1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

अखाड़ा बन गए हैं नामचीन विश्वविद्यालय

समीरात्मज मिश्र
२८ सितम्बर २०१८

देश भर में किसी ना किसी मुद्दे पर विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन चल रहे हैं. जेएनयू हो या बीएचयू, सब जगह पढ़ाई पर इसका बुरा असर पड़ रहा है.

https://p.dw.com/p/35ceW
Indien Banaras Hindu University, Proteste
तस्वीर: DW/S. Mishra

वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में मामूली विवाद को लेकर छात्रों में झड़प हुई जो कुछ ही देर में हिंसा, आगजनी, तोड़-फोड़ और फिर धरना प्रदर्शन में तब्दील हो गई. विश्वविद्यालय को 28 सितंबर तक के लिए बंद कर दिया गया लेकिन छात्र अभी भी आंदोलित हैं.

इलाहाबाद में बड़ी संख्या में छात्र करीब दो हफ्ते से विश्वविद्यालय परिसर में जगह-जगह कुलपति के खिलाफ लगातार नारेबाजी, प्रदर्शन और उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. वाइस चांसलर प्रोफेसर रतनलाल हांगलू के खिलाफ इससे पहले भी कई बार विरोध प्रदर्शन हुए हैं लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है.

इससे पहले दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में चुनावी सरगर्मियां और उनसे उपजे विवाद चर्चा का विषय रहे. उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भी अकसर पठन-पाठन के लिए कम, विवादों के लिए ज्यादा जाना जाता है.

Indien Banaras Hindu University, Proteste
तस्वीर: DW/S. Mishra

यह तो बात है उत्तर भारत के कुछ नामचीन विश्वविद्यालयों की, जबकि हालात ये हैं कि ज्यादातर विश्वविद्यालयों में स्थितियां ऐसी ही हैं या फिर इससे भी बदतर. रायपुर स्थित विधि विश्वविद्यालय में लगभग सभी छात्र पिछले कई दिनों से विश्वविद्यालय के कुलपति के इस्तीफे की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं.

विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के खिलाफ छात्रों में आक्रोश बढ़ता दिख रहा है. ऐसा नहीं है कि यह स्थिति पहले कभी नहीं थी लेकिन जिन वजहों से संस्था के इन शीर्ष अधिकारियों पर उंगलियां उठ रही हैं, वे जरूर हैरान करने वाली हैं.

इलाहाबाद में वीसी प्रोफेसर रतनलाल हांगलू की एक महिला के साथ कथित तौर पर कुछ आपत्तिजनक बातचीत वायरल होने और फिर इन खबरों के मीडिया में आने के बाद छात्र सड़कों पर उतर आए हैं.

वायरल हुए ऑडियो टेप में कुलपति एक महिला के साथ अपने अंतरंग रिश्तों की बात तो कर ही रहे हैं, महिला को अपने पद का लाभ पहुंचाने का भरोसा भी दे रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन इन सभी बातचीत को फर्जी बता रहा है लेकिन अब तक खुद कुलपति ने न तो इस बारे में अपनी कोई सफाई दी है और न ही किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई की है.

Indien Banaras Hindu University, Proteste
तस्वीर: DW/S. Mishra

हां, विश्वविद्यालय प्रशासन ने जरूर उस छात्र के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज कराई है जिसने इस पूरे मामले को सबसे पहले सार्वजनिक किया था. ऑडियो टेप्स के सार्वजनिक होने के बाद से ही छात्रों का आक्रोश सड़कों पर दिखने लगा और देखते-देखते सभी छात्र संगठनों से जुड़े लोगों ने वीसी हांगलू के खिलाफ एक साथ मोर्चा खोल दिया.

विश्वविद्यालय प्रशासन शुरुआत में तो इसे वीसी के खिलाफ साज़िश बताता रहा था लेकिन मामला गंभीर होने के बाद कार्यवाहक कुलपति ने रिटायर्ड जज अरुण टंडन की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित कर दी.

छात्र न सिर्फ इस कमेटी की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं, बल्कि कमेटी की वैधानिकता को भी संदेह की नजर से देख रहे हैं. विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह कहती हैं, "जिस विश्वविद्यालय में कुलपति ही नैतिक आचरण को लेकर संदेह के घेरे में हो, वहां लड़कियां खुद को कैसे सुरक्षित महसूस करेंगी? कुलपति इससे पहले भी जहां थे वहां भी इनके खिलाफ ऐसी शिकायतें थीं लेकिन कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई."

वहीं विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी चितरंजन कुमार ने मीडिया में जारी बयान में कहा है कि कुलपति खुद इस प्रकरण से आहत हैं और उन्होंने कहा है कि जब तक जांच कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक वो कैंपस में नहीं आएंगे.

दूसरी ओर, बीएचयू एक बार फिर विवादों और हिंसक गतिविधियों के चलते सुर्खियों में है. ठीक एक साल पहले छात्राओं के साथ कथित छेड़खानी को लेकर हफ्तों आंदोलन, प्रदर्शन और टकराव का गवाह रहा परिसर फिर अशांत हो गया है.

बीएचयू स्थित सरसुंदरलाल अस्पताल में किसी मरीज की एक बेड की मांग से डॉक्टरों के साथ शुरू हुआ विवाद मार-पीट, हिंसा, तोड़-फोड़, आगजनी और फिर धरना प्रदर्शन में तब्दील हो गया. विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों से पांच हॉस्टल खाली करा लिए और छात्र चीफ प्रॉक्टर रोयाना सिंह के इस्तीफे की मांग को लेकर धरने पर बैठे हुए हैं. विश्वविद्यालय में पढ़ाई-लिखाई का काम फिलहाल बंद कर दिया गया है. सोमवार से उम्मीद है कि शायद पढ़ाई शुरू हो जाए.

किसी मरीज के साथ बीएचयू परिसर स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल में आए उनके परिजनों ने जूनियर डॉक्टरों के साथ कथित तौर पर मारपीट की. यही नहीं, मेडिकल छात्रों के साथ बाहर से आए कुछ लोगों ने धन्वंतरि छात्रावास में घुसकर मारपीट की. इस घटना के बाद रेजीडेंट डॉक्टरों ने परिसर में तोड़फोड़ और अगजनी की. पूरा परिसर फिलहाल एक छावनी में तब्दील हो चुका है, बड़ी संख्या में पुलिस और पीएसी के जवान तैनात हैं.

मेडिकल छात्रों का आरोप है कि विश्वविद्यालय के भीतर भी उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिली है और लोग आए दिन उनके साथ मारपीट करते हैं, दूसरी ओर छात्रों पर ही प्रशासन कार्रवाई भी कर रहा है. विश्वविद्यालय के एक मेडिकल छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस बात की शिकायत अकसर की जाती है लेकिन आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

इससे पहले दिल्ली स्थित जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय और जयपुर स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय में भी छात्र संघ चुनाव को लेकर काफी विवाद हुआ, विवाद के चलते हिंसा भी हुई. वहीं गोरखपुर विश्वविद्यालय में पिछले दिनों एक दलित शोध छात्र ने इसलिए आत्महत्या की कोशिश की क्योंकि उसके विभागाध्यक्ष और गाइड कथित तौर पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करके उसे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करते थे.

जानकारों का कहना है कि विश्वविद्यालयों में बढ़ रही इस अराजकता और अनुशासनहीनता के लिए सिर्फ छात्र या अध्यापक या फिर कुछेक लोग ही नहीं, बल्कि पूरा तंत्र दोषी है. वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर गिरीश्वर मिश्र कहते हैं कि सरकार के एजेंडे में शिक्षा और विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता प्रमुख होनी चाहिए, लेकिन ऐसा दिखता नहीं है.

वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्राध्यापक नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि जब तक विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप, दिलचस्पी और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहेगा, उनके कार्यों में ईमानदारी की कल्पना करना बेमानी होगा.

इनके मुताबिक, "विश्वविद्यालों में कुलपतियों की नियुक्ति पूरी तरह से राजनीतिक होने लगी है. ऐसे में कुलपति राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति में लगे रहते हैं, तो दूसरी ओर छात्रों की समस्याओं की अनदेखी करते हैं. ऐसे में छात्रों में आक्रोश होना स्वाभाविक है. अलग-अलग संगठनों के छात्र जब एक साथ कुलपति का विरोध कर रहे हों, तो इससे ये तो साफ है कि कहीं न कहीं कुलपति में कमी जरूर है.”

हालांकि कुछ लोग विश्वविद्यालों में छात्र राजनीति और छात्र संघ होने को भी इस तरह के विवादों से जोड़ते हैं लेकिन छात्र संघों के इतिहास और छात्र हित में उनकी अनिवार्यता को इंगित करते हुए ऐसे तर्कों का खंडन करने वालों की भी कमी नहीं है.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें