स्कॉलरशिप में देरी से परेशान होते गरीब बच्चे
२० नवम्बर २०२०केंद्र सरकार ने विभिन्न पिछड़े तबके के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप की दर्जनों योजनाएं चला रखी हैं. इसके अलावा राज्य सरकारों ने भी अलग-अलग ऐसी योजनाएं शुरू की हैं. लेकिन इनके तहत मिलने वाली रकम का भुगतान काफी देरी से होने की वजह से तमाम छात्रों को भारी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है. हाल में तेलंगाना की एक छात्रा ने तो इसी वजह से आत्महत्या भी कर ली थी. समय पर स्कॉलरशिप नहीं मिलने की वजह से अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए छात्र पार्ट टाइम छोटे-मोटे काम करने और कर्ज लेने पर मजबूर हैं. हालांकि दो साल पहले तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भरोसा दिया था कि अब ऐसे मामलों में देरी नहीं होगी. लेकिन वह भरोसा कागजी ही साबित हुआ है. शिक्षाविदों का कहना है कि इस रकम के भुगतान की प्रक्रिया जटिल होने, समय पर पर्याप्त रकम आवंटित नहीं करने और लालफीताशाही के चलते ही ऐसे मामलों में काफी देरी होती है. कोरोना की वजह से तमाम शैक्षिक संस्थानों के बंद होने से परिस्थिति और गंभीर हो गई है.
छात्रों की दिक्कतें
स्कॉलरशिप की रकम समय पर नहीं मिलने की वजह से असम की राजधानी गुवाहाटी स्थित टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) में पढ़ने वाले दलित व आदिवासी समुदाय के 22 छात्रों का भविष्य ही अधर में लटक गया है. यह लोग अपनी करीब 67 हजार की फीस जमा नहीं कर सके हैं. नतीजतन इनको रिजल्ट नहीं मिल सकता. रिजल्ट नहीं मिला तो हाथ आई नौकरी के निकलने का भी खतरा है. इनमें से एक छात्र अमित बताते हैं, "स्कॉलरशिप की रकम अब तक नहीं मिली है. मेरे पिता किसान हैं.” ओडीशा के रहने वाले अमित को केंद्र सरकार की पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप मिलती है. वे अनुसूचित जनजाति के हैं. स्कॉलरशिप मिलने की वजह से ही उन्होंने उक्त संस्थान में दाखिला लेने का फैसला किया.
टीआईएसएस प्रबंधन ने कहा है कि छात्रों ने अगर पहले साल की स्कॉलरशिप की रकम जमा करा दी है तो हॉस्टल और मेस चार्ज बकाया रहने के बावजूद उनके रिजल्ट जारी कर दिए जाएंगे. लेकिन जब ज्यादातर छात्रों को पहले साल की स्कॉलरशिप ही नहीं मिली है तो वे भुगतान कहां से कर सकते हैं. स्कॉलरशिप के तहत पढ़ाई का पूरा खर्च मिलता है और इसका भुगतान सालाना किया जाता है.
बिहार के नवादा जिले में एसएन सिन्हा कालेज में बीएससी के प्रथम वर्ष के छात्र मनीष कुमार ने दो साल पहले ही अनूसूचित जाति के पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए आवेदन किया था. लेकिन उनको अब तक कोई रकम नहीं मिली है. मनीष कहते हैं, "अगर इस साल भी स्कॉलरशिप नहीं मिली तो मजबूरन मुझे पढ़ाई छोड़ देनी होगी." मनीष जैसे छात्रों की तादाद लाखों में है. पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए कुछ छात्र जहां छोटे-मोटे काम करने पर मजबूर हैं वहीं कइयों ने भारी-भरकम ब्याज पर साहूकारों या बैंकों से कर्ज ले रखा है. कोरोना के दौर में काम भले ठप हो, कालेज की फीस तो देनी ही होगी. इसके अलावा कोरोना की वजह से ऑनलाइन पढ़ाई जारी रखने के लिए इंटरनेट और लैपटाप जैसी चीजों का खर्च भी जुड़ गया है.
देरी की वजहें
देश में फिलहाल 70 लाख दलित छात्र केंद्र सरकार की स्कॉलरशिप के पात्र हैं. लेकिन बीते साल केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय से संबद्ध स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि उक्त योजना के तहत 60.29 लाख दलित छात्रों को ही स्कॉलरशिप मिलती है. वर्ष 2018 में नियमों में बदलाव कर स्कॉलरशिप में राज्यों को हिस्सा बढ़ा दिया गया था. यह भी देरी की एक अहम वजह है. इस वजह से राज्य सरकारें इस मामले में धीरे चलो की नीति अपना रही हैं. इसके अलावा आवेदन की प्रक्रिया बेहद जटिल है. केंद्र सरकार की ओर से इन योजनाओं के मद में आबंटित की जाने वाली रकम में भी कटौती की जा रही है. मौजूदा वित्त वर्ष में इन योजनाओं के लिए बजट में करीब 30 अरब रुपये का प्रावधान रखा गया है. लेकिन अब तक महज 11 अरब रुपये ही जारी किए गए हैं. सोलह राज्यों को कुछ रकम मिली है, बाकी अब तक इंतजार कर रहे हैं. बिहार को तो इस मद में महज 2.30 लाख रुपये ही मिले हैं.
केंद्रीय आदिवासी कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2019-20 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा था कि स्कॉलरशिप के पात्र छात्रों के चयन और सत्यापन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है. इसके साथ ही समय पर इस रकम का भुगतान भी उनकी जिम्मेदारी है. नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने वर्ष 2018 में अनुसूचित जाति के लिए पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना पर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वर्ष 2012 से 2017 के बीच महज पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडु व उत्तर प्रदेश में 18.5 लाख छात्रों को स्कॉलरशिप की रकम के भुगतान में एक से छह साल तक की देरी हुई थी. सीएजी के मुताबिक आवेदन जमा करने, उनकी जांच और अनुमोदन के लिए कोई तय समयसीमा नहीं होना इसकी प्रमुख वजह थी. इसके अलावा राज्यों की ओर से केंद्र को समय पर छात्रों के आंकड़े मुहैया नहीं कराना भी देरी की एक बड़ी वजह है.
सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया था कि केंद्र की ओर से इस मद में आवंटित रकम पर्याप्त नहीं होती और इस मद में राज्यों का वित्तीय प्रबंधन भी ठीक नहीं है. छात्रों की बढ़ती तादाद की वजह से राज्य सरकारें उक्त योजनाओं के तहत ज्यादा रकम मांग रही हैं. लेकिन केंद्र की ओर समय पर पूरी रकम का भुगतान नहीं होने की वजह से बकाया रकम लगातार बढ़ रही है. केंद्रीय सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि विभागीय मांग के मुताबिक वित्त मंत्रालय से रकम आवंटित नहीं होने की वजह से भी भुगतान में देरी होती है.
तेलंगाना की छात्रा की मौत
केंद्र सरकार की ओर समय पर स्कॉलरशिप नहीं मिलने की वजह से तेलंगाना की गरीब परिवार की एक छात्रा ने हाल में ही गले में फंदा डाल कर आत्महत्या कर ली थी. वह दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कालेज में पढ़ रही थी. उसके बाद नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन आफ इंडिया (एनएसयूआई) समेत कई संगठनों ने दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल के आवास के समक्ष धरना-प्रदर्शन किया था. एनएसयूआई महासचिव नागेश करियप्पा का कहना था, "कोरोना की वजह से इस साल अप्रैल से ही किसी को स्कॉलरशिप की रकम नहीं मिली है. इससे छात्रों को भारी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है. स्कॉलरशिप की रकम की वजह से ही गरीब और पिछड़े परिवारों के छात्र उच्च शिक्षा हासिल करने का सपना देखते हैं. लेकिन इसमें देरी से उनका सपना मंझधार में ही टूट रहा है.”
शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार को इन योजनाओं की प्रक्रिया को सरल बना कर राज्य सरकारों के सहयोग से समय पर रकम जारी करनी चाहिए. कोलकाता के एक कालेज में सहायक प्रोफेसर नीलिमा बाग कहती हैं, "दस साल पहले भी रकम के भुगतान में देरी होती थी. लेकिन अब तो काफी देरी हो रही है. इससे छात्रों का भविष्य अनिश्चित हो गया है. दलितों, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जाति के जिन छात्रों को उक्त योजनाओं के तहत स्कॉलरशिप मिलती है उनके लिए इसके बिना पढ़ाई जारी रखना संभव नहीं है.”
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