हजारों मंदिर मस्जिद गैरकानूनी
१० अगस्त २०१३सड़क किनारे या सड़क के बीचों बीच या फिर पार्क में, सार्वजनिक भूमि पर, पुलिस लाइन या थाने, हर जगह मंदिर. इनमें ज्यादातर अवैध ढंग से बनाए गए हैं. सैकड़ों मस्जिदें भी इसी तरह बनी हैं. कितनी मजारें भी ऐसे ही बनी हैं. सरकारी आंकड़े कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक भूमि, पार्क और सड़क किनारे 38,355 धार्मिक स्थल अवैध ढंग से मौजूद हैं. राजधानी लखनऊ में ही 971 गैर कानूनी धार्मिक स्थल हैं.
लखनऊ के हजरतगंज में सड़क से बिल्कुल सटा हुआ दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर बहुत वीआईपी है. मुख्य पुजारी गंगा राम त्रिपाठी के मुताबिक बड़े बड़े नेता और अफसर उनके मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आते रहे हैं. सत्तर के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी की इस मंदिर पर निगाह पड़ी और इसका भाग्य चमक गया. एक पीपल के पेड़ के नीचे स्थित इस मंदिर का लखनऊ विकास प्राधिकरण ने पुनर्निमाण कर दिया. एक और मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह तो इस मंदिर से इतना प्रभावित थे कि जब तब उनका काफिला इस मंदिर में आ जाता और हजरतगंज की सड़कों पर जाम लग जाता. ये सब बताते हुए गंगा राम के चेहरे पर लालिमा उभर आती है. बताते हैं कि कितने नेता और अफसर आते हैं, गिनती नहीं. लाल-नीली बत्तियां लगी कारों की कतार इस मंदिर के सामने मंगल और शनिवार को दिखती है.
गंगा राम के मुताबिक करीब 90 साल पहले इसी पीपल की जड़ में दक्षिणमुखी हनुमान जी की प्रतिमा का प्रकटीकरण हुआ. उनके बड़े भाई राम चंद्र त्रिपाठी ने यहीं पर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की. तब से पूजा अर्चना जारी है. राजभवन से सटी मस्जिद का हाल भी कमोबेश यही है. अस्सी के दशक में राज्यपाल बनकर आए लखनऊ आए मोहम्मद उस्मान आरिफ नक्शबंदी ने इसे भव्य बनवा दिया. इसमें बड़े मुस्लिम नेता और अफसर जुमे को नमाज पढ़ने आते हैं. इससे सटी सड़क पर जुमे की दोपहर जाम लग जाता है. ऐसी मस्जिदों और मंदिरों के लिए कोई पूछने वाला नहीं कि जिस भूमि पर ये मंदिर मस्जिद बने हैं उसे किसने खरीदा या सरकार ने अगर दी तो क्यों दी. सड़क के दोनों ओर 20 फिट भूमि सार्वजनिक स्थल है जिस पर किसी भी प्रकार का निर्माण अवैध है लेकिन ये मंदिर सरकार ने ही सड़क से सटा कर बनवा दिया. सड़क किनारे ऐसे मंदिर-मस्जिद यूपी में कहीं भी देखे जा सकते हैं.
भाजपा प्रवक्ता विजय पाठक कहते हैं कानून का पालन होना चाहिए. पूर्व मंत्री बसपा नेता आरके चौधरी कहते हैं कि दलितों और पिछड़े गरीब कमजोर लोगों की तरक्की को रोकने के लिए सरकारें ऐसे धार्मिक षडयंत्र हमेशा से करती आई हैं. मंदिर-मस्जिद के नाम पर सरकारी भूमि हड़पने का सिलसिला इसीलिए बंद नहीं हो पाया. समाज शास्त्री प्रोफेसर राजेश मिश्र कहते हैं कि धार्मिक मामले भारत में प्राचीन काल से ही बेहद संवेदनशील रहे है. हालांकि धर्म युद्ध की परंपरा तो विश्वव्यापी है.
सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले सार्वजनिक भूमि पर अवैध धार्मिक स्थलों को अन्य जगह स्थानांतरित करने के आदेश दिया था. इसके पालन में सरकार यूपी सरकार ने अवैध ढंग से बनाए गए 45,152 धार्मिक स्थल चिन्हित किए और 68 धार्मिक स्थलों को हटवाया और सरकारी भूमि पर बने 48 धार्मिक स्थलों को दूसरी जगहों पर स्थानांतरित किया. बचे हुए 38,355 धार्मिक स्थल अभी भी गैर कानूनी ढंग से सरकारी भूमि पर मौजूद हैं.
सरकारी भूमि पर सबसे अधिक 4,706 अवैध धार्मिक स्थल पूर्वी यूपी के सिद्धार्थनगर में हैं और सबसे कम 38 कौशाम्बी जिले में बने पाए गए. मुजफ्फरनगर में 4,043, रामपुर में 2,349, कानपुर शहर में 1,490 फैजाबाद में 1,417, मेरठ में 1,415, ज्योतिबा फूलेनगर में 1,200, बिजनौर में 1,198, झांसी में 1,101, गोंडा में 1,008, वाराणसी में 949, आगरा में 536, इलाहाबाद में 381, गौतमबुद्ध नगर में 349 तथा मथुरा में 205 अवैध धार्मिक स्थल हैं. कई जगह यह भी देखा गया है कि माफिया जमीन कब्जाने के लिए वहां पहले मंदिर, मस्जिद या मजार बनवाते हैं. धीरे धीरे वो जगह धार्मिक स्थल का दर्जा पा जाती है और नेताओं के दबाव के बीच अधिकारी चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते.
हाल ही में ग्रेटर नोएडा के कादलपुर गांव में जिस मस्जिद की दीवार गिराने के आरोप में एएसडीएम दुर्गा नागपाल को निलंबित किया गया वो मस्जिद भी ग्राम समाज की भूमि पर अवैध ढंग से बन रही थी. इस निलंबन ने इतना तूल पकड़ा के प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी तक को दखल देना पड़ा. यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दुर्गा के निलंबन को अभी भी सही ठहरा रहे हैं. आरोप हैं कि मुलायम और उनके बेटे अखिलेश ने रेत माफिया को बचाने के लिए दुर्गा को निलंबित किया. मामला चाहें जो करवट ले पर इतना तय लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भविष्य में अब शायद ही कोई प्रशासनिक अधिकारी अवैध ढंग से बन रहे किसी धार्मिक स्थल के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा पाएगा.
रिपोर्ट: एस वहीद, लखनऊ
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी