'लीबिया से ऊपजा मानवीय आपातकाल'
२८ फ़रवरी २०११संयुक्त राष्ट्र की विस्थापन मामलों की संस्था, UNHRC का कहना है कि लीबिया से अब तक 1,00,000 प्रवासी कामगार पलायन कर चुके हैं. इनमें से ज्यातर मिस्र और ट्यूनीशिया की तरफ भागे हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक लीबिया-ट्यूनीशिया सीमा पर हजारों लोग फंसे हुए हैं. ट्यूनीशिया के कस्टम अधिकारी उन्हें पहले से ही अशांत अपने देश में आने से रोक रहे हैं. ट्यूनीशिया और मिस्र के बाद ही लीबिया में भी क्रांति शुरू हुई है.
UNHRC के कमिश्नर एटोनियो गुटेरेस ने कहा, ''हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तुरंत और उदारतापूर्वक आगे आने का आग्रह करते हैं. मानवीय आपतकाल की स्थिति में इन सरकारों की मदद की जानी चाहिए.'' रविवार देर रात लीबिया में पुर्तगाल और माल्टा के राजदूत भी किसी तरह त्रिपोली से बाहर निकले. दोनों अधिकारी दो फेरियों में 300 लोगों के बीच माल्टा पहुंचे.
''गद्दाफी के जाने का वक्त आ गया है.''
माल्टा के प्रधानमंत्री लारेंस गोंजी ने शरणार्थियों को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि अब तक 8,000 लोग विस्थापित होकर लीबिया पहुंच गए हैं. उन्हें आशंका है कि ज्यादा शरणार्थियों के आने से माल्टा के हालात गड़बड़ाने लगेंगे. गोंजी ने कहा, ''इसमें संख्या में भारी इजाफा हो सकता है. हम अब तक लीबिया से 89 देशों के 8,000 लोगों को ला चुके हैं.'' माल्टा की शरण लेने वालों में चीन, पाकिस्तान, फिलीपींस, थाइलैंड, बांग्लादेश और विएतनाम के लोग भी शामिल हैं.
वहीं दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगातार 42 साल से लीबिया पर राज कर रहे तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी पर दबाव बढ़ाता जा रहा है. अमेरिका के बाद कनाडा ने भी गद्दाफी और उनके करीबियों की संपत्ति फ्रीज करने के आदेश दिए हैं. ऑस्ट्रेलिया भी गद्दाफी एंड कंपनी से जुड़ी संपत्ति की जांच शुरू कर चुका है.
अमेरिका के बाद ब्रिटेन ने भी गद्दाफी से सत्ता छोड़ने को कह दिया है. रविवार को ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा, ''गद्दाफी के जाने का वक्त आ गया है. लीबिया के भविष्य में अब उनके लिए कोई जगह नहीं बची है.'' अफ्रीकी देश लीबिया में फरवरी के मध्य से ही सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं. देश के पश्चिमी इलाकों को प्रदर्शनकारी अपने नियंत्रण में ले चुके हैं. पूर्वी इलाकों में सेना गद्दाफी के आदेश पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बंदूक का इस्तेमाल कर रही है. रिपोर्टों के मुताबिक अब तक 1,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: ईशा भाटिया