वायरस के नए संस्करण को हम कितना जानते हैं?
३१ दिसम्बर २०२०वैज्ञानिक नए वायरस को लेकर चिंता जरूर दिखा रहे हैं और उसका अध्ययन कर रहे हैं लेकिन फिलहाल उन्होंने खतरे की घंटी नहीं बजाई है. अब तक इस वायरस पर जो जानकारी है उससे कुछ सवालों के हल जरूर मिले हैं.
कोरोना वायरस का नया संस्करण कहां से आया?
चीन में करीब एक साल पहले जब कोरोना वायरस का पता चला, उसके बाद से ही इसके नए संस्करण सामने आते रहे हैं. वायरस आमतौर पर म्यूटेट करते हैं या फिर छोटे मोटे बदलावों के साथ विकसित होते हैं. इसकी वजह ये है कि वो आबादी के बीच से गुजरते और प्रजनन करते हैं. ज्यादातर बदलाव मामूली होते हैं. ब्रिटेन के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के वैज्ञानिक डॉ फिलीप लैंडरीगन कहते हैं, "जेनेटिक अल्फाबेट में यह एक या दो अक्षरों का बदलाव होता है जिससे बीमारी पैदा करने की क्षमता पर ज्यादा असर नहीं पड़ता."
ज्यादा चिंता की बात तब होगी, जब वायरस अपनी सतह पर मौजूद प्रोटीनों को बदल कर म्यूटेट करेगा जिससे यह दवाओं से और प्रतिरक्षा तंत्र से खुद को बचा सके. अगर यह पिछले संस्करण की तुलना में खुद को बहुत ज्यादा बदल दे, तब भी मुश्किल हो सकती है.
कोई एक संस्करण अपना प्रभुत्व कैसे बना लेता है?
यह तब हो सकता है जब कोई संस्करण पकड़ बना कर एक ही इलाके में फैलना शुरू कर देता है. "सुपर स्प्रेडर" जैसी घटनाएं इस संस्करण को स्थापित होने में मदद करती हैं. यह तब भी हो सकता है जब म्यूटेशन किसी नए संस्करण को फायदा पहुंचाए, मसलन इसे दूसरे वायरसों की तुलना में ज्यादा फैलने में मदद करे.
वैज्ञानिक अब भी इस बात की पुष्टि करने में लगे हैं कि क्या इंग्लैंड में सामने आया वायरस ज्यादा आसानी से फैल रहा है, हालांकि उन्हें इसके कुछ सबूत मिले हैं. लैंडरीगन बताते हैं कि नया संस्करण, "दूसरे संस्करणों को पीछे छोड़ रहा है, तेजी से फैल रहा है और ज्यादा लोगों को संक्रमित कर रहा है, इसलिए वह रेस में जीत रहा है."
ब्रिटिश संस्करण का सितंबर में पता चला था. डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों का कहना है कि एक नया संस्करण दक्षिण अफ्रीका में भी सामने आया है.
ब्रिटिश संस्करण से किस बात की चिंता है?
इसमें दर्जनों म्यूटेशन हैं. म्यूटेशन का मतलब है जीन की संरचना में बदलाव. कम से कम आठ म्यूटेश तो स्पाइक प्रोटीन में ही हैं जिनका इस्तेमाल वायरस कोशिकाओं से जुड़ने और उन्हें संक्रमित करने में करता है. वैक्सीन और एंटीबॉडी दवाएं इन्हीं स्पाइक को निशाना बनाती है.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वायरस एक्सपर्ट डॉ रवि गुप्ता का कहना है कि मॉडलों का अध्ययन करने से पता चला है कि यह इंग्लैंड में अब तक सबसे आम रहे वायरस की तुलना में दो गुना ज्यादा संक्रामक हो सकता है. उन्होंने और कुछ दूसरे रिसर्चरों ने अपनी रिपोर्ट उस वेबसाइट पर डाली है जहां आमतौर पर वैज्ञानिक ऐसी बातें तुरंत साझा करते हैं. हालांकि इन रिपोर्टों की ना तो समीक्षा हुई है ना ही इन्हें किसी जर्नल ने छापा है.
क्या यह लोगों को ज्यादा बीमार कर रहा है या मौत के करीब पहुंचा रहा है?
लैंडरीगन का कहना है, "इन दोनों में से किसी बात की सच्चाई का कोई संकेत नहीं मिला है लेकिन निश्चित रूप से इन दोनों मुद्दों पर हमें लगातार ध्यान देना होगा." ज्यादा लोगों के नए वायरस से संक्रमित होने के बाद जल्दी ही इस बात का पता चल जाएगा कि क्या वायरस का नया संस्करण लोगों को ज्यादा बीमार कर रहा है. डब्ल्यूएचओ का भी कहना है कि अब तक जो जानकारी मिली है, उससे यही कहा जा सकता है कि बीमारी के प्रकार और उसकी गंभीरता में कोई बदलाव नहीं है.
इलाज के लिहाज से म्यूटेशन का क्या मतलब है?
इंग्लैंड में कुछ मामलों के दौरान यह चिंता पैदा हुई कि नए उभर रहे कुछ वायरस कुछ दवाओं की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं, खासतौर से उन दवाओं की जो कोशिका को संक्रमित करने से वायरसों को रोकने के लिए एंटीबॉडीज मुहैया कराते हैं. एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया पर रिसर्च अभी चल रही है. हालांकि दवा बनाने वाली कंपनी एली लिली का कहना है कि उसकी लैब में हुए टेस्ट बता रहे हैं कि दवाएं पूरी तरह कारगर हैं.
वैक्सीन का क्या होगा?
वैज्ञानिकों का मानना है कि मौजूदा वैक्सीन नए संस्करणों के खिलाफ भी असरदार होगी हालांकि वो इसकी पुष्टि पर अभी काम कर रहे हैं. बुधवार को ब्रिटिश अधिकारियों ने दोहराया कि ऐसे कोई आंकड़े नहीं हैं जो मौजूदा वैक्सीन का प्रभाव नए वायरस पर नहीं पड़ने की बात कहते हों.
वास्तव में वैक्सीन इम्यून सिस्टम को एंटीबॉडीज बनाने के लिए प्रेरित करने के अलावा इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया को व्यापक बनाते हैं. कई वैज्ञानिकों का कहना है कि वैक्सीन नए वायरस पर भी कारगर होंगे.
जोखिम घटाने के लिए मैं क्या कर सकता हूं?
सार्वजनिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ कहते हैं कि सुरक्षा सलाहों को मानिए, मास्क पहनिए, थोड़ी थोड़ी देर पर हाथ धोइए, सामाजिक दूरी का पालन करिए और भीड़भाड़ वाली जगहों से बचिए.
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि आखिरी बात यही है कि हमें वायरस के फैलाव को दबाना होगा. जितना ज्यादा ये फैलेंगे, इनमें उतना ज्यादा म्यूटेशन होगा.
एनआर/एके(एपी)
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