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स्वीडन के नाटो में आने का क्या असर होगा

२७ फ़रवरी २०२४

नाटो में स्वीडन की अटकी सदस्यता ने हंगरी की मंजूरी मिलने के साथ आखिरी बाधा पार कर ली है. स्वीडन के नाटो में शामिल होने का क्या असर होगा?

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स्वीडन पहले से ही नाटो के साथ सहयोग करता रहा है
स्वीडन ने यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन कियातस्वीर: DW

नाटो में स्वीडन के शामिल होने की कोशिश लगभग दो साल से चल रही है. अब इसे हंगरी की भी मंजूरी मिल गई है. हंगरी की राष्ट्रवादी सरकार ने इसमें 18 महीने लगाए और इस देरी ने उसके यूरोपीय सहयोगियों को परेशान कर दिया था. नाटो में नए सदस्यों को शामिल करने के लिए सभी मौजूदा सदस्यों की मंजूरी जरूरी है. अकेले हंगरी ने ही स्वीडन का रास्ता रोक रखा था.

स्वीडन नाटो में क्यों शामिल होना चाहता है?

स्वीडन लगभग 200 सालों से सैन्य गठबंधनों को दूर से ही सलाम करता रहा है. लंबे वक्त तक वह नाटो की सदस्यता लेने से भी इनकार करता रहा. हालांकि फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर पूरी तैयारी से हमला बोल दिया, तब उसने गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति एक तरह से रातों- रात बदल दी. स्वीडन ने पड़ोसी देश फिनलैंड के साथ नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन कर दिया.

स्वीडन नाटो के लिए कितना जरूरी है

फिनलैंड पिछले साल ही नाटो में शामिल हो गया. स्वीडन और फिनलैंड ने शीत युद्ध खत्म होने के बाद से ही नाटो के साथ संबंध मजबूत कर लिए थे. हालांकि, दोनों देशों में लोगों की राय पूर्ण सदस्यता के पक्ष में नहीं थी. यूक्रेन युद्ध के बाद स्थिति बदल गई.

हंगरी की संसद में स्वीडन को नाटो का सदस्य बनाने पर वोटिंग
हंगरी की मंजूरी मिलने के बाद स्वीडन के रास्ते की बाधा दूर हुईतस्वीर: Marton Monus/dpa/picture alliance

बाल्टिक सागर के इलाके में मजबूत पड़ोसी देश रूस के साथ तनाव से बचने के लिए गुटनिरपेक्षता को सबसे अच्छा तरीका माना जाता रहा है. हालांकि रूसी उग्रता ने दोनों देशों में नाटकीय बदलाव किए. जनमत सर्वेक्षणों में नाटो की सदस्यता के लिए जबर्दस्त समर्थन दिखाई पड़ा. फिनलैंड और स्वीडन, दोनों देशों के राजनीतिक दलों ने फैसला किया कि उन्हें सुरक्षा गारंटी चाहिए, जो अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन से ही मिल सकती है.

सदस्यता मिलने में इतनी देर क्यों?

फिनलैंड अप्रैल 2023 में नाटो का 31वां सदस्य बन गया, लेकिन स्वीडन का मामला अटका रहा. तुर्की और हंगरी को छोड़ कर बाकी सभी देशों ने उसकी सदस्यता को मंजूरी दे दी. 23 जनवरी को तुर्की के सांसदों ने नाटो में स्वीडन की सदस्यता के पक्ष में मतदान किया.

स्वीडन को नाटो में शामिल करने पर मंजूरी देने के लिए तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने कई शर्तें रखी थीं. इनमें कुछ ऐसे संगठनों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की बात थी, जिन्हें तुर्की अपने लिए खतरा मानता है. इसमें कुर्द लड़ाके और उस नेटवर्क के सदस्य हैं, जिन पर 2016 में तुर्की के नाकाम तख्तपलट का आरोप लगता है.

एर्दोवान को खुश करने के लिए स्वीडन ने हथियारों की सप्लाई पर लगे इंबार्गो को हटा लिया. इसके साथ ही आतंकवाद से लड़ने में सहयोग का भी भरोसा दिया. हालांकि स्वीडन में प्रतिबंधित 'कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी' (पीकेके) के प्रदर्शन और मुस्लिम विरोधी कार्यकर्ताओं के कुरान जलाने जैसी घटनाओं ने स्थिति को जटिल बना दिया.

अमेरिका और नाटो के दूसरे सहयोगियों ने तुर्की पर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन उसका भी कुछ खास असर नहीं हुआ. बहरहाल पिछले साल एर्दोवान ने कहा कि वह संसद की मंजूरी के लिए दस्तावेज भेजेंगे. इसके बाद संसद में भी यह मामला लंबे समय तक लटका रहा. आखिरकार सांसदों ने वोटिंग के जरिए इसे मंजूरी दे दी.

हंगरी के प्रधान मंत्री विक्टर ओरबान से बुडापेस्ट में स्वीडिश प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टेर्सन ने मुलाकात की
हंगरी ने नाटो में स्वीडन की सदस्यता को मंजूरी दे दी हैतस्वीर: Denes Erdos/AP Photo/picture alliance

इसके बाद मामला हंगरी में अटक गया. शुरुआत में हंगरी ने इस देरी के पीछे कोई कारण नहीं बताया. प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान लंबे समय तक यही कहते रहे कि उनका देश इसे मंजूरी देने वाला आखिरी देश नहीं होगा. हालांकि स्वीडन का सुर हंगरी के प्रति पिछले साल सख्त हो गया. हंगरी का आरोप है कि देश में लोकतंत्र की स्थिति पर स्वीडिश राजनेता "साफ झूठ" बोलते हैं. ओरबान ने नाटो सहयोगियों के साथ संबंध को बिगाड़ कर यूक्रेन मामले में रूस समर्थक रुख अख्तियार कर लिया था.

ऊपर से ओरबान यही कहते रहे कि सैद्धांतिक रूप से वह स्वीडन के नाटो में शामिल होने के खिलाफ नहीं हैं. 23 फरवरी को ओरबान और स्वीडन के प्रधानमंत्री की मुलाकात हुई. इस दौरान दोनों देशों के बीच कुछ और करार भी हुए. इनमें चार स्वीडिश लड़ाकू विमानों को लेने का करार भी शामिल है. इन सबके बाद ही 26 फरवरी को हंगरी की संसद ने स्वीडन की सदस्यता को मंजूरी देने का प्रस्ताव पारित किया. जल्दी ही इस पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाएगी.

स्वीडन से नाटो को क्या मिलेगा?

स्वीडन के नाटो में शामिल होने के बाद बाल्टिक सागर लगभग पूरी तरह से नाटो देशों के घेरे में आ जाएगा. रणनीतिक रूप से अहम इलाके में यह सैन्य गठबंधन मजबूत होगा. बाल्टिक सागर रूस के लिए सेंट पीटर्सबर्ग और कालिनिनग्राद एंक्लेव तक जाने के लिए समुद्री रास्ता है. 

नाटो के सैन्य अभ्यास में स्वीडन के लड़ाकू विमान
स्वीडन पहले से ही नाटो के साथ प्रमुखता से सहयोग करता रहा हैतस्वीर: JOHN THYS/AFP/Getty Images

स्वीडन की सशस्त्र सेना का आकार शीत युद्ध के बाद हालांकि बहुत छोटा हो गया है, लेकिन फिर भी इसे इलाके में नाटो की सामूहिक ताकत के लिए बड़ा इजाफा माना जा रहा है. स्वीडन की वायु सेना और नौसेना काफी उन्नत है. इसके अलावा उसने रक्षा खर्च को नाटो के लक्ष्य यानी जीडीपी के दो फीसदी तक ले जाने का भरोसा दिया है. फिनलैंड की तरह ही स्वीडन की सेना भी कई सालों से नाटो के साथ संयुक्त सैन्याभ्यास में शामिल होती रही हैं.

रूस ने कैसी प्रतिक्रिया दी है?

कोई हैरानी नहीं है कि रूस ने स्वीडन और फिनलैंड के गुटनिरपेक्षता को छोड़ कर नाटो की सदस्यता लेने के फैसले पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. रूस ने चेतावनी देते हुए जवाबी कदम उठाने की बात कही है. हालांकि ये कदम क्या होंगे, इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है. रूस का कहना है कि इस कदम से उत्तरी यूरोप में सुरक्षा स्थिति पर गलत प्रभाव पड़ेगा. उसका कहना है, "यह इलाका पहले दुनिया के सबसे स्थिर इलाकों में एक था."

इस साल की शुरुआत में स्वीडन के शीर्ष सैन्य कमांडर मिकाएल बिदेयां ने कहा कि सभी स्वीडन वासियों को मानसिक रूप से युद्ध की आशंका के लिए तैयार रहना चाहिए. इसी तरह 19 फरवरी को स्वीडन की खुफिया एजेंसी, एमयूएसटी ने कहा कि स्थिति का बिगड़ना 2023 में भी जारी रहा है. स्वीडन और फिनलैंड दोनों ने रूसी दखलंदाजी का खतरा बढ़ने की चेतावनी दी है.

एनआर/एसएम (एपी, एएफपी)

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