श्रीलंका में लोगों के भूखे मरने की नौबत
२० मई २०२२पिछले साल अप्रैल में श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने सारे रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगा दिया था. जल्दबाजी में और सख्ती से लागू किये गये इस फैसले का नतीजा यह हुआ कि देश फसलों की पैदावार अचानक और भारी मात्रा में घट गई. बाद में सरकार ने प्रतिबंध तो हटा लिया, लेकिन उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में आयात नहीं हो सका.
प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने गुरुवार को ट्विटर पर जारी संदेश में कहा, "भले ही इस याला (मई-अगस्त) मौसम के लिए उर्वरक हासिल करने का समय नहीं है, लेकिन माहा (सितंबर-मार्च) के मौसम में पर्याप्त भंडार सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं. मैं बहुत गंभीरता के साथ सबसे आग्रह करता हूं कि वे हालात को स्वीकार करें."
भोजन, ईंधन और दवा की कमी
श्रीलंका में विदेशी मुद्रा, ईंधन और दवाओं की इस समय भारी कमी है. साथ ही, आर्थिक गतिविधियां घुटनों के बल रेंग रही हैं. राजधानी कोलंबो में फल बेचने वाली 60 साल की एपीडी सुमनावती ने कहा, "जिंदगी कितनी मुश्किल है, इस पर बात करने का कोई मतलब नहीं है. मैं नहीं बता सकती कि अगले दो महीने में यहां क्या होगा. हालात इसी तरह बिगड़ते रहे, तो शायद हम यहां होंगे ही नहीं."
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पास ही रसोई गैस का सिलिंडर लेने के लिए एक दुकान के बाहर लंबी कतार है. कीमतें बहुत बढ़ गई हैं और इसके बावजूद सामान नहीं मिल रहा है. पार्ट-टाइम ड्राइव मोहम्मद शाजली 3 दिन से रोज यहां कतार में खड़े होकर सिलिंडर लेने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "केवल 300 सिलिंडर आये हैं, जबकि यहां करीब 500 लोग हैं." शाजली के घर में पांच सदस्य हैं, जिनका खाना बनाने के लिए गैस चाहिए. शाजली ने कहा, "बिना गैस, बिना किरासन तेल के हम कुछ नहीं कर सकते. आखिरी विकल्प क्या है? बिना खाने के तो हम मर जायेंगे. सौ फीसदी यही होने वाला है."
सरकार ने शुक्रवार को स्कूल और दफ्तर बंद करने का फैसला किया, ताकि पेट्रोलियम की बढ़ती किल्लत का सामना किया जा सके. इस बीच अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने 5.3 करोड़ डॉलर की रकम का प्रबंध किया है, जो तेल कंपनियों को भेजा गया है और इस हफ्ते तक तेल की खेप कोलंबो पोर्ट तक पहुंच जायेगी. पेट्रोल पंपों तक यह तेल सप्ताहांत तक पहुंचने के आसार हैं.
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महंगाई बेलगाम
श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के गवर्नर ने गुरुवार को बताया कि वर्ल्ड बैंक से कर्ज के जरिए विदेशी मुद्रा हासिल हुई है, जिससे ईंधन और कुकिंग गैस के लिए पैसा भेजा गया है, लेकिन सप्लाई अभी तक नहीं आई है. गवर्नर ने इसके साथ ही बताया कि अगले कुछ महीनों में महंगाई 40 फीसदी तक पहुंचने की आशंका है. बैंक और सरकार मांग बढ़ने के कारण बढ़ी महंगाई को नियंत्रित करने की कोशिश में हैं, लेकिन दूसरी तरफ आपूर्ति घटने से दबाव बहुत ज्यादा है. अप्रैल में खाने-पीने की चीजों की कीमतों की महंगाई 29.8 फीसदी तक चली गई थी, जो सालाना स्तर पर करीब 46.6 फीसदी होती है.
सरकार के खिलाफ लोगों में भारी गुस्सा है. गुरुवार को कोलंबो में प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों छात्रों को पीछे धकेलने के लिए पुलिस ने आंसूगैस के गोले और वाटर कैनन का प्रयोग किया. प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को हटाने की मांग कर रहे थे.
श्रीलंका का आर्थिक संकट कोविड-19 की महामारी के कारण पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था पर पड़ी मार, तेल की बढ़ती कीमत और लोकलुभावन कदमों के तहत टैक्स में की गई कटौती की वजह से पैदा हुआ है. इसके अलावा घरेलू तेल की कीमतों में सब्सिडी और रासायनिक खाद के आयात पर प्रतिबंधों ने भी संकट बढ़ाया है.
संकट संभालने में नाकाम रहने और भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पिछले सप्ताह इस्तीफादे दिया. इसके बाद राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे ने महिंदा की जगह रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया. महिंदा राजपक्षे और गोटाभाया राजपक्षे भाई हैं.
शुक्रवार को देश की कैबिनेट में 9 और मंत्रियों को शामिल किया गया है. देश को संकट से उबारने के लिए सर्वदलीय सरकार बनाई गई है. नये मंत्रियों में स्वास्थ्य, शिक्षा और न्याय और कुछ अन्य विभागों के मंत्री शामिल हैं, लेकिन अभी इसमें वित्त मंत्री का नाम सामने नहीं आया है. हालांकि, प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि अगले हफ्ते तक वित्त मंत्री का नाम भी घोषित कर दिया जायेगा. प्रमुख विपक्षी दल एसजेपी के दो सदस्य अपनी पार्टी से नाता तोड़कर इसमें शामिल हुए हैं. इसके अलावा श्रीलंका फ्रीडम पार्टी को भी एक मंत्रिपद मिला है. पार्टी ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का समर्थन करने की बात कही है.
अंतरराष्ट्रीय मदद
सात औद्योगिक देशों के संगठन जी7 ने श्रीलंका को कर्ज से राहत दिलाने की कोशिशों का समर्थन किया है. जी7 के वित्तीय प्रमुख ने गुरुवार को जर्मनी में बैठक के बाद इस बारे में जानकारी दी. श्रीलंका ने पहली बार सरकारी कर्ज में डिफॉल्ट किया है. श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के प्रमुख पी नंदालाल वीरासिंघन ने बताया कि कर्ज की संरचना बदलने की योजना लगभग तैयार है. जल्द ही इसे कैबिनेट को भेजा जायेगा.
वीरासिंघे का कहना है, "हमारी स्थिति बिल्कुल साफ है. जब तक कर्ज की संरचना नहीं बदलती, हम इसे चुका नहीं पायेंगे." कम से कम 51 अरब अमेरिकी डॉलर के कर्ज की संरचना को बदलने की जरूरत है, जिसके बाद ही श्रीलंका इनके भुगतान की व्यवस्था कर सकेगा.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक प्रवक्ता का कहना है कि श्रीलंका की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है और देश के लिए कर्ज की एक व्यवस्था पर तकनीकी बातचीत जल्दी ही पूरी कर ली जायेगी.
एनआर/वीएस(एएफपी)