साफ हवा के मामले में क्यों चीन है भारत से आगे
२७ अक्टूबर २०२०स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (सोगा)–2020 रिपोर्ट में सामने आया कि वायु प्रदूषण से होने वाली सालाना मौतों में चीन और भारत अव्वल देश हैं. दुनिया में होने वाली उन कुल मौतों का 58% इन दो देशों में है जिनके पीछे वायु प्रदूषण एक कारक है. जहां चीन में पिछले साल करीब 14.2 लाख लोगों की मौत के पीछे वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारी एक वजह थी वहीं भारत में इन मौतों का आंकड़ा 9.80 लाख रहा.
चीन के हालात भारत से बेहतर
सबसे अधिक मौतों के बावजूद प्रदूषण से लड़ने में चीन भारत की तुलना में बेहतर स्थिति में है. जानकार चीन में अधिक मौतों के पीछे वहां की बुजुर्ग आबादी को वजह मानते हैं. सोगा की रिपोर्ट में भारत और चीन दोनों दुनिया के 30 सर्वाधिक प्रदूषित देशों में हैं लेकिन जहां भारत नंबर एक पर है वहीं चीन ने अपनी रैंकिंग में काफी सुधार किया है और वह 29वें नंबर पर है. उपग्रह से मिली तस्वीरें बताती हैं कि पिछले 7 सालों में चीन में हालात सुधरे हैं और वहां अब पीएम 2.5 का स्तर 45 से 75 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है जबकि भारत में यह स्तर औसतन 85 माइक्रोग्राम से अधिक रहता है.
चीन ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिये पहली व्यापक पंचवर्षीय योजना 2013 में लागू की और उसके बाद तय लक्ष्य हासिल करने के लिये लगातार कोशिश जारी रखी. पिछले एक दशक में चीन में पीएम 2.5 का स्तर 30% गिरा है. इसके लिये चीन ने कोयला छोड़कर अपने पावर प्लांट गैस आधारित बनाए. चीन ने अपने बिजलीघरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए उम्दा तकनीक भी फिट की है. प्रदूषण पर काबू की तमाम कोशिशें रिहायशी और औद्योगिक दोनों क्षेत्रों में लागू की गई. यही कारण है कि आज चीन का उत्सर्जन भारत से चार गुना है लेकिन वहां की हवा भारत के मुकाबले करीब ढाई गुना अधिक साफ है.
सोगा–2020 रिपोर्ट अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टिट्यूट और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज प्रोजेक्ट ने जारी की. हेल्थ इफेक्ट इंस्टिट्यूट की वैज्ञानिक पल्लवी पंत कहती हैं, "साल 2013 से ही चीन ने वायु प्रदूषण के खिलाफ एक व्यापक योजना बनाई और बिजली क्षेत्र में कई कदम उठाए. इन सारे कदमों को बड़ी सख्ती से लागू किया गया. हमने वहां पीएम 2.5 कणों में काफी गिरावट देखी है और खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन पर निर्भरता घटी है. हालांकि प्रदूषण का स्तर अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मानकों से कई गुना अधिक है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि कोरोना महामारी के बाद भी वायु प्रदूषण नियंत्रण (चीन में) प्राथमिकता बना रहेगा.”
कोरोना महामारी को बढ़ाएगा प्रदूषण
हेल्थ एक्सपर्ट लगातार कह रहे हैं कि हवा में धूल और अन्य प्रदूषकों का घनत्व कोरोना वायरस का आसान वाहक बनेगा. ऐसे में भारत में इस महामारी का ग्राफ बढ़ने का डर है. भारत के अधिकांश शहर बहुत प्रदूषित हैं और वहां बड़ी संख्या में लोग रहते हैं. इनडोर पॉल्यूशन की भी कोई कमी नहीं है. ऐसे में कोविड के चलते भारत को जाड़ों में वायु प्रदूषण को नियंत्रण में रखना होगा.
महत्वपूर्ण है कि जाड़ों में भारत के कई शहरों में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (पीएम 2.5 के लिए) 400 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से भी ऊपर चला जाता है जबकि इसकी सुरक्षित सीमा 31-60 है. एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है, "सर्दियों में स्वाइन फ्लू के मामले बढ़ते हैं और यह मुमकिन है कि कोविड-19 के मामले में भी यही होगा. इस बात के पक्ष में आंकड़े हैं कि वायु प्रदूषण से कोरोना के केस बढ़ सकते हैं. यह इटली और चीन में हुई स्टडी पर आधारित है.”
क्या कर सकता है भारत
चिंताजनक आंकड़ा यह है कि भारत में करीब 14 करोड़ लोग सुरक्षित मानकों से 10 गुना अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं. पीएम-2.5 और पीएम-10 के बेहद असुरक्षित स्तर के अलावा सल्फर डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में भी भारत नंबर एक है. ऐसे में सवाल है कि भारत हवा को साफ और वातावरण को स्वस्थ बनाने के लिए क्या कर सकता है?
भारत ने जनवरी 2019 में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) लागू किया जिसके तहत सौ से अधिक चुने हुए शहरों में प्रदूषण का स्तर 2024 तक 20-30% कम किया जाएगा. प्रदूषण का दमघोंटू स्तर देखते हुए यह लक्ष्य बहुत कमजोर माना जा रहा है. इसके अलावा एनसीएपी के तहत अधिकारियों के पास कोई कानूनी ताकत नहीं है और सजा का प्रावधान भी नहीं है. जाहिर तौर पर इसे मजबूत किए जाने की जरूरत है. चीन ने मॉनीटरिंग करने और एयर क्वॉलिटी के डाटा कलेक्शन के मामले में काफी चुस्ती दिखाई है और पीएम 2.5 के स्तर को 60 माइक्रोग्राम से कम लाने के लिए 12,000 करोड़ डॉलर यानी 8.5 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा है. भारत इससे सबक ले सकता है.
वैसे भारत ने भी पिछले कुछ सालों में प्रदूषण को रोकने के लिए कोशिशें की हैं, जैसे बीएस-4 के बाद भारत ने सीधे बीएस-6 वाहनों को उतारा और दिल्ली में सभी कोयला बिजलीघर बंद कर दिए गए हैं. इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर के इलाके में ईंट के भट्टे या तो बंद कर दिए गए हैं या फिर उनमें जिक-जैक तकनीक के जरिये कम प्रदूषण करने वाली चिमनियां लगाई गई हैं. ट्रकों को राजधानी में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है और प्रदूषण बढ़ने की स्थिति में एक ग्रेडेड रेस्पोंस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत आपातकालीन कदम उठाए जाते हैं.
लेकिन अब भी देश में तमाम जगह निर्माण क्षेत्र में कड़े मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाना जरूरी है ताकि धूल कम उड़े. डीजल जेनरेटर शहरों में सिरदर्द बने हुए हैं. मिलिनियम सिटी कहे जाने वाले गुरूग्राम में कई रिहायशी सोसायटी जेनरेटरों पर ही चल रही है. हर साल पराली न जले उसके लिए उम्दा तकनीक की मशीनों का इंतजार है और अब भी शहरों में प्रभावी पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है.
स्रोत पर रुके प्रदूषण
दिल्ली सरकार ने हाल में स्मॉग टावर के जरिये प्रदूषण को नियंत्रण करने की बात कही है लेकिन जानकार ऐसे कदमों को शोपीस ही मानते हैं. वायु प्रदूषण एक्सपर्ट और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के विश्लेषक सुनील दहिया के मुताबिक प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही रोकना होगा. दहिया कहते हैं कि लगातार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ज्यादातर कोल पावर कंपनियां अब तक सल्फर प्रदूषण नियंत्रक तकनीक नहीं लगा पाई हैं जो उनमें इच्छाशक्ति का अभाव और सरकार की ढिलाई को दिखाता है.
सुनील दहिया कहते हैं, "प्रदूषण से लड़ने के लिए उसे सोर्स पर ही रोकना और कम करना होगा. स्मॉग टावर जैसे कदम सिर्फ मीडिया में सुर्खियां बटोर सकते हैं लेकिन अगर चीन की तरह हवा को साफ करने में कामयाबी हासिल करनी है तो सख्त मॉनिटरिंग के साथ सजा के प्रभावी कदम लागू करने होंगे. हमें अच्छे पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साथ हर क्षेत्र में कम प्रदूषण करने वाला ईंधन चाहिए. साफ ऊर्जा ही भविष्य है और उस दिशा में तेजी से काम करना होगा.”
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