स्किन कैंसर के लिए क्रीम का सपना
३१ जनवरी २०१३वैज्ञानिक कारण ढूंढ रहे हैं कि कैसे त्वचा की सामान्य कोशिकाएं अचानक बढ़ने लगती हैं और कैंसर में तब्दील हो जाती हैं. वैसे तो सामान्य तौर पर कोशिकाएं बढ़ती हैं लेकिन कैसे वह कैंसर में बदलती हैं इस प्रक्रिया का पता अगर लग जाए तो इन बीमार कोशिकाओं को खत्म करने में मदद मिल सकेगी.
इस प्रक्रिया का सुराग ब्रसेल्स की फ्री यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को मिला है. बेसल सेल के कैंसर पर इन वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया. कैंसर का यह प्रकार यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में लोगों को अकसर होता है, और इसे व्हाइट स्किन कैंसर के नाम से जाना जाता है.
मूल कोशिकाओं का दोष नहीं
अभी तक वैज्ञानिकों का ऐसा मानना था कि त्वचा के कैंसर में मुख्य तौर पर मूल कोशिकाओं में कैंसर पैदा होता है. सामान्य तौर पर त्वचा में पाई जाने वाली मूल कोशिकाएं (स्टेम सेल) कोशिकाओं का बढ़ना नियंत्रित करती हैं. लेकिन जब उनके जीन में बदलाव आ जाता है तो हो सकता है कि त्वचा की कोशिकाएं अनियंत्रित बढ़ना शुरू कर दें.
लेकिन अब पता चला है कि स्वस्थ त्वचा कोशिकाएं भी कैंसर का शिकार हो सकती हैं भले ही मूल कोशिकाओं में बदलाव नहीं हुआ हो.
जर्मनी के हाइडेलबर्ग के जर्मन कैंसर शोध केंद्र के मार्टिन श्प्रिक का मानना है कि कैंसर दो तरीके से हो सकता है, एक तो सामान्य कोशिका से और दूसरे मूल कोशिका से "अलग अलग तरह से होने वाले कैंसर के कारण इससे होने वाले ट्यूमर अलग अलग गुण दिखाते हैं."
जिद्दी ट्यूमर
त्वचा की सामान्य कोशिकाओं को फिर से प्रोग्राम किया जाता है तो वह एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाती हैं जो गर्भ में मिलने वाली मूल कोशिकाओं जैसी होती हैं. वैसे तो गर्भ की मूल कोशिकाएं सिर्फ गर्भनाल में नहीं पाई जाती बल्कि वह शरीर के हर सेल में बन सकती हैं. उसका काम है कोशिकाओं की रिपेयरिंग करना. जबकि बढ़ चुकी, पूरी तरह विकसित हो चुकी कोशिकाएं जिनमें, त्वचा की कोशिकाएं भी शामिल हैं, वे सिर्फ एक विशेष तरह की कोशिकाओं में बदली जा सकती हैं. इसलिए इनमें गर्भकोशिकाओं की तुलना में कैंसर होने का खतरा भी तुलनात्मक रूप से ज्यादा हो जाता है.
जब बढ़ चुकी कोशिकाओं को फिर से पुराने रूप में लाने की कोशिश की जाती है तो इससे साफ हो सकता है कि कैंसर के इलाज के बाद बढ़ने वाली कैंसर की कोशिकाएं इतनी जिद्दी क्यों होती हैं. क्योंकि कैंसर की कोशिकाएं सीख जाती हैं कि मरम्मत कैसे करना है. इसलिए अकसर कैंसर की कोशिकाएं तेजी से भी बढ़ने लगती हैं.
सेल्यूलर प्रोसेस
बेल्जियम के वैज्ञानिकों ने शोध के दौरान यह दिखाया कि कैंसर वाली मूल कोशिकाएं कैंसर सेल में तब बढ़ती है जब एक खास बायोकेमिकल संकेत काम करने लगता है. इस सिगनल के कारण एक विशेष प्रोटीन सेल तक केमिकल संदेश पहुंचाता है. अगर इस सिगनल को रोक दिया जाए तो फिर से प्रोग्राम किए हुए सेल में मूल कोशिका के समान कोशिकाओं में ही ट्यूमर फिर से पैदा हो सकेगा.
कैंसर के लिए क्रीम
ब्रसेल्स में फ्री यूनिवर्सिटी के सेड्रिक ब्लांपां को उम्मीद है कि आने वाले समय में स्किन कैंसर के लिए एक क्रीम बनाई जा सकेगी जो कैंसर पैदा करने वाले सिगनलों को रोक सके, "सनस्क्रीन क्रीम में किसी दिन ये पदार्थ मिलाए जा सकेंगे ताकि कैंसर न हो. इसका कोई बुरा असर नहीं होगा शायद जहां ये क्रीम लगाई जाएगी वहां के बाल गिर सकते हैं. यह इतना बुरा भी नहीं होगा."
ब्लांपा का सपना सच्चाई से ज्यादा दूर नहीं है. 2012 में ही ऐसी दवाइयां बन गई थीं जो हेडगेहो सिगनल को रोकने में कामयाब हुई. उन्हें ऐसे मरीजों को दिया गया जो व्हाइट स्किन कैंसर से पीडित थे और जिनका कैंसर बहुत गंभीर अवस्था में पहुंच चुका था. हालांकि इन दवाइयों के साथ एक समस्या है कि यह दवाई पूरे शरीर पर असर करती है इसलिए इसका बुरा असर भी ज्यादा है. कैंसर पर शोध करने वाले जर्मन वैज्ञानिक मार्टिन श्प्रिक कहते हैं, "इसलिए त्वचा पर लगाने वाली क्रीम बना सकना एक अहम कदम होगा और इससे कैंसर की रोकथाम और इलाज में काफी मदद मिलेगी."
रिपोर्टः लीसा किटेल,आभा मोंढे
संपादनः ए जमाल