सोशल मीडिया और नवनाजी
१० जुलाई २०१३एक पूर्व नवनाजी उग्र दक्षिणपंथी आंदोलन में सक्रिय रहने के दौरान अपना पूरा दिन कट्टरपंथी नेटवर्क की ऑनलाइन उपस्थिति में लगाता था. यही उसकी कमाई का मुख्य जरिया था. दक्षिणपंथी उग्रवाद के खिलाफ ऑनलाइन परामर्श देने वाले प्रोजेक्ट के लीडर मार्टिन सीगेनहागेन कहते हैं कि उसे नेटवर्क के किसी फंड से धन मिलता था. अक्सर ऐसे माता पिता सीगेनहागेन से सलाह लेते हैं जिनके बच्चों का झुकाव उग्र दक्षिणपंथ की ओर हो गया है. उग्रवादी नेटवर्क से इन बच्चों का पहला संपर्क इंटरनेट के जरिए होता है, यूट्यूब के वीडियो, फेसबुक के चैट या ट्विटर पर. अकसर माता पिता स्थिति से निबटने में अत्यंत लाचार दिखते हैं. वे बताते हैं, "उन्हें पता नहीं होता कि फेसबुक क्या है. अक्सर उन्हें ये भी पता नहीं होता कि उनके बच्चे इंटरनेट पर क्या कर रहे हैं."
सोशल मीडिया का इस्तेमाल
जर्मन नवनाजी अपना घृणा अभियान मुख्य रूप से सोशल मीडिया की मदद से चला रहे हैं, जो युवा लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है. यह बात युवाओं की सुरक्षा के लिए सरकारी मदद से चलने वाली संस्था यूगेंडशुत्स डॉट नेट की वार्षिक रिपोर्ट में पता चली है. यह संस्था इंटरनेट पर आपराधिक और युवाओं को नुकसान पहुंचाने वाले कंटेंट का पता करती है.
बर्लिन में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2012 में इस तरह की 1600 आपराधिक सामग्रियां मिलीं. इनमें से 80 फीसदी सोशल मीडिया साइटों पर थीं. पिछले साल युगेंडशुत्स डॉट नेट को सोशल मीडिया में 5,500 उग्र दक्षिणपंथी पोस्ट मिले, जो 2011 के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा थे. ट्विटर भी नवनाजी संगठनों और लोगों के लिए बड़ी भूमिका निभा रहा है. संस्था को 2012 में उग्र दक्षिणपंथियों के 200 के करीब अकाउंट मिले, जबकि 2011 में उनकी तादाद 141 थी.
पहली नजर में सीधा सादा
आम तौर पर उग्र दक्षिणपंथी गुटों का फेसबुक प्रोफाइल पहली नजर में बहुत सीधा सादा और हानि न पहुंचाने वाला लगता है. जर्मनी की नागरिक शिक्षा एजेंसी के प्रमुख थोमस क्रूगर कहते हैं, "दक्षिणपंथी उग्रवादी प्रत्यक्ष और भोंडा प्रचार नहीं करते." उन्होंने देखा है कि ये गुट इंटरनेट में अपने को बेहतर तरीके से छुपाने में कामयाब हो रहे हैं. "पहली नजर में वे ऐसे कंटेट का सहारा लेते हैं जो युवा लोग पसंद करते हैं, लाइफस्टाइल, म्यूजिक और इवेंट."
नस्लवादी या भेदभाव वाले चीजें छुपी रहती हैं, वे कई बार क्लिक करने के बाद ही सामने आती है. यूगेंडशुत्स डॉट नेट के उपनिदेशक श्टेफान ग्लाजर कहते हैं, "ज्यादातर चीजें कानूनी तौर पर पकड़े जाने लायक नहीं होतीं." इतना ही नहीं नस्लवाद को ब्लैक ह्यूमर के रूप में पेश किया जाता है, मसलन यहूदी विरोधी चुटकुलों के रूप में. फेसबुक जैसे सोशल मीडिया साइट इन्हें पेज पर रहने देते हैं क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप से उनके गाइडलाइन का हनन नहीं करता है. ग्लाजर कहते हैं, "फेसबुक को इस पर स्पष्ट लक्ष्मण रेखा खींचनी होगी."
फेसबुक के साथ सहयोग
ग्लाजर और क्रूगर दोनों का ही कहना है कि फेसबुक और गूगल जैसे प्रमुख इंटरनेट प्लेटफॉर्मों के साथ उनका सहयोग बेहतर हुआ है. क्रूगर कहते हैं कि वे अब एकल यूजरों और यूगेंडशुत्स जैसे संगठनों की शिकायतों पर ज्यादा संवेदनशीलता और कार्रवाई करने की तैयारी दिखा रहे हैं. वे बताते हैं कि शिकायत होने पर जल्द ही साइट से कंटेंट हटा दिया जाता है या प्रोफाइल को ब्लॉक कर दिया जाता है.
यही वजह है कि बहुत से उग्र दक्षिणपंथी यूजरों ने रूस के वीके डॉट कॉम जैसे कम ज्ञात सर्वरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. वीके डॉट कॉम 10 करोड़ यूजर्स होने का दावा करता है. इनमें जर्मनी के अलावा पोलेंड और चेक गणतंत्र के नवनाजी भी शामिल हैं. ग्लाजर बताते हैं, "हार्डकोर नवनाजी गुटों ने पिछले साल के मध्य से वीके डॉट कॉम पर गहन प्रचार शुरू कर दिया है." लेकिन वीके डॉट कॉम सहयोग करने को तैयार है और ग्लाजर के संगठन ने उग्र दक्षिणपंथी कंटेट हटवाने के लिए उससे सीधा संपर्क स्थापित किया है.
भावी चुनौतियां
लेकिन कोशिश कितनी भी हो, इंटरनेट की दुनिया बड़ी है और नवनाजी वीडियो और प्रचार वाले कंटेंट के इंटरनेट के दूसरे हिस्सों में चले जाने की आशंका है. सीगेनहागेन को पूरा भरोसा है कि उग्र दक्षिणपंथियों ने नई इंटरनेट उपस्थिति पर काम करना शुरू कर दिया है. इस बीच स्मार्ट फोन के ऐप बन गए हैं जिनकी मदद से नवनाजी रेडियो ब्रॉडकास्ट और पोडकास्ट को डाउनलोड किया जा सकता है. सीगेनहागेन का कहना है कि इस विकास से लड़ना अत्यंत मुश्किल है.
इसलिए उग्रवाद के खिलाफ संघर्ष कर रहे संगठन राजनीतिक शिक्षा के महत्व पर जोर देते हैं. सीगेनहागेन कहते हैं, "इसका उद्देश्य स्कूल के भीतर और बाहर लोगों को झिंझोड़ना है." उनका कहना है कि आखिरकार इंटरनेट यूजरों को खुद से यह सवाल करना होगा कि वे घृणा और विद्वेश फैलाने वाली सामग्रियों के खिलाफ क्या कर रहे हैं.
रिपोर्ट: नाओमी कॉनराड/एमजे
संपादन: निखिल रंजन