विकासशील देशों में विनाश लाता एसबेस्टस
२२ जुलाई २०१०खोजी पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने इस मामले की महीनों तक जांच की है, जिसके बाद चौंकाने वाले परिणाम आए हैं. एसबेस्टस उद्योग दुनिया भर में अपने बुरे नतीजे को जानता है, फिर भी अपने कारोबार को आगे बढ़ाना चाहता है. एसबेस्टस पर 52 देशों में पाबंदी है.
पिछले साल पूरे विश्व में 20 लाख मीट्रिक टन एसबेस्टस निकाला गया और इसकी आधे से ज्यादा सप्लाई भारत और मेक्सिको जैसे विकासशील देशों में हुई. रिपोर्ट में कहा गया है कि सस्ता होने की वजह से इन देशों में घर बनाने के लिए एसबेस्टस की खूब मांग है. इन देशों में एसबेस्टस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल छत और पानी की पाइप बनाने में होता है.
बड़े पैमाने पर इसके इस्तेमाल की एक बड़ी वजह यह भी है कि यह फाइबर सीमेंट, स्टील वाली कंक्रीट पाइप और अल्युमिनियम की टाइलों से सस्ता है. भारत में 2008 में 3,50,000 मीट्रिक टन एसबेस्टस का इस्तेमाल हुआ, जो 2004 के मुकाबले 83 फीसदी ज्यादा है. चीन के बाद भारत एसबेस्टस का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है.
इस जांच में लगे पत्रकार मुरली कृष्णन डॉयचे वेले से भी जुड़े हैं. उनका कहना है, “सबसे बुरा पक्ष यह है कि लोग जानते हैं कि यह खतरनाक है. फिर भी वे इसका इस्तेमाल करते हैं.” वर्ल्ड बैंक ने पिछले साल कहा कि लोगों को एसबेस्टस की जगह इसके विकल्पों का इस्तेमाल करना चाहिए.
लेकिन एसबेस्टस का कारोबार जारी रहा और इसे दुनिया भर में हुए प्रचार का फायदा भी पहुंचा. व्हाइट एसबेस्टस और क्रीसोलाइट, एसबेस्टस के दो सबसे आम प्रकार हैं. अंतरराष्ट्रीय पत्रकार समूह के डेविड कैपलन का कहना है, “हमने मॉन्ट्रियल, मेक्सिको सिटी, नई दिल्ली और दूसरे शहरों के संस्थानों में देखा है कि लोग व्हाइट एसबेस्टस और क्रीसोलाइट के उपयोग को रोकने की कोशिश कर रहे हैं.”
कनाडा में एसबेस्टस की सबसे ज्यादा खानें हैं लेकिन वह अपनी सीमाओं के अंदर एसबेस्टस का न के बराबर इस्तेमाल करता है. 1960 के दशक में उसने दुनिया भर में एसबेस्टस के लिए मुहिम चलाई लेकिन बाद में जब कैंसर की वजहों में एसबेस्टस का नाम आने लगा तो वहां उसकी खानें बंद भी की गईं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर काबू नहीं पाया गया तो अगले दशक तक एसबेस्टस की वजह से महामारी भी फैल सकती है. कपलन का कहना है कि भारत और चीन में सबसे ज्यादा एसबेस्टस इस्तेमाल हो रहा है और इन्हीं देशों पर इसका सबसे बुरा असर भी पड़ेगा. रिसर्चरों का कहना है कि 2020 तक विकासशील देशों में एसबेस्टस की वजह से होने वाले कैंसर में 10 लाख लोगों की जान जा सकती है.
रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल
संपादनः ए कुमार