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क्या रूस व्हेलों से करा रहा है जासूसी?

३० अप्रैल २०१९

नॉर्वे में मछुआरों को आर्कटिक सागर के इलाकों में गले पर पट्टा बांधे एक बेलुगा व्हेल मिली. पट्टे पर लिखे शब्दों ने व्हेल को रहस्यमयी बना दिया है. वैज्ञानिकों को अंदेशा है इस बेलुगा के तार रूसी सेना से जुड़े हो सकते हैं.

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Norwegen Beluga Wal mit Kamerahalterung
तस्वीर: Joergen Ree Wiig/Norwegian Direcorate of Fisheries Sea Surveillance Unit via AP/picture-alliance

बेलुगा व्हेल के गले में बंधे पट्टे ने नार्वे के अधिकारियों की नींद उड़ा दी है. अधिकारियों को शक है कि वह आर्कटिक में मिलने वाली यह कोई आम बेलुगा नहीं है बल्कि उसे रूसी सेना ने प्लांट किया है. नार्वेजियन डायरेक्टरेट ऑफ फिशरीज के जॉर्जन री विग के मुताबिक, "पट्टे पर सेंट पीटर्सबर्ग लिखा है, साथ ही उसमें कैमरे के लिए भी जगह है." उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले एक मछुआरे ने खबर दी थी कि गले में तंग पट्टा बांधे एक सफेद कैटेकन (समुद्री डॉल्फिन की एक प्रजाति) समंदर में नजर आ रही है. इसके बाद मछुआरे को पट्टा हटाने के लिए समुद्र में भेजा गया.

Norwegen Beluga Wal mit Kamerahalterung
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. R. Wiig

री विग ने बताया कि नॉर्वे की सेना गले के पट्टे की गुत्थी सुलझाने में लगी है. हालांकि यह तुरंत साफ नहीं हो सका है कि इस स्तनधारी जीव को किसी खास मिशन या प्रोग्राम के तहत प्रशिक्षित किया गया है या इसका संबंध रूसी सेना से है. नॉर्वे के शहर ट्रॉमसो में आर्कटिक यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ आर्कटिक एंड मरीन बायलॉजी के प्रोफेसर आउदुन रिकार्डसन ने बताया कि उन्हें रूस और नार्वे के स्कॉलरों से पता चला है कि उनका कोई प्रोग्राम और प्रयोग बेलुगा व्हेलों पर नहीं चल रहा है.  

हालांकि रूस के इतिहास से ऐसा कोई मामला नहीं है जब किसी सैन्य कार्यक्रम के लिए व्हेलों का इस्तेमाल किया गया हो. लेकिन सोवियत काल में डॉल्फिनों के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम हुआ करते थे. शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ, क्रीमियाई प्रायद्वीप में सेवास्तोपोल बेस का इस्तेमाल स्तनधारियों को विस्फोटक प्लांट करने, खान और खुदाई में खोज जैसे सैन्य कार्यक्रमों के लिए प्रशिक्षित करता था.

हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद यह बेस बंद कर दिया गया था. लेकिन रूस के क्रीमिया पर कब्जे के बाद ऐसी खबरें आईं कि उस कैंप को अब फिर से शुरू किया गया है. रूस के रक्षा मंत्रालय ने 2016 में एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए पांच डोल्फिन खरीदने से जुड़ा एक टेंडर नोटिस निकाला था. नोटिस में यह नहीं बताया गया था कि आखिर किस तरह की ट्रेनिंग में डॉल्फिन का इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन यह जरूर कहा गया था कि डॉल्फिनों के दांत अच्छे होने चाहिए. वहीं इस टेंडर विज्ञापन को कुछ दिन बाद ऑनलाइन मीडिया से हटा भी लिया गया था.

एए/एमजे (एपी)