यूरोपीय संघ की चुनौतियां
यूरोपीय संघ के कई देशों में लगातार यूरोप विरोधी पार्टियां जीत रही हैं. यह आप्रवासियों का भी विरोध करती हैं और बचत करने की नीति का भी. 28 देशों से मिल कर बने यूरोपीय संघ के सामने क्या चुनौतियां हैं देखें तस्वीरों में.
शरणार्थी नियमों का बवाल
यूरोपीय संघ के शरणार्थी नियमों पर सवाल उठते रहे हैं. पिछले साल अक्टूबर में भूमध्य सागर पार कर यूरोप आने की कोशिश कर रहे 360 अफ्रीकी प्रवासी डूब गए. अब संघ इन देशों के साथ रिश्ते बेहतर करने की कोशिश कर रहा है.
कितने देश मिलेंगे
पिछले एक दशक में यूरोप के 28 देश इस संघ में शामिल हो चुके हैं. लेकिन नए आवेदनों का सिलसिला भी लगातार जारी है. अगला नंबर सर्बिया का हो सकता है. लेकिन क्या यह सिलसिला कभी थमेगा.
बेरोजगारों का संघ
आर्थिक स्तर पर सभी देश बराबर नहीं. यूरोपीय संघ में ढाई करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं. अंतरराष्ट्रीय प्रेक्षकों का कहना है कि इन्हें रोजगार देने के लिए सही कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.
आर्थिक मजबूती की दरकार
अगर यूरोपीय संघ विश्व स्तर पर अपनी मजबूत पहचान बनाना चाहता है, तो इसे अर्थव्यवस्था सुधारनी होगी. इसके लिए कई देशों से मुक्त व्यापार का समझौता भी करना होगा. इसके अलावा हर सदस्य को अपनी समस्या खुद सुलझानी होगी.
लगातार निर्माण
संघ लगातार बदल रहा है. इसके लिए लगातार निर्माण हो रहा है. हालांकि इससे आम लोगों को दिक्कत हो सकती है लेकिन इसकी वजह से रोजगार भी मिल रहे हैं.
यूरोपीय लोगों की पसंद
संघ के अंदर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जो इस विचार को गलत मानते हैं. वे कई देशों के संघ को बहुत कारगर नहीं समझते. इन चुनावों में ऐसी सोच रखने वाली पार्टियों भी हैं.
विरोधियों का गठबंधन
जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस सहित कई देशों में यूरोपीय संघ की मुखालफत करने वाली पार्टियां हैं. सवाल यह है कि क्या वे संघ के मंच पर भी एक साथ आ सकती हैं.
आपदा प्रबंधन
यूरोजोन में संकट के दौरान कई देशों को बेलआउट पैकेज मिले. आयरलैंड, स्पेन और पुर्तगाल ने तो इसका सही फायदा उठाया और अब उनकी अर्थव्यवस्था धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. लेकिन कई देश अभी भी खस्ताहाल हैं.
समस्या की जड़
ऐसा नहीं हो सकता कि बार बार बैंक डूबते रहें और बार बार करदाता अपने पैसे से उन्हें बचाएं. भविष्य में बैंकिंग यूनियन खराब स्थिति में यूरोपीय संघ से हस्तक्षेप को कहेगा.
आंकड़ों की सुरक्षा
यूरोपीय संघ में ईमेल और फोन कॉल रिकॉर्ड दो साल तक रखने का प्रावधान है. लेकिन हाल में अमेरिकी खुफिया एजेंसी की जासूसी कांड के बाद इस पर सवाल उठ रहे हैं.