म्यांमार के दयनीय शिविरों में रह रहे हैं विस्थापित रोहिंग्या
८ अक्टूबर २०२०ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) संगठन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि सबको मिल कर आंग सान सू ची की सरकार से रोहिंग्या मुसलमानों को रिहा करने की मांग करनी चाहिए. ये शिविर बौद्ध बाहुल्य वाले म्यांमार में अल्पसंख्यक मुस्लिम रोहिंग्या समुदाय के लोगों के साथ लंबे समय से चले आ रहे भेदभाव की विरासत हैं. 2012 में रोहिंग्या और बौद्ध राखाइन समुदाय के बीच हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद ये शिविर बने थे.
हिंसा की वजह से दोनों पक्षों के कई लोग बेघर हो गए थे, लेकिन उसके बाद लगभग सारे बौद्ध या तो अपने घर वापस लौट गए हैं या उनका पुनर्वास करा दिया गया है, लेकिन रोहिंग्या वापस नहीं लौट सके हैं. एचआरडब्ल्यू ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि 24 शिविरों में अमानवीय हालात हैं और इनके इर्द गिर्द कड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं. इनके अलावा राखाइन राज्य में भी रोहिंग्याओं को प्रतिबंधों में रखा गया है और इन सब का जीने का अधिकार और दूसरे मूल अधिकार खतरे में हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, "आजीविका, आना जाना, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्याप्त भोजन और आश्रय पर कड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं और इसके अलावा इन तक पहुंचने वाली मानवीय मदद पर भी प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, जिस पर रोहिंग्या निर्भर हैं. शिविरों में बंद लोगों में उनके राखाइन पड़ोसियों के मुकाबले कुपोषण, पानी के रास्ते होने वाली बीमारियों, और शिशुओं और माताओं के बीच मृत्यु दर ज्यादा ऊंची है.
रिपोर्ट की लेखिका और एचआरडब्ल्यू में एशिया रिसर्चर शायना बॉकनर का कहना है, "सरकार का संगीन अंतरराष्ट्रीय अपराध नहीं करने का दावा तब तक खोखला रहेगा जब तक वो कंटीली तारों को काट रोहिंग्याओं को पूरी कानूनी सुरक्षा के साथ अपने घर लौटने की इजाजत नहीं दे देती." म्यांमार की सरकार ने तुरंत इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. एचआरडब्ल्यू का कहना है कि औपचारिक नीतियों, अनौपचारिक कदमों, नाकेबंदी, कंटीली तारों और जबरन वसूली के एक विस्तृत जाल की वजह से इन शिविरों में रहने वाले लोग स्वतंत्रता से कहीं आ-जा नहीं सकते.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि शिक्षा और रोजगार के अवसरों के अभाव की वजह से प्रणालीगत नुकसान हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, "शिविरों में रह रहे 65,000 बच्चों के लिए शिक्षा का अभाव उनके मूल अधिकारों का हनन है. इस से रोहिंग्याओं को दीर्घकालिक रूप से अधिकारहीन और दूसरों से अलग किया जा रहा है. युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भरता और सम्मान के भविष्य से दूर किया जा रहा है. उनसे बाकी समुदाय के साथ फिर से घुलने मिलने की संभावना भी छीनी जा रही है."
म्यांमार सरकार ने अप्रैल 2017 में ही शिविरों को बंद करने की योजना की घोषणा की थी, लेकिन एचआरडब्ल्यू ने कहा कि उस योजना के तहत शिविरों की जगह स्थायी ढांचे बनाए जाएंगे, जिनसे "अलगाव और गहरा जाएगा और रोहिंग्याओं के अपनी जमीन पर वापस लौटने, अपने घरों को दोबारा बनाने, दोबारा रोजगार पाने और म्यांमारी समाज में फिर से शामिल होने के अधिकारों का हनन होगा."
सीके/एए (एपी)
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