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साहित्य

राइनर मारिया रिल्के: माल्टे लाउरिड्स ब्रिगे के नोटबुक

आयगुल चिमचियोग्लू
११ दिसम्बर २०१८

रिल्के का डायरी जैसा ये पाठ कथानक या कालक्रम की अनुपस्थिति में भी, समकालीन किस्सागोई का झंडाबरदार है. प्रतिष्ठित कवि ने अपने इस इकलौते उपन्यास के जरिए साहित्य में अस्मिता के संकट की शिनाख्त की है.

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Rainer Maria Rilke, deutscher Dichter
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Imagno/Austrian Archives

"लोग यहां आते हैं, तो क्या, जीने के लिए? मुझे दरअसल सोचना चाहिए था कि वे तो यहां मरने के लिए आते हैं." शायद ही कोई माने, लेकिन ये बात रिल्के पेरिस के बारे में कह रहे थे- सदी के अंत की, दमकती हुई एक सांस्कृतिक महानगरी. लेकिन वो भव्यता और चमकदमक उनके उपन्यास में कहीं नजर नहीं आती. बल्कि, पाठक टकराता है, कोलाहल भरे, उदास और डरावने, एक अत्यंत भीमकाय पथरीले गुमनाम समन्दर से. इन सबके बीच युवा डेन है जिसके पास पैसे नहीं हैं, वो एक पुराने संभ्रांत परिवार की संतान है, और पेरिस में खुद को बतौर कवि परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है.

आतंक का दानव

अपने अद्भुत पार्कों और आकर्षक वास्तुकला वाले, सेन नदी के किनारे बसे शहर की खूबसूरती को लेखक बामुश्किल ही रेखांकित करता है. इसके बजाय, माल्टे लाउरिड्स ब्रिगे अपने कमरे में अकेला बैठा रहता है, बाहर सड़क की आवाजें सुनता रहता है, और डरा रहता है, जिंदगी से और अपने सपनों से.

तरक्की की रफ्तार

राइनर मारिया रिल्के ने 1910 में अपना उपन्यास पूरा किया था. उन्होंने उसे छह साल पहले रोम में लिखना शुरू किया था. पेरिस में 1902 से शुरू हुए अपने लंबे प्रवासों के दौरान चिट्ठियों में दर्ज उनके कई नोट्स और पंक्तियां इस उपन्यास में शामिल की गई हैं. मूर्तिशिल्पी ऑगुस्त रोदां पर एक मोनोग्राफ लिखने के लिए रिल्के ने पेरिस का रुख किया था. उस समय वो 35 साल के थे और अपनी परिष्कृत कविता के लिए मशहूर भी हो चुके थे, लेकिन धड़कते हुए महानगर की जिंदगी ने ऑस्ट्रिया से आए संवेदनशील लेखक का जी उचाट कर दिया.

20वीं सदी के शुरू का पेरिस
तस्वीर: Imago/Arkivi

‘माल्टे लाउरिड्स ब्रिगे के नोटबुक' में, रिल्के इस संताप और पराजय की भावना को प्रतिबिंबित करते हैं.

उपन्यास का कोई सच्चा प्लॉट नहीं है, और ये कोई क्लासिक कहानी भी नहीं है. बल्कि ये किताब, डायरी के उद्धरणों, गद्य कविताओं और वर्णनों से गुंथी हुई है. ये गठजोड़ों का एक उत्पात है, एक बवंडर, रिल्के के मन में धंसी हुई असुरक्षा की भावना को जाहिर करता हुआ. इसी भावना को रिल्के ने अपने उपन्यास के किरदार में उकेर दिया था. शहर खुद किस्सागोई की गति को निर्धारित करता है, तकनीकी विकास की रफ्तार, शहरी ट्रामों की धड़धड़,  हॉर्न की चिल्लपों, फैक्टरियों में मशीनों की निरंतर भिनभिनाहट.

रिल्के युगों की उथल-पुथल को दर्ज कर रहे थे, उनकी "गद्य की पुस्तक", जैसा कि रिल्के अपने उपन्यास को कहते थे, एक ऐसे दौर में स्थानीकरण की इच्छा और खुद को यकीन दिलाए रखने के बोध को प्रतिबिम्बित करती है, जब सब कुछ उलट-पलट हो चुका था. 

राइनर मारिया रिल्के: माल्टे लाउरिड्स ब्रिगे की नोटबुकें, डाल्के आर्काइव प्रेस/ शैंपेन और लंदन (जर्मन शीर्षक: डि आउफसाइषनुन्गेन डेस माल्टे लाउरिड्स ब्रिगे), 1910

राइनर मारिया रिल्के का जन्म 1875 में प्राग में हुआ था. 1926 में उनका निधन मॉन्ट्रो के नजदीक स्विट्जरलैंड के वालमों सैनेटोरियम में हुआ. वो ल्युकेमिया से पीड़ित थे. उन्होंने बड़े पैमाने पर कविताएं लिखी, जिनमें द द्विनो एलिजीस (1923) भी शामिल है. कविताओं के अलावा रिल्के ने नॉन फिक्शन भी लिखा और अनुवाद भी किए.