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समाज

राशन कार्ड बंधक रखने को मजबूर हैं बंगाल के आदिवासी

प्रभाकर मणि तिवारी
१९ अप्रैल २०२०

पश्चिम बंगाल में झारखंड से सटे पुरुलिया जिले के गांवों से चौंकाने वाली बात सामने आई है. जिले के ग्रामीण इलाकों में लोग महाजन से खेती और इलाज के लिए राशन कार्ड गिरवी रख कर पैसे लेते रहे हैं.

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Warteschlange für Essensrationen in Kalkutta
तस्वीर: DW/Prabhakar

पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस के दौरान लॉकडाउन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इन इलाकों में सूदखोर महाजनों के जाल की पोल खोल दी है. राशन कार्ड के एवज में महाजन सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाला सस्ता अनाज लेकर बेचता रहा है. इसकी पोल उस समय खुली जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लॉकडाउन की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को छह महीने तक हर महीने पांच किलो चावल और पांच किलो दाल देने का एलान किया.

इसके बाद लॉकडाउन के दौरान सरकारी सुविधाओं से वंचित आदिवासी जब स्थानीय बीजडीओ के पास पहुंचे तो इस बात का पता चला. उसके बाद जिला प्रशासन ने संबंधित महाजनों से लोगों के राशन कार्ड लेकर आदिवासियों को सौंपा. राशन के वितरण में होने वाली अनियमितताओं से नाराज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसी सप्ताह खाद्य सचिव मनोज अग्रवाल को हटा कर परवेज अहमद सिद्दिकी को नया सचिव बनाया है.

Alte Frau in einem hauseingang, Purulia, Indien
तस्वीर: DW/Prabhakar

पुरुलिया जिले के झालदा ब्लॉक के सरोजमातू गांव में लगभग डेढ़ सौ परिवार रहते हैं. इन सबके राशन कार्ड महाजन के पास गिरवी रखे थे. गांव के एक बुजुर्ग गौड़ कालिंदी बताते हैं, "मैंने 10 साल पहले पत्नी के इलाज के लिए एक महाजन से 10 हजार रुपये का कर्ज लिया था. उसके बदले राशन कार्ड गिरवी रखना पड़ा था." इसी गांव की 70 साल की राधिका ने चार साल पहले सात हजार रुपये के लिए अपना कार्ड गिरवी रख दिया था.

झालदा के बीडीओ राजकुमार विश्वास बताते हैं, "इस मामले की जांच की जा रही है. फिलहाल महाजनों से राशन कार्ड लेकर संबंधित लोगों को सौंप दिया गया है. लेकिन दोनों पक्षों में आपसी समझौता होने की वजह से गांव वालों ने महाजन के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है." सरोजमातू के अलावा आसपास के और कई दर्जन गांवों में भी तस्वीर मिलती-जुलती है.

सरोजमातू गांव की श्यामला कालिंदी, इंदर कालिंदी, राधा कालिंदी और भगीरथ कालिंदी की भी कहानी राधिका की तरह ही है. इन लोगों ने भी राशन कार्ड के एवज में महाजन से 10 से 20 हजार रुपये तक का कर्ज लिया था. राधा कालिंदी बताती हैं, "मैंने 22 हजार कर्ज लेकर बेटी की शादी की थी और उसके एवज में अपना कार्ड गिरवी रखा था. महाजन पैसे चुकाने पर ही कार्ड लौटाता है. गांव के ज्यादातर लोगों ने ऐसा ही किया है."

Offene Kochstelle in Purulia
तस्वीर: DW/Prabhakar

समाजशास्त्रियों का कहना है कि गांव के इन आदिवासियों के पास पूंजी के नाम पर राशन कार्ड के अलावा कुछ नहीं है. इसलिए इलाज हो या बेटी की शादी, कर्ज के लिए यह कार्ड ही इनकी पूंजी है. इसे गिरवी रख कर कर्ज लेना इन इलाकों में आम बात है. एक समाजविज्ञानी प्रोफेसर सुदीप्त चटर्जी कहते हैं, "मध्यवर्ग के परिवार जिस तह सोना गिरवी रख कर कर्ज लेते हैं, उसी तरह इलाके के लोग राशन कार्ड गिरवी रखते हैं. कई मामलों में तो कर्ज चुकाने में नाकाम रहने की वजह से पीढ़ी-दर-पढ़ी वह कार्ड महाजन के पास ही रहता है."

पुरुलिया के जिलाशासक राहुल मजुमदार कहते हैं, "लॉकडाउन नहीं होता तो यह बात सामने ही नहीं आती." पुरुलिया जिला परिषद के अध्यक्ष सूरज बनर्जी कहते हैं, "राशन कार्ड गिरवी रखने औ  उसे लेने वाले दोनों लोग समान रूप से कसूरवार हैं. आरोप मिलने पर प्रशासन कार्रवाई करेगा. लेकिन पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर करना शायद कोई नहीं चाहता. इसलिए गांव के लोगों ने अब तक महाजन के खिलाफ लिखित शिकायत नहीं की है.

खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक कहते हैं, "मैं इस घटना से हैरत में हूं. मैंने जिलाशासक व पुलिस अधीक्षक को इस मामले में हस्तक्षेप करने का निर्देश दिया है. जिले के बाकी तमाम गांवों में भी जांच की जा रही है ताकि ऐसे मामले की पुनरावृत्ति नहीं हो." यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि राशन कार्ड दूसरे को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता. बावजूद इसके इलाके में बरसों से यह काम चल रहा था.

Menschen bei der Arbeit |  Purulia, Indien
तस्वीर: DW/Prabhakar

दूसरी ओर प्रशासन की सक्रियता से महाजनों में नाराजगी है. सरोजमातू गांव के एक महाजन गुना कुईरी कहते हैं, "कुछ परिवारों ने कर्ज के लिए गारंटी के तौर पर राशन कार्ड गिरवी रखा था. मैंने उनसे ऐसा करने को कहा था. लेकिन अब तमाम कार्ड लौटा दिए हैं." गांव के एक अन्य महाजन की पत्नी रासू महतो कहती हैं, "गांव के लोगों ने हमसे कर्ज लिया था. इसके एवज में उन लोगों ने राशका र्ड गिरवी रखे थे. पुलिस ने कार्ड तो वापस ले लिया है. लेकिन हमारे पैसों का क्या होगा? हमने उस कार्ड पर मिलने वाले खाद्यान्न में हिस्सा देने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन पुलिस ने इसे खारिज कर दिया."

बीजेपी ने इसके लिए सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साधा है. पुरुलिया जिला बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष शंकर महतो कहते हैं, "मैंने जीवन में पहली बार राशन कार्ड के गिरवी रखने की घटना देखी है. सरकार विकास के दावे करने में जुटी है. लेकिन जमीनी हकीकत अलग है. प्रशासन को इस मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ कर्रवाई करनी चाहिए."

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