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यूनिवर्सिटी में पढ़ाई अंग्रेजी में हो या नहीं?

८ जून २०१३

यूरोप के लोग अंग्रेजी ना बोलने के लिए बदनाम हैं. जर्मनी, फ्रांस या फिर इटली, सभी देश अपनी भाषा से जुड़े रहना पसंद करते हैं और इसीलिए उच्च शिक्षा राष्ट्रीय भाषा में ही होती है. इसका नुकसान उठाना पड़ता है विदेशी छात्रों को.

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तस्वीर: gemeinfrei

बिना भाषा जाने यूरोप आ कर पढ़ना बहुत मुश्किल है. इसका समाधान निकालते हुए कई देशों में नए कोर्स शुरू हुए हैं जो अंग्रेजी में पढ़ाए जाते हैं. हाल ही में इटली में एक कोर्ट ने अंग्रेजी में पढ़ाने की बात को ही खारिज कर दिया. इसके बाद से यूरोप भर में भाषाओँ को ले कर बहस शुरू हो गयी है. एक तरफ वे लोग हैं जो मानते हैं कि वैश्वीकरण के समय में अंग्रेजी से दूर रहना ना केवल नामुमकिन है, बल्कि बेवकूफी भी, तो दूसरी ओर वे भी हैं जिन्हें लगता है कि ऐसा करने से संस्कृतियों पर खतरा मंडराने लगेगा.

इटली में बहस

भारत में अधिकतर यूनिवर्सिटियों में पढ़ाई अंग्रेजी में ही होती है, इसीलिए छात्रों को देश से बाहर जा कर उच्च शिक्षा हासिल करने में भी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता. इटली भी इसी राह पर चलना चाहता था. 2015 तक मिलान की पॉलीटेक्निक यूनिवर्सिटी में सभी अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट कोर्स अंग्रेजी में शुरू करने की योजना थी. इसके लिए पिछले साल से प्रोफेसरों और यूनिवर्सिटी के अधिकारियों को भी अंग्रेजी सिखाई जा रही थी. यूनिवर्सिटी के रेक्टर जियोवानी एजोन का कहना है कि इसमें 23 लाख यूरो के खर्च का अनुमान लगाया गया है.

एजोन कहते हैं कि ऐसा कर के वह इटली और दुनिया भर की प्रतिभाओं को आकर्षित करना चाहते हैं. साथ ही वह यह तर्क भी देते हैं कि आर्थिक मंदी के कारण देश में युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि युवाओं को भविष्य के लिए इस तरह से तैयार किया जाए कि वे विदेश में भी रोजगार ढूंढ सकें. लेकिन 1,400 अध्यापकों वाली इस यूनिवर्सिटी में हर कोई इसके हक में नहीं था. कईयों ने इसके खिलाफ अदालत में याचिका दायर कर दी, और अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुना दिया.

Internationale Austauschstudenten HHL Leipzig
तस्वीर: picture alliance/ZB

संस्कृति की दुहाई

मिलान की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर हांस दे विट का कहना है कि इस से यह पता चलता है कि कुछ लोग अपनी नौकरियों को ले कर काफी असुरक्षित महसूस करते हैं. उनका कहना है कि लोगों का संस्कृति की दुहाई दे कर अंग्रेजी से भागने का तर्क बेतुका है, "नीदरलैंड्स, फ्रांस, जर्मनी, हर जगह इस तर्क को इस्तेमाल किया जा चुका है, लेकिन इसके कोई प्रमाण नहीं हैं. संस्कृति इतनी कमजोर नहीं होती कि अंग्रेजी में पढ़ाई करने से वह खारिज हो जाए".

दे विट का कहना है कि मिलान की यूनिवर्सिटी ने जल्दबाजी दिखा कर गलती कर दी, "आप अचानक से यह कह दें कि दो साल बाद सब कुछ अंग्रेजी में ही हुआ करेगा, तो इस से आप लोगों को असुरक्षित बनाएंगे और अपने ही खिलाफ विरोध पैदा करेंगे".

यूनिवर्सिटी अब अदालत के खिलाफ अपील करना चाहती है. कुछ अध्यापक भले ही अंग्रेजी में पढ़ाने के खिलाफ हों, लेकिन छात्रों में इसकी मांग को देख कर अंग्रेजी का पलड़ा भारी लग रहा है.

रिपोर्ट: एम विलियम्स/ ईशा भाटिया

संपादन: एन रंजन

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