रूसी नियति की झलक है क्रीमिया
१५ मार्च २०१५क्रीमिया रूसियों के लिए खास जगह है. इसलिए कि हर रूसी ने कभी न कभी काला सागर पर स्थित इस धुपहले प्रायद्वीप पर अपनी खुशियों भरी छुट्टियां बिताई हैं. अच्छे मौसम वाला क्रीमिया 19वीं सदी से ही रूसी संस्कृति में आराम की जगह के रूप में जाना जाता है. शुरू में रूस के शासक वहां छुट्टियां बिताया करते थे. बाद में सोवियत काल में सारा देश वहां छुट्टियां बिताने लगा. सोवियत संघ के पतन के बाद यूक्रेन के आजाद होने के बाद भी रूसी वहां हर साल हजारों की तादाद में जाते रहे.
इसलिए कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि रूस के बहुत से लोग क्रीमिया को अपना मानते हैं. और जब एक साल पहले 18 मार्च को क्रीमिया रूस में वापस लौटा तो बहुत से लोगों ने इसे ऐतिहासिक न्याय समझा. उन्हें क्रेमलिन का तर्क मानने में कोई दिक्कत नहीं हुई कि क्रीमिया के निवासियों ने खुद एक जनमत संग्रह में रूस में शामिल होने का फैसला किया है और राष्ट्रपति पुतिन ने इस इच्छा का बस पालन किया है.
कानूनी तौर पर अवैध
इतनी भावनाओं और "क्रीमिया हमारा है" के नारों के विरोध में कुछ कहना मुश्किल है. लेकिन पश्चिमी देशों का कानूनी नजरिया साफ है कि रूस द्वारा क्रीमिया का अधिग्रहण अंतरराषट्रीय कानून के खिलाफ है, भले ही यूक्रेन के संविधान को नजरअंदाज कर दिया जाए जो देश के किसी हिस्से को अलग होने के लिए मतदान की अनुमति नहीं देता. या फिर रूस और यूक्रेन के बीच हुई संधियों को नजरअंदाज कर दिया जाए जिनमें रूस ने यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को बार बार माना है. पश्चिमी नजरिए से इस बात पर जोर दिया जाता है कि जनमत संग्रह वहां के निवासियों की इच्छा की स्वतंत्र अभिव्यक्ति नहीं था.
जल्दबाजी में कराए गए जनमत संग्रह से पहले सचमुच के राजनीतिक बहस की कोई प्रक्रिया नहीं चली. मतदान के लिए रखे गए प्रस्तान में यूक्रेन में रहने का कोई विकल्प नहीं था और मतदान की पूरी प्रक्रिया हथियारबंद रूसी सैनिकों और उनके सहयोगी आत्मरक्षा बलों की उपस्थिति में हुई. भले ही बहुत से रूसी इस बात को नहीं सुनना चाहते हों, लेकिन यह सच है कि पश्चिमी राजनीतिज्ञ क्रीमिया के अधिग्रहण को कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे.
भावी सुरक्षा संरचना
डोनबास में हो रहे रक्तपात और मिंस्क समझौते पर अमल की कूटनीतिक कोशिशों को देखते हुए क्रीमिया के अधिग्रहण की कानूनी व्याख्या उतनी अहम नहीं लगती. लेकिन क्रीमिया का दर्जा जोनबास की समस्या के कूटनीतिक समाधान के बाद भी रूस और पश्चिम के संबंधों को स्थायी रूप से प्रभावित करेगा. अमेरिका और यूरोपीय संघ अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के हनन को स्वीकार नहीं करेंगे. राष्ट्रपति पुतिन तो इस बीच क्रीमिया के जनमत संग्रह में रूस की भूमिका को खुलकर स्वीकार करने लगे हैं.
इसके साथ क्रीमिया यूरोप की नाकाम शांति और सुरक्षा संरचना का प्रतीक बन गया है. रूस और पश्चिम के संबंधों में असली सुधार तब आएगा जब क्रीमिया का कानूनी दर्जा अंतरराष्ट्रीय तौर पर तय हो. क्रीमिया की यूक्रेन में वापसी या रूसी यूक्रेन संधि के जरिए क्रीमिया को रूस को देने के रूप में. दोनों विकल्प इस समय मृगमरीचिका है. खासकर पुतिन की निरंकुश नीतियों के कारण. नतीजतन क्रीमिया विवाद के समाधान से पहले रूस में राजनीतिक बदलाव जरूरी होगा. इस तरह क्रीमिया रूस की नियति का प्रतीक बन गया है. वह सचमुच रूसियों के लिए खास जगह है.