रेगिस्तान में गुलाब जैसा है कतर का म्यूजियम
अरब के रेगिस्तान में जिंदगी कैसी होती है? कतर का नेशनल म्यूजियम तकनीक की मदद से इस अहसास को सामने लाने में काफी हद तक सफल हुआ है.
मरुभूमि जैसा डिजायन
राजधानी दोहा में बनाए गए नेशनल म्यूजियम के पीछे फ्रांसीसी आर्किटेक्ट जॉं नोउवे का दिमाग है. म्यूजियम बनाने के लिए विख्यात नोउवे पेरिस और अबू धाबी में भी शानदार संग्रहालय बना चुके हैं. कतर में उन्होंने रेगिस्तान, उसके टीलों और उसकी परतों को म्यूजियम के जरिए उकेरने की कोशिश की. सऊदी अरब और ईरान के बीच बसा छोटा सा देश कतर अरब जगत की सांस्कृतिक महाशक्ति बनना चाहता है.
पुराने अमीरों की जिंदगी
नेशनल म्यूजियम का पूरा चक्कर लगाने में करीब दो घंटे लगते हैं. आखिर में मेहमान पुराने रॉयल पैलेस में पहुंचते हैं. रॉयल पैलेस के पुर्ननिर्माण में बर्लिन के एक आर्किटेक्चरल ऑफिस की मदद ली गई. पुराने दौर में रेतीलों इलाकों में पानी के पास अकसर सबसे ताकतवर या समृद्ध समुदाय ही रहा करते थे.
अल बिद से दोहा तक
कतर का इतिहास 1760 से शुरू होता है. उस वक्त अल-बिद गांव में बेडुईन कबीला रहता था. आज यही गांव दोहा जैसे महानगर में बदल चुका है. 53,000 वर्गमीटर में फैले इस म्यूजियम को उसी पुराने रॉयल पैलेस के पास बनाया गया है.
रेगिस्तान की रातें
दूर दूर तक इंसान का कोई अता पता नहीं. रात में तारों से सजे आसमान का दिलकश नजारा. रेगिस्तान की रातें कुछ ऐसी ही होती हैं.
रेगिस्तान की जलधाराएं
अरब के रेगिस्तान में कुछ ही जगहों पर बहता हुआ पानी मिलता है. इस पानी ने दुश्वार माहौल में इंसान और दूसरे जीवों को फलने फूलने का मौका दिया. पानी रेत में दबी चट्टानों के बीच खाई बनाते हुए आगे बढ़ता है. वक्त के साथ खाई भी गहरी होती जाती है. म्यूजिम में एक हॉल से दूसरे हॉल में जाते वक्त ऐसा ही प्रवाह महसूस होता है.
कतर का इतिहास
18वीं सदी के अंत तक यह कबाइली लोगों का गरीब इलाका था. खाड़ी होने की वजह से ब्रिटिश साम्राज्यवादी ताकतें भी यहां सक्रिय थी. 1939 में दोहा के पास पहली बार तेल की खोज हुई और इलाका तेजी से समृद्ध होने लगा. 1999 में पहली बार वहां चुनाव हुए. कतर के इतिहास का ब्यौरा नेशनल म्यूजियम पूरे विस्तार से देता है.