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सोने की कीमत और तहस नहस वादियां

५ अगस्त २०११

दुनिया भर में हर साल 70 फीसदी सोने से गहना बनाया जाता है. लेकिन सोने के गहने पहनने की कीमत बहुत ऊंची है. एक अंगूठी का मतलब है 20 टन जहरीला कचरा.

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तस्वीर: Frank May

जो जीवन के बंधन पर सोने की अंगूठियों की मुहर लगाता है, जाने अनजाने कंधे पर एक भारी बोझ भी डालता है. शादी की ऐसी अंगूठी को तैयार करने में 20 टन जहरीला कचरा पैदा होता है. यह या तो पीने के पानी को गंदा करता है, समुद्र में फेंका जाता है या पूरे के पूरे इलाके को न रहने लायक बना देता है.

सिर्फ एक अंगूठी को बनाने में जो कचरा निकलता है, उसे साफ करने के लिए कई ट्रक लगते हैं जबकि सोने को तौलने के लिए मामूली छोटा तराजू ही काफी है. खानों से निकलने वाला खनिज जब पर्याप्त अयस्क देना बंद कर देता है तो एक जहरीली जगह बन जाता है, जहां की धरती और पानी इस्तेमाल के लायक नहीं रहती.

बॉन की शांति शोध संस्थान बीआईसीसी की रिसर्चर मारी म्युलर बताती हैं, "औद्योगिक खनन में बहुत ज्यादा सायनाइड का उपयोग किया जाता है. सोने को अयस्क से अलग करने के लिए इस्तेमाल होने वाला एक रसायन."

Ausstellung Die Salier Macht im Wandel Flash-Galerie
एक अंगूठी के लिए चुकानी पड़ती है भारी कीमततस्वीर: Domkapitel Speyer/Peter Haag-Kirchner

सुपर जहर सायनाइड

हर साल दुनिया भर में चट्टान से सोने को अलग करने के लिए 1,82,000 टन पोटाशियम सायनाइड का उपयोग होता है. यह जहरीला रसायन चावल के एक दाने भर के बराबर किसी को मारने के लिए काफी है.

म्युलर कहती हैं, "खनिकों को हालांकि बची हुई जहरीली सामग्री को सुरक्षित रखना होता है और उसकी सफाई करनी होती है लेकिन अकसर इसे खुले कंटेनरों या खाइयों में फेंक दिया जाता है जहां वह धीरे धीरे सूखता है." अकसर दुर्घटनाएं होती हैं, कभी छोटी तो कभी बड़ी, जैसा कि 2000 में रोमानिया के बाया मार में हुआ.

वहां सायनाइड भरी एक खाई का बांध टूट गया. लाखों टन सायनाइड और भारी धातु मिला पानी बह निकला और तीन सप्ताह तक थाइस और डैन्यूब नदी होकर काले सागर में बहता रहा. इस जहरीले तरल की वजह से रोमानिया ही नहीं, हंगरी और सर्बिया में भी भारी संख्या में जानवरों की मौत हुई.

मुनाफे के लिए सोतों में जहर

बाया मार के इलाके में आज भी बहुत सी झीलों में जहर तैर रहा है. न तो इंसान और न ही जानवर उसका पानी पी सकते हैं. सोने की खान चलाने वाली ऑस्ट्रेलियन रोमानियन कंपनी आउरूल ने दुर्घटना के चार महीने बाद ही फिर से उत्पादन शुरू कर दिया. लेकिन दूसरे नाम से. मुआवजे के दावों से बचने के लिए आउरूल ने खुद को दीवालिया घोषित कर दिया. नई कंपनी ट्रांसगोल्ड ने उत्पादन का काम संभाल लिया लेकिन पर्यावरण को हुए नुकसान का जिम्मा नहीं लिया.

die psychologisch wichtige Marke von 1500 Dollar. Am Freitag (08.04.2011) kostete eine Feinunze (rund 31 Gramm) des gelben Edelmetalls bereits rund 1468 Dollar und damit so viel wie noch nie. Foto: Bundesbank/dpa (zu dpa-Korr.-Bericht "Krisenherde und Inflation treiben Goldpreis Richtung 1500 Dollar" am 08.04.2011 +++(c) dpa - Bildfunk+++
दुनिया भर में सोने की कीमतों में कुछ उतार चढ़ाव आता लेकिन भारत में ज्यादातर चढ़ाव ही देखने को मिलता हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

सारी दुनिया में यही होता है. चाहे एशिया हो, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका या यूरोप. कुछेक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का सोने के विश्व बाजार पर कब्जा है. वे ऐसे देशों में ठेका खरीदते हैं जहां पर्यावरण रक्षा कानून नहीं हैं या फिर उन्हें लागू नहीं किया जाता और जब खान फायदेमंद नहीं रहते तो वहां से खिसक लेते हैं.

वापस छोड़ जाते हैं तहस नहस वादियां और जहरीला पर्यावरण. चट्टान तोड़ने वाली मशीनों द्वारा नष्ट पहाड़ियों की श्रृंखला और अयस्क को सायनाइड के साथ धोने से पैदा हुईं जहरीले पानी वाले झीलें. बिना किसी दुर्घटना और तकनीकी समस्या के भी जहरीले पदार्थ नदियों और जमीन के अंदर के पानी तक पहुंच जाते हैं.

सस्ता है सोना

जर्मन शहर वायेनश्टेफान के तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रीडहेल्म कोर्टे ने सोने के उत्पादन पर एक पर्यावरण रिपोर्ट तैयार की है. एस औसत सोने की खान में हर साल 2,50,000 टन अयस्क पीसा जाता है. फिर उसे डेढ़ हेक्टेयर जमीन पर फैलाया जाता है और उस पर 125 टन सायनाइड का मिश्रण तथा 3,65,000 घनमीटर पानी छिड़का जाता है. हर टन अयस्क पर 3 ग्राम सोना निकलता है. खान का औसत उत्पादन 750 किलो सोना. लेकिन बहुत सी जगहों पर प्रति टन सिर्फ 1 ग्राम सोना निकलता है. पर कचरा उतना ही निकलता है.

पर्यावरण रसायन के विशेषज्ञ प्रोफेसर कोर्टे का कहना है कि साथ उत्पादन प्रक्रिया में हजारों टन कीचड़ भी पैदा होता है जिसमें पारा, रांगा, कैडमियम, तांबा और संखिया भी मिला होता है. वे चेतावनी देते हैं, "इसमें बहुत सारे तत्व धुलकर घुलते हैं जिनके बीच आपसी प्रतिक्रिया के बारे में कोई शोध नहीं हुआ है."

इसलिए कोर्टे का मानना है कि इस समय विश्व बाजार में मिलने वाली सोने की कीमत बहुत कम है. यदि अकेले जहरीले कीचड़ को खतरनाक कचरे के रूप में सफाई करनी पड़े, जैसा कि हमारे यहां विभिन्न उद्योगों में सामान्य बात है, तो सोने बहुत महंगा हो जाएगा.

सिर्फ बड़ी दुर्घटनाएं सुर्खियां बनती हैं और जल्द भुला दी जाती हैं. लेकिन हर दिन फैलने वाला जहर खबर नहीं बनता जब सायनाइड का कंटेनर खो जाता है या जहरीला कचरा धीरे धीरे भूमिगत पानी से जा मिलता है. चाहे पेरू हो, कोलंबिया, पापुआ न्यू गिनी या कांगो और घाना - गहना बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सोने की सामाजिक और पर्यावर्णिक कीमत किसी तख्ती पर नहीं होती.

Flash-Galerie Goldgewinnung in Sibirien
दक्षिण अफ्रीका में होता सोने का खननतस्वीर: picture-alliance/dpa

खूनी सोना

यह स्वाभाविक ही है कि बॉन का शांति शोध संस्थान बीआईसीसी खनन उद्योग पर शोध कर रहा है. सदियों से सोने का लोभ युद्ध भड़काता रहा है. हमारे समय में हीरे या इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में काम में आने वाले धातु तंताल, टिन या वोल्फराम युद्ध और गृह युद्ध के लिए वित्तीय संसाधन जुटाते रहे हैं. ऐसी स्थिति में इसे खूनी हीरा या खूनी खनिज कहा जाता है.

वाशिंगटन के एक गैरसरकारी संगठन एनफ प्रोजेक्ट के साशा लेझनेव बताते हैं, "हर बार जब कोई एसएमएस भेजता है तो वह अपने सेलफोन में तंताल का उपयोग करता है. हर बार जब फोन में वाइब्रेशन होता है तो ऐसा कांगो से आने वाली धातु वोल्फराम के कारण होता है."

अमेरिका में 2010 में ऐसा कानून लागू हुआ, जिसके तहत उत्पादकों को साबित करना होता है कि उनके उत्पादों के लिए कच्चा माल विवाद क्षेत्र कांगो से नहीं आया है. हालांकि यह कानून सिर्फ कांगो के इलाके के लिए लागू है लेकिन उसकी वजह से बहुत बदलाव आया है. लेझनेव कहते हैं, "इलेक्ट्रॉनिक उद्योग ने तंताल के लिए एक निगरानी व्यवस्था लागू कर दी है. अब इसे सोने और टिन के लिए भी लागू करने पर काम चल रहा है."

An Indian Sikh devotee bathes in holy water in front of the illuminated Golden Temple, Sikhs' holiest shrine, on the eve of the birth anniversary of Guru Nanak Dev, the first Guru of Sikhs, in Amritsar, India, Saturday, Nov. 20, 2010. (AP Photo/Prabhjot Gill)
रोशनी में नहाया हुआ अमृतसर का स्वर्ण मंदिरतस्वीर: AP

धातुओं का फुटप्रिंट

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर धातु के लिए उसके स्रोत का सबूत देने की आम जिम्मेदारी तय की जा सकती है. यूरोपीय संघ में ऐसी ही प्रक्रिया लागू करने पर विचार हो रहा है. वैज्ञानिक धातुओं के लिए फुटप्रिंट व्यवस्था तैयार कर रहे हैं. जर्मन रिसर्चर इस क्षेत्र में अगुआ हैं. सोने के लिए पर्यावरण सम्मत होने का सर्टिफिकेट लागू करना भी संभव है. सर्टिफायड पुराना सोना एक और संभावना है क्योंकि सोने के विश्वव्यापी उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा गहने बनाने के काम आता है. नया सोना निकालने के बदले रिसाइक्लिंग वाले सोने के उपयोग से शादी की हर अंगूठी पर 20 टन कम जहरीला कचरा पैदा होगा.

लेख: हेले येप्पसन (मझा)

संपादन: ए जमाल

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