रूबिक्स क्यूब के 30 साल पूरे
२४ सितम्बर २०१०रूबिक्स क्यूब से खेलकर बच्चे बड़े हो गए और बड़े बूढ़े हो गए लेकिन इस खेल में कोई खास बदलाव नहीं आया है. इसके लिए लोगों में चाहत बिल्कुल वैसे ही बरकरार है जैसी 1980 में इसके बाजार में आने के समय थी. बच्चों से लेकर बूढ़े तक, सब के सब आज भी रूबिक्स क्यूब की रंगीन पट्टियों को एक रंग में लगाने की अपनी दिमागी क्षमता को टेस्ट करते कहीं भी दिख जाते हैं.
इसे हाथ में लेते ही दिमाग एकदम चौकन्ना हो जाता है इस आशंका के कारण कि इस गुत्थी को सुलझाना इतना आसन भी नहीं हैं. बिना किसी टीम और तामझाम वाला यह खेल आज भी खेलने वालों के धैर्य की परीक्षा और दिमाग की कसरत करा रहा है.
जर्मनी में इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है. हाल ही में हुई "द जर्मन स्पीडक्यूबिंग चैंपियनशिप" में बर्लिन के 15 वर्षीय कॉर्लेनियस डाइसमान ने जीत हासिल कर जर्मन मास्टर अवॉर्ड पर कब्जा जमाया. इसी तरह की एक और प्रतियोगिता जीतने वाले 22 साल के रॉबिन ब्लॉम बताते हैं कि गणित की क्लास में लेक्चर समझ में न आने से बोर होने पर उन्होंने बगल में बैठे बच्चे के हाथ से रूबिक्स क्यूब लेकर पहली बार इसे खेला था.
उनका कहना है कि शुरू में भले ही इसे खेलने पर दिमाग पर खासा जोर डालना होता है लेकिन लगातार अभ्यास के बाद यह बांए हाथ का खेल हो जाता है. रॉबिन का कहना है कि जिन रंगीन पट्टियों को एक समान रंगों में सजाने के लिए कई घंटे लग जाते थे, अब चुटकियों में यह काम हो जाता है. सिर्फ अभ्यास का कमाल है.
दुनिया भर में काफी मशहूर हुआ यह खेल हंगरी के इंटीरियर आर्किटेक्ट एर्नो रूबिक के दिमाग की उपज था. उन्होंने 1970 के दशक में दिमागी कसरत के लिए इस खेल को इजाद किया. हालांकि हंगरी उस समय तत्कालीन सोवियत संघ के प्रभाव में था इसलिए रूबिक्स क्यूब को बड़े पैमाने पर बाजार में आने में 80 के दशक तक इंतजार करना पड़ा. एक अनुमान के मुताबिक अब तक रूबिक्स क्यूब 35 करोड़ की बिक्री के आंकड़े को पार कर गया है.
रिपोर्टः डीपीए/निर्मल
संपादनः ए कुमार