हाइड्रोजन से चलने वाला पहला जहाज़
११ नवम्बर २००८जर्मनी जैसे देशों की सड़कों पर हाइड्रोजन से चलने वाली कारों और बसों के साथ परीक्षण तो कई वर्षों से चल ही रहे हैं, जर्मनी के हैम्बर्ग नगर में कुछ समय से संसार का ऐसा पहला पानी का जहाज़ भी चल रहा है, जिस में हाइड्रोजन गैस ईंधन का काम करती है. यह एक सैलानी जहाज़ है, जो पर्यटकों को हैम्बर्ग की अल्सटर झील की सैर कराने के लिए बना है. हैम्बर्ग एक शहर होने के साथ-साथ जर्मनी का एक राज्य भी है. वहाँ की पर्यावरण मंत्री अन्या हायदुक ने अगस्त के अंत में उसके नामकरण के समय कहाः"मैं तुम्हें अल्सटरवासर नाम देती हूँ और सदा शुभयात्र की कामना करती हूँ, तुम्हारी पेंदी के नीचे हमेशा हाथभर पानी रहे."
अल्सटर झील पर और भी कई सैलानी जहाज़ चलते हैं. उनके और इस जहाज़ के बीच कोई अंतर नहीं है. अंतर केवल तब मालूम पड़ता है, जब 25 मीटर लंबा यह जहाज़ चलने लगता है. उसका इंजन लगभग कोई आवज़ ही नहीं करता और न ही काँपता-थरथराता है. उसकी चिमनी से डीज़ल का कोई धुआँ, कोई कालिख या कोई कार्बन डाई-ऑक्साइड नहीं निकलती. निकलती है केवल भाप, जलवाष्प. जहाज़ के डेक के नीचे एक हाइड्रोजन ईंधन-सेल लगा हुआ है. ईंधन सेल, जिसे अंग्रेज़ी में Fuel Cell क्या है, बताते हैं उसकी निर्माता म्युनिक की प्रोटेन मोटर कंपनी के अनो मेर्टन्सः
"ईंधन सेल हवा की सहायता से हाइड्रोजन गैस को बिजली में बदलता है. उसी बिजली से यह जहाज़ चलता है, बिना शोर-शराबे और बिना दूषित गैसों के."
हाइड्रोजन से बने बिजली
जहाज़ में हाइड्रोजन गैस की 12 टंकियाँ हैं. इन टंकियों में गैस को 350 बार पर, यानी साढ़े तीन सौ गुना वायुमंडलीय दबाव पर संपीड़ित कर रखा जाता है. ईंधन सेल में यही हाइड्रोजन, हवा के साथ मिल कर, बिजली पैदा करती है. यह बिजली पहले एक बैट्री में संचित की जाती है, यानी पहले एक बैट्री को चार्ज करती है और बैट्री से बाद में जहाज़ का बिजली का इंजन चलता है. इस इंजन या मोटर की क्षमता 110 किलोवाट ही है, जो किसी मझोले आकार और मोटर-क्षमता वाली कार से अधिक नहीं है. लेकिन, उसकी कार्यकुशलता किसी सामान्य डीज़ल मोटर से अधिक है, जैसा कि मेर्टन्स बताते हैं:
"हाइड्रोजन वाले फ्यूल सेल की कार्यकुशलता क़रीब 50 प्रतिशत है. कोई डीज़ल मोटर इस कार्यकुशलता तक पहुँच नहीं पाता. डीज़ल मोटर को तब भी चालू रखना पड़ता है, जब जहाज़ खड़ा हो. इस तरह उसकी कार्यकुशलता 20 प्रतिशत से ऊपर नहीं जा पाती."
अलग पंपिंग स्टेशन
कहने की आवश्यकता नहीं कि इस जहाज़ की टंकियों में डीज़ल की जगह हाइड्रोजन गैस भरनी पड़ती है. इसके लिए जर्मनी की लिंडे कंपनी ने अलग से एक हाइड्रोजन पंपिंग स्टेशन बनाया है. हाइड्रोजन भरने में समय लगता है क़रीब 15 मिनट. पंपिंग स्टेशन के तौर पर, जहाज़ पर चढ़ने-उतरने के घाट के पास के पेड़ों के पीछे, किसी मकान जितनी ऊँची, एक बड़ी-सी टंकी है, जिसमें ऋण 253 डिग्री सेल्जि़यस तापमान पर प्रशीतित एक टन तरल हाइड्रोजन गैस जमा रहती है. लिंडे कंपनी के कर्मचारी क्रिस्टियान टुख़ेल बताते हैं:
"जहाज़ को साढ़े तीन सौ बार के दबाव पर गैस के रूप में हाइड्रोजन चाहिये. इसका मतलब है कि हम इस पंपिंग स्टेशन में तरल हाइड्रोजन को पहले गैस के रूप में बदलते हैं और तब एक नये संपीड़न यंत्र के द्वारा उसे साढ़े तीन सौ बार पर संपीड़ित करते हैं."
अच्छा अनुभव
यह पंपिंग स्टेशन एक प्रोटोटाइप है, यानी अपने ढंग का पहला और अकेला पंपिंग स्टेशन है. उसमें जो यंत्र और उपकरण लगे हैं, जहाज़ में लगे हाइड्रोजन ईंधन सेल की तरह वे भी अभी परीक्षण की अवस्था में हैं. अल्सटरवासर नाम का यह जहाज़ भी अभी नियमित यात्री सेवा में नहीं है. जहाज़ की मालिक अल्सटर टूरिस्टिक कंपनी की मुख्य प्रबंधक गाब्रिएले म्युलर-रेमर बताती हैं:
"हमारे सामने सबसे बड़ा काम था अपने कर्माचारियों को फ्यूल सेल और हाइड्रोजन गैस वाली तकनीक से परिचित कराना और उनके अनुभवों को जमा करना. इस में समय लगना निश्चित था."
जहाज़ अल्सटर झील पर परीक्षण के तौर पर कई बार चल चुका है और उसे चार्टर सेवा के लिए भी इस्तेमाल किया जा चुका है, लेकिन नियमित यात्री सेवा में उसकी अग्निपरीक्षा अभी नहीं हुई है. गाब्रिएले म्युलर-रेमर का कहना है कि जहाज़ को चलाने वाले कर्मचारी उसके बारे में बड़ी अच्छी बाते कहते हैं, बहुत संतुष्ट हैं. यदि 2010 तक सब कुछ योजनानुसार चला, तो उसके बाद उनकी कंपनी हाइड्रोजन से चलने वाले और भी जहाज़ ख़रीदने की सोच सकती है.