संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलीस्तीनी सदस्यता
२१ सितम्बर २०११न्यूयॉर्क में भारी सुरक्षा के बीच हो रही महासभा में 120 देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राजा भाग ले रहे हैं. भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्वयं करेंगे. जबकि जर्मनी की ओर से विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले न्यूयॉर्क पहुंचे हैं. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने कहा है कि इस साल की महासभा 'असामान्य उथल पुथल और भारी चिंताओं' के बीच हो रही है. सोमालिया में सूखा, मध्यपूर्व में तनाव और वैश्विक आर्थिक संकट ने चिता का माहौल बना रखा है.
महसभा संयुक्त राष्ट्र की पांच मुख्य संस्थाओं में शामिल है और अकेली संस्था है जिसमें सभी सदस्य देशों का बराबरी का प्रतिनिधित्व है. वह बजट की निगरानी करता है, सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन करता है महासभा प्रस्तावों के रूप में सुझाव देता है. बजट के अलावा महासभा का कोई प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं है.
फलीस्तीन की सदस्यता
महासभा की मंत्रिस्तरीय बैठक में फलीस्तीनी सदस्यता का बोलबाला होने की संभावना है. हालांकि इस्राएल के निकट सहयोगी अमेरिका ने सदस्यता के आवेदन पर सुरक्षा परिषद में वीटो लगाने की धमकी दी है, फलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने बान की मून के साथ भेंट में साफ कर दिया है कि वे शुक्रवार को सदस्यता का आवेदन देंगे. फलीस्तीन इस तरह इस्राएल के समर्थन के बिना भी देश बनने की अपने लक्ष्य को पूरा करना चाहता है.
सुरक्षा परिषद द्वारा इंकार किए जाने की स्थिति में वह महासभा में "गैर सदस्य पर्यवेक्षक" के बदले वैटिकन की तरह "गैर सदस्य राष्ट्र" वाले दर्जे का आवेदन कर सकता है, जिसके लिए उसे सिर्फ सामान्य बहुमत की जरूरत होगी. संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीनी पर्यवेक्षक रियाद मंसूर का कहना है कि विश्व संस्था के 193 सदस्यों में से 120 फलीस्तीन को पहले ही 1967 की सीमाओं में राष्ट्र का दर्जा दे चुके हैं. इस्राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने अब्बास के साथ भेंट की इच्छा जताई है और उम्मीद है कि दोनों नेता महासभा के हाशिए पर मिल सकते हैं.
पहली महिला वक्ता
महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी, ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून और अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई भी होंगे. पिछले अक्टूबर में निर्वाचित ब्राजील की नई राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ पहली बार महासभा में भाग लेंगी. महासचिव बान की मून ने कहा है कि बुधवार को जब महासभा में बहस शुरू होगी तो वे संयुक्त राष्ट्र के 66 वर्ष के इतिहास में बहस का उद्घाटन करने वाली पहली महिला वक्ता होंगी.
गीडो वेस्टरवेले लीबिया और अफगानिस्तान से संबंधित वार्ताओं में अहम भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन महासभा को अगले सोमवार को संबोधित करेंगे. महासभा में एक सख्त प्रोटोकॉल के तहत भाषण का समय दिया जाता है. सबसे पहले बोलने का हक राज्याध्यक्षों और सरकार प्रमुखों का होता है, उसके बाद उप सरकार प्रमुखों का. फिर विदेश मंत्रियों और राजदूतों का नंबर आता है. वेस्टरवेले अब उप चांसलर नहीं हैं, इसलिए उन्हें देर से बोलने का मौका मिल रहा है. भारत और जर्मनी दोनों ही सुरक्षा परिषद के सदस्य हैं.
भारत की प्राथमिकताएं
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह महासभा में भाग लेने के लिए आज रवाना हो रहे हैं. उनके साथ विदेश मंत्री एसएम कृष्णा, सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन और विदेश सचिव रंजन मथाई भी हैं. मनमोहन सिंह महासभा में अपने भाषण में सुरक्षा परिषद में सुधार और भारत की सदस्यता का मुद्दा उठाएंगे. मथाई ने कहा है कि भारत की प्राथमिकताओं में सुरक्षा परिषद के सुधारों के प्रयास को जारी रखना होगा. "हम महसूस करते हैं कि जबतक सुरक्षा परिषद का व्यापक सुधार नहीं होता, संयुक्त राष्ट्र सुधारों की प्रक्रिया अधूरी रहेगी." इस सिलसिले में सदस्य के अन्य दावेदारों जी-4 के दूसरे देशों ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ सहयोग बढ़ाने की योजना है.
इसके अलावा भारत आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने और साझा कार्रवाई की जरूरत पर जोर देगा. वह व्यापक अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद संधि सीसीआईटी को जल्दी पास किए जाने की भी वकालत करेगा. यह आतंकवाद के खिलाफ एक वैश्विक मानकीय ढांचा देने वाला साबित होगा. इसके अलावा भारत संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कदमों के समर्थन के अलावा परमाणु सुरक्षा के मुद्दा पर सक्रिय भागीदारी करेगा.
अहम मुद्दे
महासभा के हाशिए पर गंभीर बीमारियों पर नियंत्रण के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक हो रही है. पहली बार कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग और फेफड़े की बीमारियों पर इतनी उच्चस्तरीय बैठक का आयोजन हुआ है. साथ ही दुनिया भर में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने पर भी उच्च स्तरीय चर्चा हुई. भारत में संसद और विधान सभाओं में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने के प्रस्ताव पर राजनीतिक दलों के विरोध के कारण कोई फैसला नहीं हो पा रहा है.
अन्य उच्च स्तरीय आयोजनों में 2001 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन में हुए नस्लवाद सम्मेलन की दसवीं वर्षगांठ का आयोजन शामिल होगा. यह सम्मेलन शुरुआती दस्तावेज में जियनवाद को नस्लवाद के बराबर ठहराने और इस्राएल विरोधी बहस के कारण खासा चर्चित रहा. जातिवाद को नस्लवाद की सूची में शामिल कराए जाने के प्रयासों के कारण यह सम्मेलन भारत में विवादों के घेरे में था. सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जूमा भाग लेंगे लेकिन अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इस्राएल और कम से छह यूरोपीय देश इसका बहिष्कार कर रहे हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ओ सिंह