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सीरिया और रूस की मदद पाने के लिए 1 साल से कोशिश में थे कुर्द

१६ अक्टूबर २०१९

सीरिया में अमेरिका के साथ इस्लामिक स्टेट से लड़ रहे कुर्दों ने जब एलान किया कि वे रूस और सीरिया से मदद मांगने जा रहे हैं तो इसे जल्दबाजी में उठाया कदम माना गया. यह घटना इतनी अप्रत्याशित भी नहीं थी.

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Syrien Hasakeh Provinz Flüchtlinge Türkei Invasion
तस्वीर: AFP/D. Souleiman

अमेरिका के साथ कंधे से कंधा मिला कर इस्लामिक स्टेट को नेस्तनाबूद करने में जुटे कुर्दों को बीते एक साल से इस बात का अंदेशा था कि अमेरिका उन्हें अकेला छोड़ जाएगा. कुर्दों ने सीरिया की सरकार और रूस के साथ पर्दे के पीछे बातचीत 2018 से ही शुरू कर दी थी. अमेरिकी, कुर्द और रूसी अधिकारियों का कहना है कि इस बातचीत को बीते कुछ हफ्तों में तेज किया गया था.

यूरोपीय संघ में रूस के राजदूत व्लादीमोर चिजहोव ने रूसी समाचार एजेंसी तास से सोमवार को कहा, "हमने कुर्दों को चेतावनी दी थी कि अमेरिका उन्हें धोखा देगा." कुर्दों का सीरिया से मदद लेना इस बात की भी निशानी है कि अमेरिका के बैरी रूस और सीरिया, अमेरिकी सैनिकों की वापसी से खाली हुई जगह को भरने के लिए किस तरह बेताब हैं. इस घटना ने दुनिया भर में अमेरिका के सहयोगियों को भी बेचैन किया है. ट्रंप विदेश नीति से जुड़े फैसले आवेग में लेते हैं और अकसर ये फैसले आलोचकों के साथ ही सहयोगियों को भी हैरानी में डाल देते हैं.

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कुर्दों के इलाके में सीरियाई सेना का स्वागत हो रहा है.तस्वीर: picture alliance/AP Photo

6 अक्टूबर को जब ट्रंप ने ऐलान किया कि वह उत्तर पूर्वी सीरिया से अमेरिकी फौज को वापस बुला रहे हैं तो इसके साथ ही तुर्की के लिए हमले का रास्ता साफ हो गया. इस स्थिति में कुर्दों को पहले से ही पता था कि उन्हें किस तरफ जाना है. सीरियाई कुर्दो ने सार्वजनिक रूप से माना है कि वे पिछले एक साल से सीरियाई सरकार और उनके सहयोगियों से बात कर रहे थे. हालांकि ज्यादातर बातचीत बैक चैनल कूटनीति के रूप में की गई थी और हाल की बातचीत समेत सारी मुलाकातें पर्दे के पीछे ही हुईं.

पिछले साल शुरू हुई बातचीत

कुर्द अधिकारी बताते हैं कि कुर्दों, सीरियाई सरकार और रूस ने पिछले साल बातचीत तब शुरू की जब कुर्द अमेरिकी सेना की वापसी की आशंका से बेचैन थे. यह तय था कि अमेरिकी फौज का यहां से जाना उन्हें तुर्की के सीधे निशाने पर रख देगा. अमेरिकी फौज फिलहाल दोनों पक्षों के बीच एक ढाल बनी हुई थी. तुर्क लंबे समय से सीरिया में घुस कर कुर्द लड़ाकों का खात्मा करना चाहते थे. तुर्क कुर्दों को आतंकवादी मानते हैं. तुर्की का कहना है कि सीरियाई कुर्द कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी से जुड़े हुए हैं. कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी ने लंबे समय से तुर्की में हिंसक अलगाववादी आंदोलन छेड़ रखा है.

डॉनल्ड ट्रंप अकसर इस्लामिक स्टेट के पांव उखाड़ने का श्रेय खुद को देते हैं. पांच साल तक जिन कुर्दों ने उनका इस जंग में हर तरीके से साथ दिया, उसे उन्होंने एक झटके में अकेला छोड़ दिया. बीते कुछ समय से सीरिया में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी के खिलाफ वे लगातार बोल रहे थे. वे इस पर हैरानी जताते थे कि आखिर अमेरिकी सैनिक मध्यपूर्व में है ही क्यों. जाहिर है कि कुर्दों को अंदेशा था कि ऐसा होगा. दूसरी तरफ रूस ने इसे मौके के रूप में इस्तेमाल किया और पहुंच गए कुर्दों के पास. उन्होंने कुर्दों से अमेरिकी संबंधों को भूल जाने को कहा. कुर्द अधिकारी सार्वजनिक रूप से यह बात नहीं कहते. वे यही कहते हैं कि अमेरिका के साथ बने रहेंगे.

रूस को मौके की तलाश

इसके बाद जो हुआ वह एक तरह से बड़े परिवर्तन की शुरुआत था. तुर्की ने रूस की सहमति से सैन्य अभियान शुरू किया, पहले आफरीन को निशाना बनाया गया. कुर्द अमेरिका से शिकायत करते रहे और खुद कुछ नहीं किया सिवाय हमले झेलने के. कुर्दों के लिए आफरीन का बहुत महत्व है. यह उन इलाकों में है जहां सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह शुरू हुआ और जो स्वायत्त हो गया. यह कुर्दों के वरिष्ठ नेताओं की जमीन रही है और यहीं से उन्होंने अमेरिका के साथ गठजोड़ किया था. तुर्की की सीमा पर स्वायत्त क्षेत्र बनाने की कोशिश यहीं परवान चढ़ी. बैक चैनल बातचीत तेज हुई. रूसी अधिकारियों के साथ कुर्दों की एक उच्चस्तरी बातचीत नवंबर 2018 में हुई. उस वक्त मॉस्को में तुर्की का एक सुरक्षा प्रतिनिधिमंडल भी मौजूद था. तब अरब अखबारों ने खबर छापी कि तुर्की ने सीमा के 30 किलोमीटर भीतर एक सेफ्टी जोन बनाने का प्रस्ताव रखा है. रूस ने इसे 5-9 किलोमीटर रखने का प्रस्ताव दिया लेकिन कुर्दों ने उसे ठुकरा दिया.

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कुर्द राजनेता हेवरीन खलाफ और दुसरे लोगों को अंतिम संस्कार में सम्मान देते कुर्द लड़ाके.तस्वीर: AFP/D. Souleiman

इसके कुछ दिनों बाद कुर्दों का यही दल दमिश्क पहुंचा. जहां इनकी मुलाकात सीरिया की खुफिया सेवा के प्रमुख और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों से रूसी अधिकारियों की मौजूदगी में हुई. तब सऊदी के एक अखबार ने इस गोपनीय बैठक के बारे में खबर छापी थी. खबर देने वाले सीरियाई पत्रकार अशरक अल अवसात ने तब बताया था कि कुर्द प्रतिनिधिमंडल ने दमिश्क में कहा कि वे आफरीन की गलती नहीं दोहराएंगे और कुछ लचीलापन दिखाने को तैयार हैं. इस बैठक का नतीजा कुर्दों और सीरिया की सरकार के बीच पहले सहयोग के रूप में सामने आया.

कुर्द लड़ाकों ने सीरिया सरकार को अपनी फौज एक और कुर्द इलाके मनबीज में भेजने का अनुरोध किया. यहां अमेरिकी फौज की मौजूदगी रही है. इस कदम से इलाके में अमेरिका की ताकत और असर कमजोर हो सकता था लेकिन सीरिया की सेना पास के रूसी अड्डे पर चली गई.

ट्रंप के अचानक फैसले

दिसंबर 2018 में ट्रंप ने एलान किया कि वे सीरिया से अपनी फौज बुलाने जा रहे हैं. ट्रंप के अचानक इस तरह का फैसला लेने के बाद अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ अभियान के विशेष राजदूत ब्रेट मैकगुर्क ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद भी ट्रंप की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की टीम ने फौज की वापसी को कुछ महीनों के लिए टलवाने में सफलता हासिल कर ली. इस बीच कुर्द मास्को और दमिश्क में अपना संपर्क बढ़ाते रहे.

एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी की स्थिति में कुर्द तुर्की से अपनी रक्षा के लिए इसे बीमा पॉलिसी की तरह इस्तेमाल कर रहे थे. कुर्द सैन्य मामलों और नागरिक प्रशासन के साथ ही पुनर्ननिर्माण के लिए अमेरिका से बात कर रहे थे लेकिन इसके साथ यह भी मान रहे थे कि केवल अमेरिका से बात करना बेवकूफी होगी.

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तुर्की के हमले के बाद उठता धुआंतस्वीर: Reuters/M. Sezer

मैटिस और मैकगुर्क के इस्तीफे के बाद वरिष्ठ कुर्द अधिकारी इलहाम अहमद ने बताया कि कुर्दों ने रूस के सामने सीरिया से बातचीत के लिए एक संभावित रूपरेखा रखी है. इस में 11 बिंदु थे और इसके तहत सीरिया की क्षेत्रीय एकता को मान्यता देने के साथ ही कुर्द नेतृत्व वाली सेना को सीरिया की सेना में शामिल करने का प्रस्ताव था. इसके बदले में कुर्दों को एक विकेंद्रित कुर्दिश राज्य मिलता जहां उन्हें कुछ हद तक स्वायत्तता देने की बात कही गई. हालांकि यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका.

वरिष्ठ कुर्द अधिकारी राजान हिद्दो के मुताबिक कुर्दों की सीरिया और रूस के साथ अब जो डील हुई उस पर बातचीत अलेप्पो में हुई और उसे अंतिम रूप में दमिश्क में दिया गया. इसमें कुर्द लड़ाके सीरिया की सेना के साथ मिल कर तुर्की के हमले को रोकेंगे. समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में हिद्दो ने कहा कि करार के पहले हिस्से में सीरियाई सेना की तैनाती मनबीज में होगी और उसके बाद कोबानी में. एक और कुर्द अधिकारी बादरान सिया कुर्द ने बताया कि डील में सिर्फ सैन्य सुरक्षा की बात की गई है और कुर्दों को ट्रंप के फैसले की वजह से ऐसा करना पड़ा है.

मंगलवार को यह साफ हो गया कि इस पूरी प्रक्रिया में रूस की क्या भूमिका होगी. अमेरिका की खाली हुई जगह को भरने के लिए रूस आगे आया है. वह तुर्की और सीरिया की सेना को एक दूसरे से दूर रखेगा. रूस और सीरिया अमेरिकी जगह को भरने के लिए मजबूती से तैयार हैं.

एनआर/आईबी (एपी)

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