रिहा हो पाएंगी या नहीं सू ची
१२ नवम्बर २०१०म्यांमार में चुनाव संपन्न होने के बाद अब सू ची को रिहा किए जाने की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं. हालांकि नोबेल पुरस्कार विजेता सू ची की नजरबंदी का आखिरी दिन शनिवार को है और सैन्य सरकार ने अभी तक रिहाई के बारे में कोई फैसला नहीं किया है.
पिछले साल अगस्त में अदालत ने सू ची को देश विरोधी तत्वों को पनाह देने का दोषी ठहराते हुए उनकी नजरबंदी को एक साल के लिए बढ़ा दिया था. सू ची पर एक अमरीकी घुसपैठिए को अपने घर में दो दिन रखने का आरोप था.
विरोधियों का कहना है कि सरकार ने सू ची को इस साल होने वाले चुनाव में किनारे करने के लिए इस तरह के बेबुनियाद आरोप उनके खिलाफ लगाए. देश में 1990 के बाद पहली बार चुनाव हुए हैं. हालांकि सू ची की अगुआई वाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने पिछले सप्ताह हुए चुनाव का बहिष्कार किया था.
विश्व बिरादरी लंबे समय से सू ची और लगभग 2200 अन्य राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग कर रही है. जानकारों का मानना है कि सैन्य सरकार सू ची को अब रिहा कर देगी. क्योंकि ऐसा न करने पर इस बार की चुनाव प्रक्रिया को अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिल सकेगी. चुनाव में सैन्य सरकार समर्थित यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी को ही जीत हासिल हुई है. हालांकि चुनाव परिणाम से विश्व बिरादरी बहुत खुश नहीं है लेकिन इस जीत को भुनाने और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से मुक्ति पाने के एवज में सरकार सू ची की रिहाई कर सकती है.
इस बीच अमेरिका और यूरोपीय देशों की परेशानी है कि जब तक म्यांमार में पड़ोसी देश चीन, थाईलैंड और भारत का निवेश जारी रहेगा तब तक उसके खिलाफ लगे प्रतिबंध बेअसर ही हैं. इनका मानना है कि म्यांमार अपने तेल और गैस संसाधनों के इस्तेमाल की चीन को छूट देने के लिए तैयार है और इसके एवज में चीन उसे बिना शर्त राजनीतिक समर्थन देने को तैयार है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चीन के कारण म्यांमार के खिलाफ चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती.
हालांकि पिछले महीने म्यांमार के विदेश मंत्री न्यांग विन और गृह मंत्री मांग वू कह चुके हैं कि सू ची को सजा पूरी होने पर रिहा कर दिया जाएगा. लेकिन लोकतंत्र समर्थक देशों को सरकार पर भरोसा नहीं है और सू ची के समर्थक उस क्षण तक इंतजार करना चाहते हैं जब कि वह रिहा होकर दुनिया के सामने आ न जाएं.
रिपोर्टः एजेंसियां/निर्मल
संपादनः वी कुमार