचाव किया, तो उन पर महिलाओं के दमन का समर्थन करने का आरोप लगा. इस मुद्दे पर उन्होंने बताया, ''हर समाज में इस कपड़े को पहनने या न पहनने का फैसला कई कारणों से लिया जाता है." वह आगे कहते हैं, "इसमें धार्मिक मान्यताएं, सांस्कृतिक परंपराएं और सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति शामिल होती हैं."
ऑस्ट्रिया की दक्षिणपंथी सरकार ने एक बिल तैयार किया है जिसमें डे-केयर या प्राइमरी स्कूल जाने वाली लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. एक साल पहले यहां पूरा चेहरा ढंकने वाले बुरके पर भी बैन लगाया गया है. सरकार का तर्क है कि इससे लड़कियों की आजादी सुरक्षित रहेगी और राजनीति में इस्लाम के फैलते असर को रोका जा सकेगा.
बिना कोई जवाब दिए यह प्रदर्शनी सवाल करती है कि क्या हिजाब से महिलाओं का दमन होता है, क्या महिलाएं इससे खुद को अभिव्यक्त करना चाहती हैं या हिजाब पुरुषों की नजर से बचाता है. म्यूजियम के क्यूरेटर अलग-अलग हिजाबों को प्रदर्शनी में दिखा कर इस बहस को शांत करने की कोशिश कर रहा हैं. इन्हें किसी मैनिक्विन को पहनाने के बजाए दीवारों पर लगाया गया है. इन्होंने हंसती, खेलती और पोज देती हुई महिलाओं को भी हिजाब पहने दिखाया है, जिसमें वे पीड़ित नहीं बल्कि आत्मविश्वास से भरपूर दिख रही हैं. इसके साथ ही प्रदर्शनी की तस्वीरों में अल्जीरिया से बोस्निया और जावा द्वीप के पुरुषों को पगड़ी या अन्य प्रकार की टोपियों को पहने दिखाया गया है. पारंपरिक पोशाकों पर म्यूजियम का केंद्र होने के बावजूद यह प्रदर्शनी शालीन ड्रेसिंग या कपड़ों की ओर ध्यान आकर्षित करती है.
वीसी/आईबी (डीपीए)