सिनेमा की सदी
भारतीय सिनेमा के इतिहास में बेशुमार फिल्में बनीं हैं, लेकिन इनमें से कुछ मील का पत्थर साबित हुई. एक नजर ऐसी ही फिल्मों पर.
राजा हरिश्चंद्र (1913)
दादा साहब फाल्के की इसी फिल्म के साथ 1913 में हिन्दी सिनेमा का सफर शुरू हुआ जो अब 100 साल की उम्र हासिल कर चुका है. उस वक्त कहानियां धार्मिक ग्रंथों और ऐतिहासिक चरित्रों से ली जाती थीं. महिलाओं के किरदार भी पुरुष निभाया करते थे.
आलम आरा (1931)
फिल्में तो बनने लगीं लेकिन वो खामोश थीं. 18 साल बाद आई आलम आरा हिन्दी की पहली बोलती फिल्म थी. इसके जरिए लोगों ने आवाज और संगीत से सजी चलती फिरती बोलती तस्वीरें देखी.
आवारा (1951)
राज कपूर की आवारा के साथ हिन्दी सिनेमा ने रूस, चीन समेत कई देशों में कदम रखे. फिल्म बहुत मशहूर हुई और इसे जानने वाले लोग भारतीयों को अब भी इस फिल्म से जोड़ कर देखते हैं. फिल्म का टाइटल सॉन्ग भी खासा लोकप्रिय हुआ. यहां तक कि दुनिया के कई देशों से राजकपूर को न्योते मिलने लगे.
प्यासा (1957)
गुरुदत्त और माला सिन्हा की जोड़ी से सजी प्यासा आजादी के बाद शहरी भारत में पनपते आर्थिक दिक्कतों में घुटते प्यार की अनोखी कहानी थी. प्यासा ने हिन्दी फिल्मों के लिए प्यार की एक परिभाषा बनाई जो जज्बाती होने के साथ ही व्यवहारिक भी थी.
मदर इंडिया (1957)
असली भारत के असली गांव और उनकी सच्ची मुश्किलें. मदर इंडिया पर वास्तविकता की इतनी गहरी छाप थी कि किरदारों का दर्द लोगों के दिल में कहीं गहराई तक बैठ गया. फिल्म विदेशी फिल्मों की श्रेणी में ऑस्कर का नामांकन भी ले गई. फिल्म में पश्चिम के लोगों ने भारत की दिक्कतें देखीं और वो उनके मन में गहरी दर्ज हुई.
मुगले आजम (1960)
एक तरफ विशाल मुगल साम्राज्य की शान तो दूसरी तरफ मुहब्बत का जुनून. प्रेम के नाम पर हुई बाप बेटे की इस जंग में कला साहित्य की दुनिया को अनारकली मिली, ट्रेजडी किंग मिला और आने वाले कई दशकों के लिए हिन्दी सिनेमा की ऐतिहासिक फिल्मों को तौलने का पैमाना तय हुआ.
आराधना (1969)
खूबसूरत वादियों में प्यार के गीत गाते चिकने चेहरे, थोड़ी बहुत कॉमेडी और ढेर सारी उछल कूद, ये आराधना जैसी फिल्मों का दौर था और इस वक्त के नायक थे मीठे बोल वाले राजेश खन्ना.
शोले (1975)
खूब नाच गाना और प्यार मुहब्बत देखने के बाद हिन्दी फिल्मों की मुलाकात गब्बर सिंह से हुई. रामगढ़ में जय वीरू की गब्बर से जंग ने ऐसी आग लगाई कि बसंती की बड़ बड़ करती और जया बच्चन की खामोश मुहब्बत भी उसकी लपटों को मद्धिम न कर सकीं. 38 साल से धधकते शोलों की जुबान आज भी बच्चा बच्चा बोलता है.
हम आपके हैं कौन (1994)
देश में आर्थिक उदारवाद बढ़ा तो मध्यम वर्ग की जेब में पैसा आया और फिर शुरू हुई रंग बिरंगे कपड़ों और सुंदर जीवनशैली से लोगों का मन बहलाने की कोशिश. पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखने वाली फिल्म ने लोगों की भावना को बहुत गहरे तक छुआ और देश ने केवल परिवेश बदल कर पेश की गई एक पुरानी कहानी को सबसे सफल फिल्मों में शामिल करा दिया.
कभी खुशी कभी गम (2001)
पेट भर अच्छा खाना खाने और बढ़िया जीवन जीने के बाद मध्यम वर्ग के पैर विदेशों की तरफ बढ़ चले और फिर तब नई तरह की फिल्मों का आगाज हुआ. भारी भव्यता और बेशुमार भावुक लम्हों वाले शहरी अभिजात्य वर्ग को लुभाने के लिए फिल्में भी वैसी ही बनी और इनमें नई उन्नत तकनीकों का भी भरपूर इस्तेमाल हुआ. कभी खुशी कभी कम का नायक अपने घर हेलिकॉप्टर से आता है.
लगान (2001)
लगान से पहले भारत के सपनों की दुनिया में या तो आजादी थी या फिर प्यार और पैसा. आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ने एक नया सपना दिया कुछ अनोखा और अच्छा कर दिखाने का. हजारों कहानियां पर्दे पर उतारने वाले भारत की जिन दो कहानियों को देसी फिल्मकार ऑस्कर की दहलीज तक ले कर जा पाए वो दोनों ही भारत के गांवों की थी और दोनों के बीच फासला 44 साल का था.
गदर (2001)
हिन्दी फिल्मों के लिए भारत पाकिस्तान की दुश्मनी और दोस्ती दोनों ही बड़ा मसाला है लेकिन बात अगर बॉक्स ऑफिस की हो तो दुश्मनी दोस्ती पर भारी पड़ जाती है. विभाजन की त्रासदी पर बनी इस मसाला फिल्म जैसी सफलता किसी और को नहीं मिली. प्रेम, देश और सन्नी देओल की चीखों ने दर्शकों की उत्तेजना खूब बढ़ाई.
सिंह इज किंग (2008)
कॉमेडी, रोमांस और एक्शन हिंदी फिल्मों के नए दौर के लिए यह एक और फॉर्मूला तैयार हुआ है. अक्षय कुमार और अजय देवगन तो इसके बड़े सितारे हैं ही परेश रावल, ओमपुरी, नसीरूद्दीन शाह, राजपाल यादव, असरानी और विजय राज जैसे कलाकारों ने अपना लोहा मनवा दिया है.
गैंग्स ऑफ वासेपुर (2012)
अनुराग कश्यप, तिग्मांशु धूलिया, रजत कपूर जैसे फिल्मकारों ने सिनेमा के कुछ घरानों के कामयाबी के तयशुदा फॉर्मूले को ठेंगा दिखा दिया है. अब सिर्फ अच्छी फिल्म की बात हो रही है जिसकी कोई पहले से तय परिभाषा नहीं है.
दंगल (2016)
मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहे जाने वाले आमिर खान की फिल्म दंगल एक हजार करोड़ रुपए कमाने वाली हिंदी की पहली फिल्म बनी. इस फिल्म के जरिए उन्होंने हऱियाणा की पहलवान बहनों गीता और बबीता फोगट की जिंदगी को पर्दे पर उतारा. इस फिल्म में आमिर खुद उनके पिता महावीर सिंह फोगट के किरदार में थे.
बाहुबली 2 (2017)
निर्देशक एसएस राजामौली की फिल्म यह भारतीय सिनेमा का बाहुबली साबित हुई है. दुनिया भर में इस फिल्म ने कम से कम डेढ़ हजार करोड़ रुपए का कारोबार किया है. अपने किरदारों और स्पेशल इफ्केट के कारण इसने करोड़ों लोगों का दिल जीता है. मूल रूप से तेलुगु और तमिल में बनी इस फिल्म को कई भाषाओं में डब किया गया.
पद्मावत (2018)
संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित यह फिल्म काफी विवादों में रही. फिल्म के रिलीज के विरोध में भारत के अलग-अलग इलाकों में विरोध-प्रदर्शन हुए. इसके बावजूद दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया. फिल्म ने करीब 400 करोड़ रुपये की कमाई की.