मौज-मस्ती के लिए दुनिया को खतरे में डालते रूसी ओलिगार्क
२६ मार्च २०२२यूक्रेन पर रूसी हमले के एक महीने से ज़्यादा हो गए हैं. फिलहाल, किसी को नहीं पता कि यह युद्ध कब खत्म होगा. इस बीच रूस और रूसी ओलिगार्कों (धनाढ्य वर्ग) पर प्रतिबंधों का सिलसिला जारी है. रूसी ओलिगार्कों पर प्रतिबंधों के मद्देनजर, दुनिया के कुछ सबसे बड़े और आलीशान सुपरयॉट को यूरोपीय संघ के जलीय क्षेत्र से बाहर निकाला जा रहा है. जबकि कई यॉट पहले ही जब्त कर लिये गये हैं . अब तक रूसी ओलिगार्कों की करीब 50 करोड़ यूरो से ज्यादा मूल्य की यॉट जब्त कर ली गई है.
पुतिन के सहयोगी और जाने-माने अरबपति कारोबारी रोमन अब्रामोविच तेल और गैस बेचकर मौजूदा मुकाम पर पहुंचे हैं. प्रतिबंधों के मद्देनजर इन्होंने अपने दो सुपरयॉट को उन जलीय इलाके में पहुंचा दिया है जहां प्रतिबंध नहीं है. इसमें से एक यॉट को तुर्की के बोडरम बंदरगाह पर खड़ा किया गया है. अब्रामोविच का सुपरयॉट दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे महंगा यॉट माना जाता है.
यह भी पढ़ेंः अमेरिकी प्रतिबंधों का लक्ष्य पुतिन को कमजोर करना
हालांकि चूहे-बिल्ली का यह खेल यूक्रेन पर रूसी हमले के दौरान एक नई कहानी बनकर सामने आया है. लोग इन सुपरयॉट से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के बारे में काफी कम जानते हैं. अब इससे जुड़ी सच्चाई सामने आ रही है कि यह किस कदर पर्यावरण के लिए खतरनाक है. कहा यह भी जाता है कि पुतिन खुद एक लग्जरी यॉट के मालिक हैं.
इंडियाना विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर रिचर्ड विल्क और एंथ्रोपोलॉजी से पीएचडी कर रहे उनके सहयोगी बीट्रिज बैरोस के रिसर्च के अनुसार, लक्जरी मेगा-यॉट एक वर्ष में 7,020 टन CO2 तक जला सकते हैं. विल्क और बैरोस दुनिया के अमीर व्यक्तियों के कारण होने वाले कार्बन के उत्सर्जन का रिकॉर्ड तैयार कर रहे हैं. वे कहते हैं कि ऐसे जहाज जिनमें हेलीकॉप्टर, पनडुब्बियां, स्विमिंग पूल और चालक दल के 100 सदस्य मौजूद होते हैं वे "पर्यावरण के लिहाज से अब तक की सबसे खराब संपत्ति" हैं.
विल्क और बैरोस के विश्लेषण से यह जानकारी सामने आयी है कि दुनिया के शीर्ष 20 अरबपतियों ने सिर्फ 2018 में औसतन 8,000 मीट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन किया. हालांकि, इन अरबपतियों में से कुछ ने काफी कम तो कुछ ने काफी ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन किया. इसी दौर में दुनिया भर में नागरिकों का औसत कार्बन फुटप्रिंट 4 टन और अमेरिकी नागरिकों का 15 टन था. इन शीर्ष अरबपतियों ने जितना कार्बन का उत्सर्जन किया उसमें से दो-तिहाई के लिए ये सुपरयॉट जिम्मेदार हैं.
सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले अरबपति रोमन अब्रामोविच के पास दो सबसे बड़ी यॉट भी है. अब्रामोविच का ‘एक्लिप्स' जो फिलहाल तुर्की में मौजूद है उसे दुनिया का सबसे महंगा मेगायॉट माना जाता है. अनुमान के मुताबिक, तेल और गैस के दिग्गज कारोबारी अब्रामोविच ने सिर्फ 2018 में 33,859 मीट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन किया था. रूसी कारोबारी के दो-तिहाई कार्बन फुटप्रिंट के लिए यह यॉट जिम्मेदार है. इस एक्लिप्स यॉट के संचालन में हर साल करीब 6 करोड़ डॉलर खर्च होता है.
रिपोर्ट के लेखकों ने कहा कि बिल गेट्स के पास करीब 124 अरब डॉलर की संपत्ति है जो कि अब्रामोविच से करीब 10 गुना ज्यादा है. अब्रामोविच के पास महज 14 अरब डॉलर की संपत्ति है. इसके बावजूद, गेट्स ने अब्रामोविच से 80 फीसदी कम कार्बन का उत्सर्जन किया. बिल गेट्स के पास अपना सुपरयॉट भी नहीं है. हालांकि, वे कभी-कभी निजी जेट से यात्रा करते हैं.
विल्क और बैरोस इन आंकड़ों को ‘बर्फ के पहाड़ का ऊपरी हिस्सा' बताते हैं, क्योंकि उनमें ‘एम्बेडेड' कार्बन शामिल नहीं हैं. इसका मतलब है कि इन यॉट के बनाने के दौरान कार्बन का जितना उत्सर्जन हुआ वह आंकड़ा इसमें शामिल नहीं है. एम्बेडेड कार्बन का एक अन्य रूप जीवाश्म ईंधन के लिए खर्च किया गया पैसा हो सकता है जिसका इस्तेमाल इन लक्जरी यॉट के लिए किया जाता है.
इटली ने प्रतिबंधों के बाद जिस ‘सेलिंग यॉट ए' को जब्त किया है वह रूसी अरबपति एंड्री इगोरविच मेल्निचेंको का है. मेल्निचेंको कोयला कंपनी एसयूईके के मालिक हैं. इसके अलावा, गोपनीयता कानून और डेटा संरक्षण से जुड़ी नीतियां भी कई अरबपतियों के लिए ढाल का काम करती है.
रिपोर्ट के लेखकों का कहना है, "इन सब के बावजूद, हमें लगता है कि हमारा विश्लेषण एक उदाहरण है और जलवायु परिवर्तन के लिए कौन जिम्मेदार है, इस पर चल रही बहस में योगदान देकर मूलभूत मुद्दों को सामने लाता है.” वास्तव में किसी को भी यह नहीं पता कि 140 मीटर से ज्यादा लंबे ‘शहरजाद' सुपरयॉट का मालिक कौन है. कुछ लोगों का कहना है कि यह रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन का है.
दुनिया में मौजूद सभी मेगायॉट जलवायु के हत्यारे नहीं हैं. द अर्थ 300 दुनिया का सबसे बड़ा सुपरयॉट होगा. इसके बावजूद, इसका उत्सर्जन शून्य रहेगा. साथ ही, इस सुपरयॉट का उद्देश्य धरती की सबसे बड़ी चुनौती जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए विज्ञान और खोज को एकसाथ लाना है. 300 मीटर लंबे इस यॉट पर 400 लोग रहेंगे और इसे 2025 में लॉन्च किया जाएगा. इसका कार्बन फुटप्रिंट काफी कम होगा और यह परमाणु ऊर्जा से संचालित होगा.