साफ पानी अब कहां बचा है?
नदियां, तालाब और समंदर तो पहले ही दूषित हो चुके थे. अब भूजल भी विषैला हो रहा है. दुनिया के लाखों शहर पेयजल के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं.
भूजल में कीटनाशक
बर्लिन के इंस्टीट्यूट फॉर प्रोडक्ट क्वालिटी के मुताबिक खेतों में छिड़के जाने वाले कीटनाशक भूजल तक पहुंच चुके हैं. कीटनाशकों में मौजूद कुछ रसायन कैंसर और ऑटोइम्यून बीमारियां फैला सकते हैं.
बेहद ताकतवर बैक्टीरिया
कई तरह की दवाओं को झेलने में सक्षम बैक्टीरिया हॉस्पिटलों और बूचड़खानों के सीवेज के जरिए नदियों और तालाबों तक पहुंच चुके हैं. जर्मनी जैसे विकसित देश में मौजूद सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी पानी से इन कीटाणुओं को अलग नहीं कर सकते. एंटीबायोटिक के कम से कम इस्तेमाल से ही कुछ राहत मिल सकती है.
माइक्रोप्लास्टिक की भरमार
सड़कों पर टायरों के घिसने और बिखरे प्लास्टिक के टूटने से पानी में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक घुल रहा है. दुनिया में अब ऐसी बहुत कम जगहें बची हैं जहां माइक्रोप्लास्टिक न घुला हो. समंदरों में तो माइक्रोप्लास्टिक इस कदर है कि समुद्री जीव प्लास्टिक खाकर मारे जा रहे हैं.
पानी के पाइपों में भारी धातुएं
भारत समेत कई देशों में पानी की सप्लाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पाइप सीसे के बने होते हैं. अन्य देशों में भी पाइपों में सीसे, तांबे, लोहे और कैडमियम जैसी धातुएं इस्तेमाल की जाती है. वक्त के साथ साथ ये धातुएं गलती हैं और पानी में घुलती चली जाती हैं.
निढाल पड़ते ट्रीटमेंट प्लांट
पानी से ताकतवर कीटाणुओं को अलग करने के लिए नए किस्म के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट विकसित करने होंगे. मौजूदा ट्रीटमेंट प्लांट पानी में घुले अतिसूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक और नैनो प्लास्टिक को भी अलग नहीं कर पाते हैं.