सत्तर करोड़ लोगों के पास नहीं है साफ पानी
१२ मार्च २०१२हर तीन साल पर आयोजित होने वाला विश्व जल मंच पानी की कमी की समस्या के साथ ही उन अवसरों की भी चर्चा करेगा जिससे कि इस 'नीले सोने' से पैसा कमाने का रास्ता निकाला जा सकता है. 140 देशों के 20 हजार प्रतिभागी छह दिन चक चलने वाले इस चर्चा में शामिल होंगे जिसमें कई देशों के पर्यावरण और जल मंत्री भी शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के जल सलाहकार गेरार्ड पायेन का कहना है कि मारसेई इस दिशा में बड़ी प्रगति के दरवाजे खोल सकता है. पायेन ने कहा, "जब सरकारें फोरम में किसी मसले पर रजामंद हो जाएंगी तो उन्हें इसे अमल में लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र से बात करनी होगी और रियो में इसी साल जून में होने वाला सम्मेलन इसके लिए बड़ा मौका साबित हो सकता है."
साफ पानी का अभाव
फिलहाल दुनिया के ढाई अरब लोगों को बेहतर सैनिटेशन की जरूरत है जबकि हर 10 में से एक शख्स अभी भी साफ और जरूरी पोषक तत्वों से लैस पानी से दूर है. संयुक्त राष्ट्र ने 2015 के विकास लक्ष्यों में इनको शामिल किया है. यह स्थिति अब की है, आने वाले दशक की चुनौतियां तो अभी बाकी ही हैं. दुनिया को एक बड़ी आबादी के लिए भोजन और आवास का इंतजाम करने की चिंता करनी होगी क्योंकि अगली सदी के मध्य तक इस में दो अरब लोग और जुड़ जाएंगे. संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक सहयोग और विकास संस्था के मुताबिक 2050 तक पानी की मांग अब के मुकाबले 55 फीसदी ज्यादा हो जाएगी. उस वक्त यह समस्या और बड़ी होगी क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग का जहर इसे और उलझाएगा. पर्यावरण विज्ञानियों का कहना है कि सबसे ज्यादा समस्या उत्तरी अमेरिका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के लोगों के लिए होगी.
पिछले महीने छपी एक रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि अभी से ही 201 नदियों के बेसिन में 2.7 अरब लोगों को कम से कम एक महीने के लिए पानी की कमी से जूझना पड़ता है. नीदरलैंड्स की ट्वेंटे यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर अर्जेन होएक्स्त्रा बताते हैं, "मीठा पानी एक सीमित संसाधन है. इसकी सालाना मौजूदगी सीमित है और मांग बढ़ती जा रही है. दुनिया में कई जगह ऐसे हैं जहां पानी का तल गंभीर रूप से नीचे चला गया है. नदियां सूख रही हैं, झीलों में पानी घट रहा है और जमीन के अंदर पानी का तल नीचे जा रहा है."
पानी पर सीमाई विवाद
पानी की बढ़ती मांग कई देशों के बीच पानी के अधिकार पर तनाव बढ़ा रही है और सीमाओं के विवाद जटिल हो रहे हैं. हरेक सात में से एक देश को अपनी जरूरत के 50 फीसदी पानी के लिए सीमा पार से आने वाले पानी पर निर्भर रहना पड़ता है. पानी की समस्या से जूझने का सबसे अच्छा विकल्प है उसकी बर्बादी की रोकना. शहर के लोग टॉयलेट फ्लश जैसी चीजों में वाशिंग मशीन से निकले पानी का इस्तेमाल कर इस दिशा में प्रयास कर सकते हैं. लेकिन ज्यादा बड़ी समस्या गांवों की है. गांवों में पानी का इस्तेमाल ज्यादा होता है और बर्बादी भी. किसान एक सेकेंड में औसत 20 करोड़ लीटर पानी का इस्तेमाल करते हैं. अगर सिंचाई की सुविधा सुधर जाए तो इसमें कमी लाई जा सकती है.
मारसेई के मंच पर जमा हो रहे मंत्री मंगलवार को एक गैरबाध्यकारी बयान जारी करेंगे जिसमें लोगों के समस्या के प्रति जागरूकता और उन्हें दूर करने के इरादे को जगह मिलेगी. कुछ पर्यावरणविद और दूसरे कार्यकर्ता इस फोरम का विरोध भी कर रहे हैं. उनका कहना है कि यह एक कारोबारी मेला है जिसमें न तो लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं हैं न पारदर्शिता. हालांकि जिन लोगों ने इसमें शामिल होने का फैसला किया है उनका कहना है कि यह तेजी से बढ़ती समस्या पर चर्चा करने का अच्छा मौका होगा.
रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन
संपादनः महेश झा