रॉकेट भेजने वाला चीन एक बढ़िया बॉल पेन न बना सका
१३ जनवरी २०१७साल भर पहले चीन के प्रधानमंत्री ली कचियांग राष्ट्रीय टेलिविजन पर आए और उनके भाषण में झल्लाहट झलक रही थी. प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका देश आज भी एक अच्छी क्वालिटी की बॉल पेन बनाने में नाकाम है. ली ने कहा कि चीन में जो बॉल पेनें बनाई जा रही हैं वे जर्मनी, स्विट्जरलैंड और जापान के पेनों के मुकाबले बहुत ही रफ हैं.
अच्छी बॉल पेन बनाना बहुत ही मुश्किल
रोजमर्रा की जिंदगी में हम भले ही बॉल पेन पर ज्यादा ध्यान ना देते हों लेकिन अच्छी पेन बनाने में हालत खस्ता हो जाती है. बॉडी और रिफिल तो कोई भी बना लेता है, लेकिन अच्छी टिप बनाना हर किसी के बस की बात नहीं. टिप के भीतर एक बहुत ही छोटी धातु की बॉल होती है.
बहुत ही उच्च क्षमता और बारीकी वाली मशीनों के जरिये अत्यंत शक्तिशाली स्टील की प्लेटों को काटा जाता है. और फिर उनसे बहुत ही छोटी बॉल्स बनाई जाती हैं. बॉल को टिप में इस ढंग से फंसाया जाता है कि वह ना तो बाहर निकले, ना ही भीतर घुसे और आसानी से घूमती भी रहे. यही बॉल हर वक्त स्याही के संपर्क में रहती है. जब बॉल पेन से लिखते हैं तो टिप के भीतर फंसी बॉल लगातार स्याही में घूमती है, लिखावट को मुमकिन बनाती है.
तो आखिर चीन अच्छी बॉल पेन बनाने के मामले में कहां फंस रहा है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो स्टील में. चीन के पास अच्छी क्वालिटी का स्टील ही नहीं है, इसी वजह से वह अच्छी टिप नहीं बना पा रहा है. चीन के 3,000 से ज्यादा पेन निर्माता विदेशों से स्टील आयात करते हैं. स्टील आयात पर पेन उद्योग 1.73 करोड़ डॉलर खर्च करता है.
लेकिन चीन के सरकारी अखबार पीपुल्स डेली का दावा है कि अब अच्छी पेन बनाने की गुत्थी सुलझा ली गई है. सरकारी ताइयुआन आयरन एंड स्टील कंपनी ने पांच साल की रिसर्च के बाद इस समस्या का हल खोजने का दावा किया है. अखबार के मुताबिक नए स्टील से बनी 2.3 मिलीमीटर बॉलप्वाइंट पेन तैयार की जा रही है. लैब टेस्ट पूरे होने के बाद इन्हें बाजार में लाया जाएगा. चीन को उम्मीद है कि दो साल के भीतर वह विदेशों से बॉल पेन खरीदना पूरी तरह बंद कर देगा.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली उथल पुथल की मार झेल चुका चीन अब अपने घरेलू बाजार को मजबूत करना चाहता है. सरकार ने 'मेड इन चाइना 2025' प्रोग्राम लॉन्च किया है. इसके तहत कम मूल्य वाले प्रोडक्ट जैसे बॉल पेन आदि भी देश में ही बनाए जाएंगे.
हाई टेक इंजीनियरिंग में पीछे
हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर जॉर्ज हुआंग कहते हैं, "ऐतिहासिक तौर पर भी, चीन कभी बहुत ही अच्छे ढंग से बारीक इंजीनियरिंग करने के लायक नहीं रहा, बॉलप्वाइंट पेन इसी का एक उदाहरण है. इसके पार्ट्स बहुत ही छोटे और बेहद बारीकी वाले होते हैं और इस चुनौती को सुलझाना आसान नहीं."
चीन रक्षा और अंतरिक्ष अभियानों में भारी निवेश करता आया है. यह देश दुनिया भर के लिए स्मार्टफोन्स और कंप्यूटर तो बनाता है लेकिन उनमें लगने वाली उच्च क्षमता वाली चिप अब भी जापान और ताइवान से आती है. प्रोफेसर जॉर्ज मैंडेरिन भाषा के शब्द "फुजाओ" का हवाला भी देते हैं. फुजाओ का अर्थ है, न तो 100 फीसदी सॉलिड, न ही विश्वसनीय. वह कहते हैं, "यहां की संस्कृति जापानियों और जर्मनों से अलग है." जर्मनी और जापान इंजीनियरिंग के मामले में सबसे चोटी के देश माने जाते हैं.
(पेटेंट मांगने वाले चोटी के देश)