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समाज

एवरेस्ट के रास्तों पर दम तोड़ रही हैं जिंदगियां

२८ मई २०१९

एवरेस्ट से सकुशल वापस आए अनुभवी पर्वतारोही रास्तों में होने वाले हादसों और मौतों के लिए ट्रेनिंग की कमी को जिम्मेदार मानते हैं. पर्वतारोही मानते हैं कि परमिट दिए जाने से पहले उम्मीदवारों की योग्यता की जांच होनी चाहिए.

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Mount Everest Massentourismus
तस्वीर: AFP/Project Possible

एवरेस्ट फतह करने गए पर्वतारोहियों के साथ होने वाले हादसों की खबरें आना अब शायद आम हो गया है. आंखों में सपने और दिल में जोश भरे जब पर्वतारोही अपनी यात्रा के लिए निकलते हैं तो उन्हें शायद इस बात का वास्तविक अंदाजा नहीं होता कि रास्तों पर बिछी बर्फ कोई मखमली नहीं बल्कि पथरीला अहसास कराएगी.

अमीषा चौहान
अमीषा चौहानतस्वीर: AFP/G. Rai

अमीषा चौहान भी एक ऐसी ही पर्वतारोही हैं जो एवरेस्ट के रास्तों में मिले "ट्रैफिक जाम" में फंसने के बाद सीधे अस्पताल पहुंच गईं. अमीषा फ्रॉस्टबाइट का शिकार हुईं. अब वह अपनी इस तकलीफ का इलाज करा रही हैं. एवरेस्ट पर होने वाले हादसों को लेकर अमीषा कहती हैं कि बुनियादी प्रशिक्षण के बिना एवरेस्ट की चोटी पर जाने वालों को रोका जाना चाहिए. अमीषा ने बताया, "चढ़ाई के दौरान मुझे ऐसे कई पर्वतारोही मिले जिनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं था और वे पूरी तरह अपने शेरपा गाइड पर निर्भर थे."

Nepal Everest Besteigerin Ameesha Chauhan
फ्रॉस्टबाइट का शिकार अमीषातस्वीर: AFP/G. Rai

उन्होंने बताया कि जिनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं होती वे गलत निर्णय लेते हैं और अपने साथ-साथ शेरपा की जिंदगी को भी खतरे में डालते हैं. चढ़ाई के रास्ते पर मिलने वाली भीड़ को लेकर अमीषा बताती हैं, "मुझे नीचे आने के लिए 20 मिनट का इंतजार करना पड़ा, लेकिन वहां कई ऐसे लोग थे जो ना जाने कितने घंटों से फंसे थे."

अमीषा मानती हैं कि प्रशासन को पर्वतारोहियों को एवरेस्ट पर जाने की इजाजत देने से पहले उनकी योग्यता जांचनी चाहिए. साथ ही सिर्फ प्रशिक्षित पर्वतारोहियों को ही जाने की इजाजत मिलनी चाहिए. पिछले दो हफ्तों में तकरीबन दस लोगों की जान चली गई. कुछ जानें खराब मौसम के चलते, कुछ ऑक्सीजन खत्म होने के चलते तो कुछ की मौत ठंडे रास्तों में फंसे रहने के कारण हो गई. अमीषा बताती हैं कि कई बार पर्वतारोही स्वयं की लापरवाही के चलते जान गवां बैठते हैं. ऑक्सीजन खत्म होने के बावजूद वे चोटी पर पहुंचने की जिद करते हैं और अपनी जिंदगी को खतरे में डालते हैं.

हाल में एक अन्य पर्वतारोही और ऐडवेंचर फिल्ममेकर एलिया साइक्ले ने इंस्टाग्राम पर डाली एक पोस्ट में कहा था कि एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर उन्होंने जो देखा उस पर उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ. उन्होंने लिखा, "मौत, लाशें, अराजकता. रास्तों पर लाशें और कैंप में और चार लाशें. जिन लोगों को मैंने वापस भेजने की कोशिश की थी उनकी भी यहां आते-आते मौत हो गई. लोगों को घसीटा जा रहा है. लोग लाशों पर से गुजर रहे थे." एलिया ने लिखा, "जो कुछ भी आप किसी सनसनीखेज हेडलाइन में पड़ते हैं, वह सब उस रात हमारे सामने मंडरा रहा था."

साल 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे के पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद से पर्वतारोहण एक आकर्षक व्यवसाय बन गया है. पर्वतारोहण के लिए नेपाल की ओर से जारी किए जाने वाले परमिट की कीमत करीब 11 हजार डॉलर है. ऐसे परमिटों के जरिए नेपाल के पास अच्छी खासी विदेशी मुद्रा आती है. इस साल तकरीबन 140 परमिट तिब्बत के उत्तरी छोर से जाने के लिए दिए गए थे. हालांकि अब तक स्पष्ट आंकड़ा नहीं आया है कि साल 2018 के मुकाबले 2019 में कितने लोगों ने एवरेस्ट की चढ़ाई की. हालांकि मारे गए पर्वतारोहियों में चार भारतीय और एक अमेरिका, ब्रिटेन और नेपाल से थे. उत्तरी तिब्बत की ओर से जाने वालों में एक ऑस्ट्रियन और आइरिश पर्वतारोही की मौत की पुष्टि की गई है.

मारे गए चार भारतीयों में एक 27 साल का निहाल बागवान भी था, जो करीब 12 घंटे के इंतजार के बाद लौटते वक्त अपनी जान गवां बैठा.

एए/आईबी (एएफपी)

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