रूस के विद्रोही को जर्मन मानवाधिकार पुरस्कार
९ फ़रवरी २०२४यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद मार्च 2022 में सर्गेई लुकाशेव्स्की ने अपने परिवार के साथ रूस छोड़ दिया. फिलहाल वो निर्वासन में रह रहे हैं लेकिन इसके पहले से ही वे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के शासन के खिलाफ लंबे समय से संघर्ष छेड़े हुए थे. लुकाशेव्स्की ने पिछले 14 साल रूस में मॉस्को के सखारोव केंद्र के प्रमुख के तौर पर बिताए, जो शायद देश का सबसे प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन है.
इस केंद्र का नाम सोवियत काल के प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और असंतुष्ट आंद्रेई सखारोव के नाम पर रखा गया है. यह केंद्र लंबे समय से रूसी नेतृत्व का मुखर आलोचक रहा है. साल 2012 में इसे ‘विदेशी एजेंट' घोषित किया गया था और फंडिंग से मनाही के बाद आखिरकार पिछले साल यानी 2023 की गर्मियों में इसे बंद कर दिया गया.
‘रेडियो सखारोव': नए रूस के लिए एक मंच
रूस के हजारों दूसरे बुद्धिजीवियों की तरह, सर्गेई लुकाशेव्स्की अब बर्लिन में रहते हैं और वहीं रहकर काम करते हैं. 48 वर्षीय इतिहासकार लुकाशेव्स्की कहते हैं, "24 फरवरी, 2022 के बाद पहले कुछ महीनों तक हम इस आपदा की वजह से सदमे की स्थिति में रहे.”
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हालांकि फिर उन्होंने एक नई चुनौती स्वीकार की. शोध समूह ‘करेक्टिव' के सहयोग से, लुकाशेव्स्की और उनके सहयोगियों ने निर्वासन में रहकर अपनी आवाज को लोगों तक पहुंचाने के लिए रेडियो का सहारा लिया और ‘रेडियो सखारोव' की स्थापना की. यह विचार उन लोगों के लिए एक वैश्विक सूचना और विनिमय मंच के रूप में सखारोव केंद्र को पुनर्जीवित करने का है जो पुतिन के बाद एक नए रूस को आकार देने में मदद करना चाहते हैं.
इन्हीं प्रयासों के चलते सर्गेई लुकाशेव्स्की को 28 जनवरी को 2024 के टोनहाले ड्यूसेलडोर्फ मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके तहत 10,000 यूरो की धनराशि दी जाती है. इस पुरस्कार को हंगरी में जन्मे संगीतकार, कंडक्टर एडम फिशर द्वारा शुरू किया गया था. उन्होंने तानाशाही शासन के दर्द का अनुभव किया था. उनके अपने दादा-दादी की मृत्यु होलोकॉस्ट (यहूदी नरसंहार) में हुई थी.
फिशर ने अपने भाषण में कहा था, "दुनिया भर में चल रहे भयानक युद्ध और संघर्ष, चाहे वह यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता का युद्ध हो, इस्रराइल पर हमास का हमला हो जिसकी वजह से गजा में विनाशकारी युद्ध हुआ, इन सबको हमें राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखकर मानवाधिकार उल्लंघनों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए. हालांकि तटस्थ रहना मुश्किल है, लेकिन किसी को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि ‘मानवाधिकार निरपेक्ष' हैं. वे लिंग, धर्म, मूल या राजनीतिक राय की परवाह किए बिना सार्वभौमिक हैं.”
रूस: आगे क्या होगा?
सर्गेई लुकाशेव्स्की और उनके साथियों के लिए यह पुरस्कार उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की मान्यता के एक प्रतीकात्मक संकेत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है. जर्मन समाज की सक्रिय एकजुटता के कारण यह उनके काम और रूस में लोकतंत्र समर्थक विपक्ष के अस्तित्व की ओर ध्यान आकर्षित करने का भी एक अवसर है. लुकाशेव्स्की ने जोर देकर कहा, "इस तथ्य की पहचान पश्चिमी यूरोप के अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण है.” लुकाशेव्स्की का मानना है कि व्लादिमीर पुतिन के शासन के तहत रूसी निरंकुशता ज्यादा समय तक नहीं चलेगी. वो कहते हैं, "बेशक, यह शासन भी समाप्त हो रहा है. हम बिल्कुल नहीं कह सकते कि कब, लेकिन यह सिर्फ समय की बात है.”
एक इतिहासकार के रूप में वे मुख्य रूप से इस बात से चिंतित हैं कि भविष्य में रूस को क्या भूमिका निभानी चाहिए? वे कहते हैं, "आपको पूरे रूसी इतिहास, खासकर पिछले तीन दशकों के इतिहास पर पूरी तरह से पुनर्विचार करना होगा. इस काम को अब शुरू कर दिया जाना चाहिए. चाहे घर पर हो या विदेश में रूस, यूरोप का है, चाहे वहां कुछ भी हो रहा हो. यह तथ्य कि रूसी समाज में केवल पुतिन और उनका समूह शामिल नहीं है, ना सिर्फ रूस के भविष्य के लिए बल्कि पश्चिमी देशों के लिए भी केंद्रीय महत्व रखता है.”
असंतुष्टों का कहना है कि यह विचार गलत है कि रूसी समाज पूरी तरह से शांत हो गया है. रूस के सेंट्रल टेलीविजन चैनल की ओर से आयोजित एक आधिकारिक जनमत सर्वेक्षण में, 12 फीसद रूसी लोगों ने कहा कि वे ‘विशेष सैन्य अभियान' का समर्थन नहीं करते हैं. युक्रेन पर हमले को पुतिन ने यही नाम दिया है. लुकाशेव्स्की जोर देकर कहते हैं, "14 करोड़ से ज्यादा की आबादी के साथ, हम लाखों साहसी लोगों के बारे में बात कर रहे हैं.” उनका कहना था कि उन्होंने जो पुरस्कार जीता है वह उन सभी लोगों का भी है जिन्होंने स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त करने के लिए बहुत जोखिम उठाया है.
2024 में नौवीं बार टोनहाले ड्यूसेलडोर्फ मानवाधिकार पुरस्कार दिया गया है. इससे पहले साल 2021 में यह फ्राइडेज फॉर फ्यूचर जर्मनी के जलवायु कार्यकर्ताओं को दिया गया था. उसके बाद साल 2022 में तुर्की के सांस्कृतिक प्रमोटर और मानवाधिकार कार्यकर्ता उस्मान कावला को और साल 2023 में वूमेन लाइफ फ्रीडम कलेक्टिव बर्लिन के ईरानी कार्यकर्ता सनाज अजीमीपोर को दिया गया था.