मैगी बन गई मॉली आंटी
२२ जुलाई २०१३मैगी की भूमिका निभाने वाली रेवती मेनन इस साल जर्मन शहर श्टुटगार्ट के भारतीय फिल्म महोत्सव में जूरी की प्रमुख हैं. हिन्दी, अंग्रेजी, तमिल, तेलगू और मलयालम फिल्मों में काम करने वाली रेवती एक तरह से पूरे भारत की प्रतिनिधि हैं. श्टुटगार्ट में उनकी फिल्म मॉली आंटी रॉक्स दिखाई गई. यह एक 45 साल की महिला की कहानी है जिसे पता है कि वह क्या चाहती है और उसका झगड़ा आयकर विभाग के एक अधिकारी से हो जाता है.
श्टुटगार्ट में आपको कैसा लग रहा है?
मैं पहली बार श्टुटगार्ट आई हूं. मैंने इस फेस्टिवल के बारे में सुहासिनी (मणिरत्नम) और अंजली मेनन से सुना था. उन्होंने मुझे फिर इस फेस्टिवल के साथ जो़ड़ा और वे चाहते थे कि मैं जूरी की सदस्य बनकर यहां आऊं. अच्छा है, यह एक छोटा फेस्टिवल है. यह अच्छा भी है कि यहां के लोग भारतीय फिल्में दिखाना चाहते हैं. इसके बारे में मुझे यह बात भी बहुत अच्छी लगी कि यह सचमुच भारतीय है, यानी यह केवल बॉलीवुड की फिल्में नहीं दिखाता. यह पूरे भारत की फिल्में दिखाता है.
आपके लिए एक "अच्छी फिल्म" कैसी होती है?
एक फिल्म को अच्छा होने के लिए उसे आर्ट फिल्म होने की जरूरत नहीं. मुख्यधारा वाली फिल्में भी अच्छी हो सकती हैं. मिसाल के तौर पर हिन्दी फिल्म कहानी बहुत अच्छी है, लेकिन यह मुख्यधारा की फिल्म थी. मैं इसी तरह के सिनेमा की बात कर रही हूं, जिसमें मकसद होता है, एक संदेश रहता है, जिसमें अदाकारों का प्रदर्शन अच्छा हो और केवल नाच गाना न हो. यह भी जरूरी है. इसमें मजा भी आता है लेकिन मेरी तरह 45 साल की महिला के लिए रोल कम हैं और मुझे अच्छी फिल्में करने का मन है.
लव वाली रेवती और 45 साल वाली अदाकार रेवती में क्या फर्क है?
यह सवाल तो बिलकुल वैसा ही है कि आप स्कूल में थे तो कैसे थे, फिर कॉलेज में कैसे थे और अब आपकी शादी हो चुकी है और बच्चे हैं तो आपको कैसा लग रहा है. हां, हम बदलते हैं, मंजते हैं. हमारी पसंद नापसंद बदलती हैं. उस उम्र में लव सुंदर था, वह एक अच्छी फिल्म थी और मुझे उसमें काम करने में मजा आया. अगर आप मुझसे ऐसी फिल्म आज करने को कहें, तो यह काम नहीं करेगा क्योंकि मैं वैसी दिखती नहीं. अब कुछ अलग करना होगा. तो हां, एक व्यक्ति के तौर पर मैं बदली हूं, एक आदाकार के तौर पर बदली हूं.
क्या भारत में 45-50 की उम्र के लोगों में प्यार होने को लेकर सोच बदली है?
बदला तो नहीं है, यह कह सकते हैं कि यह बदलाव अभी चल रहा है. निर्देशक रंजीत शंकर को मॉली आंटी के साथ भी दिक्कत हुई. उन्होंने जब डिस्ट्रिब्यूटरों से कहा कि इसमें रेवती है और वह एक 45 साल की महिला की भूमिका अदा कर रही हैं, तो काफी संघर्ष करना पड़ा. कोई भी फिल्म खरीदना नहीं चाहता था. फिल्म बनने के बाद जब लोगों को दिखाया गया तो उन्होंने कहा, अच्छा यह तो मजेदार फिल्म है, गंभीर नहीं है. लोगों को लगता है 45 साल के होने के बाद आप गंभीर हो जाते हैं. लोगों की सोच बदल रही है लेकिन यह अब भी शुरुआती दौर में है.
यह एक बहुत ही सकारात्मक संदेश है, कि उम्र बढ़ने पर भी आप जिंदगी का मजा ले सकते हैं.
हां, मुझे लगता है कि हर उम्र की अपनी सुंदरता होती है और अगर हम इसे फिल्मों में दिखा सकते हैं तो यह शानदार है. क्योंकि इससे दर्शकों को भी मदद मिलती है. अगर आप 40-45 साल के हैं तो इसका मतलब नहीं कि आप घर पर बैठे रहें और दिन भर साड़ी पहने रहें. इस फिल्म में कॉस्ट्यूम भी अच्छी तरह सोचकर बनाए गए. रंजीत नहीं चाहते थे कि मैं पूरी फिल्म में साड़ियां पहने रहूं. क्योंकि मॉली अमेरिका से भारत आई है और वह पैंट शर्ट पहनेगी क्योंकि यह एक कामकाजी औरत के लिए सहूलियत वाले कपड़े हैं.
फिल्म में आपके कपड़ो पर लोगों की कैसी प्रतिक्रिया रही?
हैरानी वाली बात है कि लोगों ने सोचा, हां, मॉली तो ऐसे ही कपड़े पहनेगी. मॉली आंटी ऐसी ही है. उन्हें यह बात बहुत अच्छी लगी.
श्टुटगार्ट में जूरी के नेतृत्व का अनुभव कैसा रहा?
जूरी में रहना एक बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे इसमें खुशी नहीं होती. क्योंकि इसमें एक फिल्म को चुनना पड़ता है. मेरे लिए हर फिल्म अहम है. हर फिल्म अलग है. इनकी तुलना करना मुश्किल काम है. इस साल प्रतियोगिता में दस फिल्में थीं. इनमें से तीन चार फिल्में ऐसी थी जिनको लेकर हममें खूब बातचीत हुई, विवाद हुए. इसके बाद ही हम एक विजेता चुन पाए.
इंटरव्यूः मानसी गोपालकृष्णन, श्टुटगार्ट
संपादनः निखिल रंजन